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बचाओ दीदी

दीदी को राजनीति में आने दो लेकिन उन्हें “अवतार” की तरह तो मत उतारो। पैराशूटों के
दिन अब धीरे-धीरे

Mar 08, 2015 / 10:44 pm

शंकर शर्मा

इसीलिए दूसरी पार्टी का ऎरा-गैरा नत्थूखैरा तक कांग्रेस पर चुटकी लेने लगता है क्योंकि कांग्रेसियों को सिवा गांधी-नेहरू परिवार से अलग कुछ नजर ही नहीं आता। किसी भी दल की पहचान उसके कुछ खास सदस्यों से होती है। जैसे कांग्रेस आज भी अपने आपको महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के परिवार से जोड़ती है। भाजपा दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी से जोड़ती है।

वामपंथी आज तक मार्क्स और लेनिन के गुण गाते हैं। क्षेत्रीय दलों की तो बातें ही क्या करनी। कहीं ललिता की तूती बोलती है तो कहीं ममता का तिनका खनकता है। कहीं सिंह का मुलायम जादू है तो कहीं लालू की लालटेन। महाराष्ट्र में अब भी बालासाहेब ठाकरे का डंका बजता है तो उड़ीसा में पटनायक का। यानी कुल मिलाकर वही ढाक के तीन पात।

कांग्रेस पार्टी अब तक के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है। पार्टी धीरे-धीरे सिमटती जा रही है लेकिन वे सोच नहीं पा रही कि करे तो क्या करे? ले-देकर कांग्रेसियों की सारी आशा का केन्द्र “दीदी” यानी प्रियंका है। भैया राहुल इन दिनों अन्र्तध्यान होकर तपस्या कर रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि ऎसी क्या रणनीति बनाई जाए कि पार्टी में एक बार फिर नवजीवन का संचार हो।

कांग्रेस के हजारों-लाखों कार्यकर्ता भी अपने आला कमान को ताक रहे हैं। उतावले जल्दी से “सत्ता” वापस चाहते हैं लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह आसानी से नहीं मिलती। इसकेे लिए साधना करनी पड़ती है। साधना के लिए “त्याग” जरूरी है। त्याग के लिए “स्वार्थ” छोड़ना पड़ता है। स्वार्थ छोड़ने के लिए “मोह” छोड़ना होता है और मोह भी छूटता ही नहीं। कांग्रेसियों की क्या। आज के जमाने में किसी की भी बात कर लो। जिसे देखो वही मोह के बंधन में फंसा पड़ा है।

कांग्रेस को एक बार कड़ा होकर मोह छोड़ना पड़ेगा। अरे भैया। दीदी को राजनीति में आने दो लेकिन उन्हें “अवतार” की तरह मत उतारो। पैराशूट राजनीति के दिन अब धीरे-धीरे लदते जा रहे हैं। नरेन्द्र भाई मोदी और अरविन्द केजरीवाल इसके साक्षात उदाहरण हैं। अब कोई माने या न माने लेकिन सत्य तो यह भी है कि गांधी-नेहरू परिवार का चस्का भाजपा वालों को भी लगा रहता है। पिछले दिनों जब राहुल गांधी कथित “आत्मचिंतन” करने के लिए अन्र्तध्यान हुए तो भाजपा वालों ने भी जम कर टिप्पणी की। क्यों भाई।

तुम काहे कांग्रेस के फटे में अपनी टांग अड़ा रहे हो लेकिन इन्हें भी चिन्ता है। ये जानते हैं कि चाहे मोदी भाग से ही सही बड़ी मुश्किल से सत्ता का छींका इनके आंगन में आकर टूटा है। अब जब यह इनके पक्ष में रहे तब तक मौजा ही मौजांं। हम तो प्रियंका दीदी से भी गुजारिश करना चाहते हैं बहुत हो चुका। अब तो बाल-बच्चे भी बड़े हो गए।

अब तो राजनीति में आ ही जाओ प्लीज। काहे आप भी लुका-छिपी का खेल खेल रही हैं। अब भविष्य के पेट में क्या छिपा है। कौन जाने। तीस बरस बाद देश को एक और इंदिरा गांधी की प्रतिमूर्ति मिल जाए। न भी मिले तो क्या कम से कम कांग्रेसियों के दुखते मन को थोड़ी राहत तो मिलेगी। – राही

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