दया और करुणा का भाव जिस मनुष्य में जितना अधिक होगा, वह उतना ही उदार मानव बनता जाएगा। इनके बिना धर्म का महāव नहीं। वैसे भी मानव का वास्तविक स्वभाव अहिंसा, मैत्री और करुणा है। जीवन साधना में बीज या है और फल या है, यह जानना अत्यंत अनिवार्य है। प्रारंभ और परिणाम को पहचानना जरूरी है। कार्य और कारण को जाने बिना जो चलता है वह भूल करता है। शील, संयम, सदाचार और बाह्यान्तर पवित्रता से परिपूर्ण मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है। इसलिए मनुष्य को तत्परतापूर्वक धर्माचरण, आदर्शों के अनुपालन एवं नैतिक मूल्यों के संवर्धन में संलग्न रहना चाहिए। इन सद्गुणों के चलते मनुष्य संपूर्ण प्रकृति और नियंता को आक र्षित क र सक ता है। ये सद्गुण मनुष्यता को परिभाषित क रते हैं। इन गुणों की नींव पर ही समाज बना, संगठित हुआ और टिका है। इनसे ही हम अच्छे नागरिक बनते हैं। अत: उच्च शिखर तक पहुंचने के लिए हमें अच्छा नागरिक होना चाहिए।