पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के सभी देशों को चेतावनी देते हुए कहा था कि पानी की बर्बादी को अगर जल्द ही नहीं रोका गया, तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व गंभीर जल संकट का सामना करेगा। हाल ही भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने ‘जल प्रबंधन सूचकांक’ जारी किया। इसके अनुसार भारत अब तक के सबसे बड़े जल संकट से जूझ रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि देश के करीब 60 करोड़ लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। देश में करीब 75 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां पीने योग्य पानी तक उपलब्ध नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले कुछ वर्षों में देश के कई इलाकों में बार-बार सूखा पड़ेगा। नई दिल्ली, बेंगलूरु, चेन्नई, हैदराबाद समेत 21 शहरों में वर्ष 2020 तक भूमिगत जल स्तर उस स्तर तक गिर जाएगा जिससे कि 10 करोड़ लोगों का जीवन प्रभावित होगा। इसके अलावा वर्ष 2030 तक देश में पानी की मांग भी दोगुनी हो जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक जल संकट से वर्ष 2050 तक देश की जीडीपी में छह फीसदी का नुकसान होगा।
जल संकट के इन सभी खतरों के बीच यह संतोष की बात कही जा सकती है कि पिछले दो साल के दौरान देश के करीब आधे राज्यों में पानी सहेजने के काम में सुधार आया है। जल संसाधन प्रबंधन में गुजरात सबसे आगे है, जबकि मध्यप्रदेश दूसरे स्थान पर है। राजस्थान इस दृष्टि से दसवें नंबर पर है। झारखंड सभी राज्यों में सबसे निचले पायदान पर है। वर्ष 2030 तक जल संकट अपने चरम पर पहुंचने का अनुमान लगाया गया है, क्योंकि तब तक पानी की मांग आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी।
देश की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उसे देखते हुए आने वाले एक दशक यानी वर्ष 2030 से पहले तक भारत जल संकट ग्रस्त की श्रेणी में आ जाएगा। विश्व बैंक की उस रिपोर्ट को नजरअंदाज करना बेमानी होगा, जो कहती है कि जलवायु परिवर्तन और बेतहाशा पानी के दोहन की मौजूदा आदत से बहुत जल्द देश भर के 60 फीसदी वर्तमान जलस्रोत सूख जाएंगे। खेती तो दूर की कौड़ी रही, प्यास बुझाने को पानी होना नसीब की बात होगी। ‘वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम’ की रिपोर्ट भी डराती है, जिसमें जल संकट को दस अहम खतरों में सबसे ऊपर रखा गया है।
पानी हमारे बीच से तेजी से गायब होता जा रहा है। वर्ष १951 में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 घन मीटर थी, जिसके वर्ष 2025 तक घटकर 1,341 घन मीटर ही रह जाने का अनुमान है। कुंओं में जहां जल 15 से 20 फीट पर उपलब्ध था, वहां जल स्तर 200 फीसदी से भी नीचे जा चुका है। लोकसभा में यह भी स्वीकारा जा चुका है कि देश की 275 नदियों में पानी तेजी से खत्म हो रहा है।
जल आयोग की ही रिपोर्ट के मुताबिक 91 प्रमुख जलाशयों में गर्मी आने तक औसतन मात्र 20-22 फीसदी पानी बचा रहता है। वर्ष 2016 में नौ राज्यों के 33 करोड़ लोगों ने भीषण जल संकट को झेला था। पीने के पानी की किल्लत वाले राज्यों में महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व तेलगांना तो आते ही हैं, पर अब हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों की गिनती भी जल संकट ग्रस्त राज्यों में होने लगी है। राजस्थान के साथ ही पंजाब और हिमाचल प्रदेश के जलाशयों में भी पानी का स्तर लगातार घटता जा रहा है।
एक नजर दुनिया के दूसरे इलाकों पर भी डालें तो हालात भयावह ही हैं। दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन में आपूर्ति के लिए पानी ही नहीं बचा है। मतलब 40 लाख लोग जल संकट की चपेट में हैं। अब प्रति व्यक्ति मात्र 25 लीटर पानी देना ही संभव हो पा रहा है और वितरण के लिए सेना और पुलिस को तैयार किया जा रहा है। दुनिया में 1.1 अरब आबादी को आज भी साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 2.7 अरब लोगों को साल में कम से कम एक महीना पानी की कमी से जूझना पड़ता है। इतना तय है कि 2025 तक दुनिया की दो-तिहाई आबादी जल संकट का सामना करने को मजबूर होगी।
राजस्थान की बात की जाए तो यहां पहले ही पानी की कमी है। जल का अतिदोहन इसके लिए जिम्मेदार है। पिछले चार दशकों में धरती से जितना पानी हमने निकाला है, उसके अनुपात में भूजल रिचार्ज नहीं हुआ है और भूजल स्तर तुलनात्मक रूप से गिर रहा है। भावी संकट का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
स्पष्ट है कि अतिदोहन से धरती की कोख खाली हो गई है। कुएं, तालाब, जोहड़, नाड़ी के साथ-साथ नलकूप भी सूखे पड़े हैं। भूजल प्रदूषित होने से खारा हो रहा है। हमें आज के लिए ही नहीं, बल्कि कल के लिए भी जल की चिंता करनी होगी, अन्यथा भावी पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी।