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आत्म-दर्शन: क्यों जरूरी है स्वाध्याय ?

जिन्हें ईश्वर में श्रद्धा और विश्वास नहीं होता, उन्हें चाहिए कि प्रतिदिन स्वाध्याय करें तथा प्रतिदिन ईश्वर के दिए हर उपहार के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें।

नई दिल्लीApr 06, 2021 / 08:23 am

विकास गुप्ता

स्वामी अवधेशानंद गिरी, (महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा)

स्वामी अवधेशानंद गिरी, (महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा)

स्वामी अवधेशानंद गिरी, (महामंडलेश्वर, जूना अखाड़ा)

स्वाध्याय मन की मलिनता को साफ करके आत्मा को परमात्मा के निकट बिठाने का सर्वोत्तम मार्ग है। अत: प्रत्येक विचारवान व्यक्ति को प्रतिदिन संकल्पपूर्वक सद्ग्रंथों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। जो हमेशा स्वाध्याय करता है, उसका मन हमेशा प्रसन्न और शांत रहता है। स्वाध्याय से ज्ञानवर्धन होता है, जिससे धर्म और संस्कृति की सेवा होती है। स्वाध्याय से अज्ञान और अविद्या का आवरण हटने लगता है और वेदादि शास्त्रों के दिव्य ज्ञान का प्राकट्य होता है। प्रतिदिन स्वाध्याय करने से बुद्धि अत्यंत तीव्र हो जाती है। कठिन से कठिन विषय को तुरंत समझ लेती है। जो साधक प्रतिदिन स्वाध्याय करते हैं, वे कभी भी साधना से भटकते नहीं तथा जो बिना स्वाध्याय के साधना करेगा, उसकी साधना कभी सफल नहीं हो सकती। जो प्रतिदिन स्वाध्याय करता है, उसकी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण हो जाती है कि वह प्रकृति के रहस्यों को भी स्वत: जानने लगता है। जो प्रतिदिन साधना करता है, वही उच्चस्तरीय साधनाओं का अधिकारी हो सकता है। जिन्हें ईश्वर में श्रद्धा और विश्वास नहीं होता, उन्हें चाहिए कि प्रतिदिन स्वाध्याय करें तथा प्रतिदिन ईश्वर के दिए हर उपहार के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें।

योग दर्शन में पांच नियम आते हैं – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान। ये पांच नियम जीवन को व्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं। इन पांच नियमों में एक है – स्वाध्याय। अर्थात् स्वयं का अध्ययन। स्वयं को जानना स्वाध्याय कहलाता है। स्वाध्याय के नाम पर बहुत से लोग कह देते हैं कि आध्यात्मिक ग्रंथ पढऩे चाहिए, धर्म-शास्त्र पढऩे चाहिए, उपनिषद् पढऩे चाहिए और इस तरह स्वाध्याय का मतलब बाह्य अध्ययन से लगाया जाता है। शास्त्र-अध्ययन को ही स्वाध्याय कहा जाए, यह इसका केवल एक पक्ष हुआ। लेकिन अगर शब्दों को ठीक से समझा जाए, तो स्वयं का अध्ययन स्वाध्याय कहलाता है। तब आत्म-परीक्षण, आत्म-निरीक्षण, आत्म-चिंतन और आत्म-शोधन स्वाध्याय के अंग बनते हैं। सामान्य रूप से लोग स्वाध्याय को ज्ञान अर्जित करने का साधन मानते हैं। अपनी इच्छाओं, कमजोरियों, सामथ्र्यों, प्रतिभाओं और महत्त्वाकांक्षाओं को जानना, समझना और उन्हें व्यवस्थित करना, यह असली स्वाध्याय है।

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