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ओपिनियन

सांसदों को पेंशन देना कितना जायज?

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों की पेंशन के मामले में एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग सहित लोकसभा और राज्यसभा महासचिव को नोटिस जारी किया है।

Mar 25, 2017 / 10:59 am

सबको एक ही तराजू में तोलने की प्रवृत्ति अनुचित

बालकवि बैरागी 

सांसदों को आजीवन पेंशन देने का प्रावधान संसद ने ही कानून बना कर किया है। यह व्यवस्था काफी सोच-समझकर की गई होगी। जो लोग इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट लेकर गए हैं उनके तर्कों को इलाहाबाद हाईकोर्ट खारिज कर चुका है।
दरअसल इस मामले में पूर्व सांसदों की छवि को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली खुद सरकार की ओर से इस मामले में वक्तव्य दे चुके हैं इसलिए इसके बाद कोई बहस की गुंजाइश नहीं बचती। जेटली साफ कह चुके हैं कि यह संसद का अधिकार है कि जनता का धन किस तरह से खर्च किया जाए। 
कोई अन्य संस्था इसे तय नहीं कर सकती। जैसा मैंने शुरू में ही कहा कि इस देश की संसद ने ही सांसदों की पेंशन तय की है। मैं खुद पूर्व सांसद की हैसियत से इस सुविधा को हासिल कर रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने भी संसद के दोनों सदनों से ही इस सुविधा के बारे में पूछा है। 
जाहिर है कि भविष्य में इस दिशा में कोई और बदलाव करना है तो वह संसद को ही करना है। लेकिन वेतन-भत्ते और पेंशन जैसी सुविधाओं को लेकर ऐसी छवि बनाना ठीक नहीं कि यह सब-कुछ बिना काम किए ही दिया जा रहा है। 
हमारे यहां डॉ. कर्ण सिंह जैसे सांसद भी रहे हैं जिन्होंने वेतन-भत्तों के नाम पर सरकार से एक पैसा नहीं लिया। जो पूर्व सांसदों में अस्सी फीसदी के करोड़पति होने की बात कह रहे हैं उनको हकीकत का पता नहीं हैं। 
मैं अपनी बात कहूं तो मेरे पास सांसद रहने के बाद भी देश-विदेश में कहीं भी जमीन का एक इंच टुकड़ा नहीं है। मैं अपने बेटे के साथ रहता हूं। मेरे जैसे कई पूर्व सांसद इस देश में हैं। ऐसे लोग जो सांसद रहते हुए अपना पूरा समय जनसेवा में खपा देते हैं। क्या उनको भविष्य में जीवनयापन के लिए निश्चित राशि नहीं दी जानी चाहिए? 
फिर यह प्रावधान चुनाव जीतने वाले के लिए ही है। किसी पराजित उम्मीदवार को तो नहीं। सबको एक तराजू में तोलने की प्रवृत्ति को मैं उचित नहीं मानता। जो लोग पूर्व सांसदों को पर्याप्त धन-संपदा वाला समझते हैं वे एक बार नई दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक व साउथ ब्लॉक का चक्कर लगा लें तो हकीकत से वाकिफ हो जाएंगे। आज भी कई पूर्व सांसद नई दिल्ली में मौजूदा सांसदों के सरकारी आवासों में ही रह रहे हैं। 
हां, संसद सदस्यों को काम नहीं तो वेतन नहीं के मामले पर काफी बहस पहले भी हुई है। यह होना भी चाहिए कि सदन में व्यवधान हो तो वेतन-भत्ते सदस्यों को न मिले। लेकिन सदन में कामकाज का माहौल बना रहे इसकी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की ही होती है। 
वित्त मंत्री के यह कहने के बाद अभी इस मसले पर कुछ कहने को नहीं बचता कि यह विशेष अधिकार संसद को है कि कौन व कितनी सरकारी पेंशन लेने का हकदार है।

किसे पेंशन मिले और किसे नहीं, इसके मापदण्ड बनें 
प्रो. त्रिलोचन शास्त्री

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों की पेंशन के मामले में एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग सहित लोकसभा और राज्यसभा महासचिव को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया था कि सांसदों को पेंशन मिलना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
यह अनुच्छेद देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करती है। चूंकि रिटायरमेंट के बाद पेंशन तभी मिलती है जब उसमें कर्मचारी और नियोक्ता का अंशदान रहा हो। सांसद अपने कार्यकाल के दौरान अपने वेतन-भत्तों में से किसी प्रकार अंशदान पेंशन के लिए नहीं देते हैं और न ही सरकार इस प्रकार का कोई योगदान देती है। 
संसद ने सांसदों की पेंशन के लिए किसी प्रकार के निश्चित कार्यकाल या उम्र का प्रावधान अभी नहीं किया है। अभी तो यह हो रहा है कि कोई व्यक्ति एक दिन सांसद रह लेता है तो वह भी पेंशन का हकदार हो जाता है। 
इतना ही नहीं यदि वह पहले विधायक भी रहा है तो उसकी पेंशन भी उसे मिलती रहती है। पूर्व सांसद के निधन के बाद उनकी पत्नी/पति अथवा आश्रित को आजीवन पारिवारिक पेंशन दी जाती है। दिलचस्प तथ्य यह है कि आम तौर पर सरकारी कर्मचारी निर्धारित आयुसीमा के बाद पेंशन का हकदार होता है लेकिन यदि कोई 25 वर्ष की आयु में सांसद बन जाता है और बीच में ही सदस्यता छोड़ दे तो भी उसकी आजीवन पेंशन शुरू हो जाएगी। 
जब-जब दोहरे मापदण्ड नजर आते हैं तो जाहिर है कि आम जनता में रोष उत्पन्न होगा ही। यह कहा जा रहा है कि अभी 80 फीसदी सांसद करोड़पति हैं। सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि आखिर करोड़पति सांसद पेंशन के हकदार क्यों? मैं तो यह कहना चाहता हूं कि इन आंकड़ों के आधार पर तो महज बीस फीसदी मौजूदा सांसद ही ऐसे होंगे जिनके बारे में कहा जा सकता है कि उनके सांसद न रहने पर जीवन यापन के लिए पेंशन जरूरी होगी। 
हमें यह बात समझनी चाहिए कि इस देश की आजादी के तत्काल बाद जो सांसद पहली बार चुने गए उनमें अधिकांश आजादी के आंदोलन की उपज थे। ये सब सेवाभाव से राजनीति में आए थे। तब तो इनकी पेंशन का प्रावधान भी नहीं था। जब सांसदों को पेंशन मिलना शुरू हुआ तब भी शर्त यह थी कि एक कार्यकाल पूरा करने वालों को ही पेंशन दी जाएगी। इसके बाद नियमों में बदलाव किए जाते रहे। आज के हालात काफी बदले हुए हैं। 
मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अब यह वक्त आ गया कि जनप्रतिनिधि जनसेवा को छोड़कर सिर्फ अपने वेतन-भत्ते और सुविधाओं की चिंता करना छोडें। सिर्फ उन्हीं पूर्व सांसदों को पेंशन मिलनी चाहिए जो वास्तव में जरूरतमंद हों। किसे पेंशन मिलनी चाहिए और किसको नहीं, इसे तय करने के लिए संसद एक कमेटी गठित कर सकती है। 

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