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आत्म-दर्शन: दया और करुणा

निर्मल भावनाओं में करुणा सर्वोत्कृष्ट है। मनुष्य में करुणा एक दैवीय गुण है, आत्मा का प्रकाश है।

नई दिल्लीMar 30, 2021 / 02:39 pm

विकास गुप्ता

Swami Avdheshanand Giri

Swami Avdheshanand Giri

स्वामी अवधेशानंद गिरी (आचार्य महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा)

औदार्यता का अर्थ है- जीव मात्र में आत्मै€यता भाव एवं सहज स्वीकृति। यथा मीठे नीर से यु€त सरिताएं धीर-ग्भीर सागर में स्वत: समाहित हो जाती हैं, तथैव करुणा व औदार्य संपन्न व्यक्ति के समक्ष संसार की समस्त श्रेष्ठताएं स्वयं ही प्रक ट होने लगती हैं। मनुष्य को आत्मरू प परमात्मा के दर्शन क राती है करुणा। निर्मल भावनाओं में करुणा सर्वोत्कृष्ट है। मनुष्य में करुणा एक दैवीय गुण है, आत्मा का प्रकाश है। इसकी उत्पत्ति होते ही मनुष्य के सारे मानसिक मल धुल जाते हैं और उसका हृदय दर्पण की तरह चमक उठता है, जिसमें वह आत्मरूप परमात्मा का दर्शन कर सकता है।

दया और करुणा का भाव जिस मनुष्य में जितना अधिक होगा, वह उतना ही उदार मानव बनता जाएगा। इनके बिना धर्म का महāव नहीं। वैसे भी मानव का वास्तविक स्वभाव अहिंसा, मैत्री और करुणा है। जीवन साधना में बीज €या है और फल €या है, यह जानना अत्यंत अनिवार्य है। प्रारंभ और परिणाम को पहचानना जरूरी है। कार्य और कारण को जाने बिना जो चलता है वह भूल करता है। शील, संयम, सदाचार और बाह्यान्तर पवित्रता से परिपूर्ण मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है। इसलिए मनुष्य को तत्परतापूर्वक धर्माचरण, आदर्शों के अनुपालन एवं नैतिक मूल्यों के संवर्धन में संलग्न रहना चाहिए। इन सद्गुणों के चलते मनुष्य संपूर्ण प्रकृति और नियंता को आक र्षित क र सक ता है। ये सद्गुण मनुष्यता को परिभाषित क रते हैं। इन गुणों की नींव पर ही समाज बना, संगठित हुआ और टिका है। इनसे ही हम अच्छे नागरिक बनते हैं। अत: उच्च शिखर तक पहुंचने के लिए हमें अच्छा नागरिक होना चाहिए।

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