एक समाज जो स्वास्थ्य पर निवेश तो दूर, स्वास्थ्य की बात भी ना करे और अपनी बुनियादी सुविधाओं को भूल, धर्म, जाति और प्रलाप में लिप्त हो, वह समाज ऐसी त्रासदी से कैसे लड़ेगा? जब त्रासदी आई, तो वीआइपी नेताओं ने तो वीआइपी बेड पकड़ लिए और हमें छोड़ दिया, रोड और श्मशानों पर। हमने त्राहि माम की पुकार की और उन्होंने वीआइपी बंगलों में बैठ कर संवेदना प्रकट की।
हम अपने नागरिक धर्म को भूल गए। स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, जल-जीवन को भूल, फिल्मी गपशप और साम्प्रदायिक राजनीति में लीन हो गए। इसलिए आज त्रासदी का ऐसा रूप स्वतंत्र भारत देख रहा है। अब भी देर नहीं हुई है, अंधेरे के बाद उजाला भी होता है। आशा है कि अब हम अपने नागरिक धर्म को नहीं भूलेंगे। बुनियादी मुद्दों में रुचि लें, और दुष्कर प्रश्नों को पूछने और उत्तर देने की चेष्टा करें। हमारा देश हमारी जिम्मेदारी है, यही स्वराज की नींव है।
(लेखक आइआइएम, बैंगलूरु में स्ट्रेटेजिक एरिया प्रोफेसर हैं)