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आत्म-दर्शन : संयम का महत्त्व

विषय वासनाएं जन्म-जन्मांतर तक मनुष्य का पीछा नहीं छोड़तीं। जिस मन में विषय वासनाएं हैं, वहां ज्ञान कभी टिक नहीं पाता।

May 18, 2021 / 05:02 pm

विकास गुप्ता

आत्म-दर्शन : संयम का महत्त्व

आत्म-दर्शन : संयम का महत्त्व

स्वामी अवधेशानंद गिरी

मनुष्यत्व की भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति का मूल पुरुषार्थ ही है। प्रारब्ध एवं भाग्य की अपनी महत्ता है, किन्तु देवता भी पुरुषार्थ के ही सहायक और प्रशंसक हैं। अत: अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ के साथ आत्म-जागरण की तत्परता रहे। विवेकपूर्वक कामना वेग की शिथिलता, प्रलोभन-आकर्षण के प्रति सजगता एवं अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ के साथ आत्म-संयम जीवन की शुभता, दिव्यता और अपूर्व सामथ्र्य जागरण के साधन हैं। विषय वासनाएं जन्म-जन्मांतर तक मनुष्य का पीछा नहीं छोड़तीं। जिस मन में विषय वासनाएं हैं, वहां ज्ञान कभी टिक नहीं पाता।

नियम और संयम के बिना जीवन में कोई साधना फलीभूत नहीं होती। संयम ज्ञान ज्योति है। हृदय पर संयम से चित्त का ज्ञान होता है। संयम एक साधना है एवं साधना का मूल ध्येय है- शरीर और मस्तिष्क को बिना थकाए स्वस्थ चेतना की ओर ले जाना। जो मनुष्य नियम व संयम से चलता है, वह सदैव प्रसन्न रहता है। मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता को सभी विचारशील व्यक्तियों ने स्वीकार किया है। सांसारिक व्यवहारों एवं सम्बन्धों को परिष्कृत तथा सुसंस्कृत रूप में स्थित रखने के लिए संयम की अत्यन्त आवश्यकता है।

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