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समाज से निकले विकास का मॉडल

विकास का मॉडल कोई भी हो, सबका लक्ष्य तो मानव संसाधन का विकास ही होता है। भारत की साठ फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। मानव संसाधन की इतनी संभावना दुनिया के किसी अन्य देश के पास नहीं।

जयपुरNov 01, 2018 / 03:35 pm

dilip chaturvedi

model of development

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अश्विनी कबीर, सामाजिक कार्यकर्ता

भारत की बुनियाद सामाजिक न्याय पर टिकी है, जहां कानूनी तौर पर न्याय से ज्यादा आर्थिक और सामाजिक न्याय महत्त्वपूर्ण हैं। किसी भी समाज में सौहार्द का माहौल इससे तय होता है कि वहां वंचित और कमजोर समुदाय की देश के संसाधनों में कितनी भागीदारी है? इस आधार को देखें तो आदिवासी, घुमन्तू समाज, दलित और अल्पसंख्यकों की भागीदारी तो दूर, वंचित, शोषित व अभावग्रस्त लोगों का नया भारत बनता जा रहा है।

देखा जाए तो लोकतंत्र आंकड़ों का खेल नहीं है। इसकी बुनियाद कुछ संस्थाओं पर टिकी है। लेकिन आजादी के बाद, खास तौर से नेहरू युग के बाद इन संस्थाओं की कार्यप्रणााली और संरचना में काफी गिरावट आई है। आज सीबीआइ से लेकर न्यायपालिका और मीडिया से लेकर चुनाव आयोग तक सभी की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है।

सवाल यही है कि आखिर इन संस्थाओं का ढांचा कैसा होना चाहिए? साथ ही किसी देश की घरेलू नीतियों में वैश्विक संस्थाओं की कितनी भूमिका रहनी चाहिए? बुनियादी सवाल यह भी है कि आखिर देश के विकास का मॉडल कैसा हो? जाहिर है यह मॉडल ऐसा बने, जिसमें समाज की सहमति हो, सबको साथ लेकर चला जाए और समानता लाने वाला हो। विकास का मॉडल ऐसा भी हो जो वर्तमान की जरूरतों के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं को भी तलाशे? क्योंकि विकास बालू के टीलों पर नहीं हो सकता।

जब देश की घरेलू नीतियां भी विश्व बैंक, आइएमएफ, डब्लूटीओ जैसी संस्थाओं से प्रभावित होने लगे तो फिर इनकी भूमिका पर सवाल भी हमारे विमर्श का हिस्सा होना चाहिए।

सीधे तौर पर विकास का मॉडल समाज से ही निकलना चाहिए। कुछ पूर्व निर्धारित शर्तें हैं जिनके समाधान किए बिना विकास का कोई भी मॉडल संभव नहीं। इनमें कानून का शासन, मानव संसाधन का विकास, कृषि और रोजगार की स्थिति, विविधता का सम्मान, संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं की पारदर्शिता व न्यायपालिका की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे अहम हैं। किसान को उसकी उपज का पूरा दाम मिलना चाहिए। कानून का शासन भी होना चाहिए और सबको समानता का हक भी हो।

विकास का मॉडल कोई भी हो, सबका लक्ष्य तो मानव संसाधन का विकास ही होता है। भारत की साठ फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। मानव संसाधन की इतनी संभावना दुनिया के किसी अन्य देश के पास नहीं।

(न्यायिक उत्तरदायित्व एवं न्यायिक सुधार के प्रसार के लिए (सीजेएसआर) संगठन की राजस्थान शाखा के अध्यक्ष। )

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