विश्व कल्याण की भावना को समेटे है शिव का आराधना पर्व
निराशा के तमोगुणी वातावरण में शिव भक्ति ही आशा की किरण बनती है। आत्माओं को इस दुखमय संसार से निकाल कर पावन सुखमय स्वर्ग की राह आखिर कैसे मिले? परमपिता परमात्मा शिव का अनादि एवं अविनाशी स्वरूप ही यह राह बताता है
विश्व कल्याण की भावना को समेटे है शिव का आराधना पर्व
राजयोगी ब्रह्माकुमार निकुंज
राजयोग मेडिटेशन
शिक्षक परिवर्तन प्रकृति का स्वाभाविक नियम है। यह जानते हुए भी मनुष्य सदा परिवर्तन के लिए प्रयास करता है और इसकी इच्छा भी रखता है। लेकिन, जब धर्म सत्ता और राज सत्ता की ताकत पर सवाल खड़े होने लगते हैं, तब मानव जाति में दुख को सुख में, अशांति को शांति में, घृणा को प्रेम में, अज्ञान को ज्ञान में परिवर्तित कर पवित्र व शान्तिमय जीवन व्यतीत करने की चाहत और बलवती होने लगती है। पर, मनुष्य की तमाम मनोकामनाएं पूरी करने का सामथ्र्य तो केवल एक परम पिता परमात्मा में ही है। प्रति वर्ष हम शिवरात्रि को महोत्सव के रूप में मनाते हैं। पर इस शिवरात्रि के आंचल में छिपे आध्यात्मिक रहस्य को जानने की कोशिश शायद ही कभी करते हों। और यह भी सच है कि इस रहस्य को हम सभी जान जाएं, तो विश्व में वांछित परिवर्तन सहज ही हो सकता है। देखा जाए तो महाशिवरात्रि केवल शिव भक्तों के लिए परमपिता शिव का आराधना पर्व ही नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर समूचे विश्व की कल्याण की भावना समेटे हुए है।
यूं तो प्रत्येक चौबीस घंटे में एक बार रात्रि आ ही जाती है, परन्तु भारतीय जन जीवन में तीन रात्रियों का विशेष महत्त्व है- ये हैं ‘शिवरात्रि’, ‘नव रात्रि’ और ‘दीपावली’। इस बात पर विचार आवश्यक है कि वर्ष भर की अन्य रात्रियों में और ‘शिवरात्रि’ में क्या अन्तर है? ऐसा क्या है जिसके कारण हम ‘शिवरात्रिÓ को एक पवित्र वरदान देने वाली रात्रि के रूप में मनाते हैं? श्रद्धालु शिवरात्रि पर किसी भी तरह जागते रहने यानी जागरण की कोशिश भी करते हैं। लेकिन, इसका आशय यह भी नहीं है कि सिर्फ एक रात्रि को भक्ति में डूब कर प्राणी शेष रात्रि तमोगुण के वशीभूत होकर विकर्म करते रहें। शिव की रात्रि कोई 12 घंटे की रात्रि नहीं होगी, बल्कि बात कुछ और ही होगी। इसलिए इसका रहस्य जानना जरूरी है।
चूंकि यह पर्व परमात्मा शिव के दिव्य जन्म के स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है और ‘शिव’ के कार्य के फलस्वरूप विश्व का कल्याणकारी परिवर्तन हुआ। इसलिए भी इसका नाम ‘शिवरात्रि’ है। परन्तु, ‘शिव’ परमात्मा के कल्याण कार्य के स्मरणोत्सव को ‘रात्रि’ शब्द से क्यों युक्त किया गया? इस विषय में स्मरण रखने की बात यह है कि यहां रात्रि शब्द चौबीस घंटे में एक बार आने वाली रात्रि का वाचक नहीं। यह ‘रात्रि’ शब्द उस ‘महारात्रि’ का वाचक है,जब कि सृष्टि में धर्म विमुखता, कर्म भ्रष्टता और विकार प्रधान हो जाते हैं। ऐसे में परमात्मा शिव कल्याण की ओर सभी का ध्यान खिंचवाते हैं। इसी कारण इस कल्याणकारी पर्व को ‘शिवरात्रि’ कहा जाता है।
यह बात जानना भी आवश्यक है कि ‘शिव’ तो शाश्वत हंै और जन कल्याण का उनका कार्य भी पुनरावृत्त होने वाला है। कलियुग के दौर में कदाचार, विवेक शून्य विज्ञान, अन्ध श्रद्धा युक्त भक्ति, धर्म के नाम पर हिंसा आदि नजर आती है। सवाल यही उठता है कि आखिर मानवता कहां खोती जा रही है? ऐसे में निराशा के तमोगुणी वातावरण में शिव भक्ति ही आशा की किरण बनती है। आत्माओं को इस दुखमय संसार से निकाल कर पावन सुखमय स्वर्ग की राह आखिर कैसे मिले? परमपिता परमात्मा शिव का अनादि एवं अविनाशी स्वरूप ही यह राह बताता है। भावी पीढ़ी को ईश्वरीय ज्ञान, योग, दिव्य गुण, पवित्रता, शांति, आनन्द, शक्तिरूप आदि का अनमोल वरदान भी इसी शक्ति से मिल रहा है। सीधे तौर पर यह कहा जाना चाहिए कि अब जो इस अज्ञान अंधकार की रात्रि में आध्यात्मिकता के माहौल में जागेगा, वही इन वरदानों को पाएगा
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