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ओपिनियन

क्या ज्यादा समय खुलें सरकारी दफ्तर?

श्रम कानूनों के अनुसार देश में कार्यस्थलों पर मानक कार्य अवधि प्रति सप्ताह 48 घंटे नियत है। शनिवार के समय को प्रतिदिन एक से डेढ़ घंटा बढ़ाकर समायोजित किया गया।

Apr 22, 2017 / 10:32 am

पांच दिन बहुत, बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं

ब्रजेश उपाध्याय

देश में पहली बार 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पांच दिन के सप्ताह की योजना को प्रस्तुत किया था। यह योजना पश्चिमी देशों की तर्ज पर केन्द्र सरकार के शासकीय कार्यालयों के लिए थी। इसके अन्तर्गत सोमवार से शुक्रवार तक कार्यदिवस व शनिवार और रविवार को अवकाश का प्रावधान था। 
श्रम कानूनों के अनुसार देश में कार्यस्थलों पर मानक कार्य अवधि प्रति सप्ताह 48 घंटे नियत है। शनिवार के समय को प्रतिदिन एक से डेढ़ घंटा बढ़ाकर समायोजित किया गया। सरकारी दफ्तरों में प्रति सप्ताह पांच दिवसीय कामकाज का मुख्य उद्देश्य वहां होने वाली बिजली की खपत कम करना, कर्मचारियों के कार्यालय आने-जाने पर होने वाले महंगे ईंधन की बचत, दो दिन यातायात भार में कमी व बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करना था। 
जनता से जुड़े सार्वजनिक दफ्तरों का कार्यकाल पूर्व की तरह ही छह दिन का रखा गया। दिल्ली में इसके सफल क्रियान्वयन व ऊर्जा बचत में इसके सकारात्मक परिणामों ने देश की अन्य राज्य सरकारों को भी प्रभावित किया। 
बहुत सी राज्य सरकारों ने भी अपने राज्य के कार्यालयों में पांच दिवसीय कार्य सप्ताह लागू कर दिया। इसके लागू होने के बाद कर्मचारियों के कार्यव्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं। प्रतिदिन कार्य अवधि के बढ़े हुए घंटों ने उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं किया । 
शनिवार के अतिरिक्त अवकाश ने उनको अपने परिवार व समाज के बीच समय बिताने का मौका दिया। मेरा मानना है कि इससे उनकी मनोदशा पर सकारात्मक असर पड़ा है। इसका प्रभाव उनके दैनिक कार्य में परिलक्षित हो रहा है। 
वहीं दूसरी ओर सरकार को बिजली, पेट्रोल जैसे ऊर्जा संसाधनों की खपत कम करने में मदद मिली है। इससे देश को भी काफी विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। हाल ही कर्मचारियों के मध्य ऐसी अफवाहें जोर पकड़ रही थीं कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में पांच दिवसीय सप्ताह को छह दिवसीय करने की योजना है। 
केंद्र सरकार ने इन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया। सरकार ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में ऐसी कोई योजना नहीं है। भविष्य में ऐसा कोई प्रस्ताव होगा तो पहले कर्मचारियों से सलाह ली जाएगी। जहां तक पांच दिवसीय कार्य सप्ताह की बात है, यह विश्व के अनेक देशों में बहुत समय से लागू है व वहां काफी लोकप्रिय भी है। 
यह अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के अनुरूप है। किसी कर्मचारी संगठन अथवा संस्थान ने इसे अपने लिए हानिकारक नहीं माना है। न ही किसी सरकार ने इसे बदलने में कोई रुचि दिखाई है। जहां तक हमारे देश की बात है तो कर्मचारियों पर कार्य के बढ़ते दबाव व देश में प्रदूषण के खतरनाक हालात को देखते हुए पांच दिवसीय कार्य सप्ताह अब और ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।
समय से ज्यादा जरूरी कार्य संस्कृति पनपाना

प्रो. अमिता सिंह

समस्या है तभी तो सरकारी कर्मचारियों की कार्यावधि बढ़ाने और उनके सप्ताह में दो दिन के अवकाश को एक दिन का करने की बात उठती है। लेकिन, मेरा मानना है कि ऐसा करने का तब तक कोई लाभ नहीं होने वाला जब तक कि आधारभूत प्रशासनिक सुधार नहीं किए जाते। 
देश को यदि बेहतर तरीके से संचालित करना है तो प्रशासनिक सुधार बहुत ही जरूरी हो जाते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि जहां काम को पूजा समझ कर काम करने वालों का सवाल है तो कर्मचारी जान लगाकर काम करते हैं। उन्हें काम के घंटे बढ़ाने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे काम करते हैं। 
काम को पूरा करने के लिए वे कार्य के लिए निर्धारित समय के अतिरिक्त बैठकर भी काम करते हैं। यहां तक कि वे अवकाश दिवस पर भी कामकाज करते हैं। लेकिन, दफ्तरों में हालात इस किस्म के हो गए हैं कि श्रेणी एक और श्रेणी दो के कर्मचारी/अधिकारी जिन पर किसी भी फैसले की जिम्मेदारी होती है, उन्हें तो कार्य समय के अतिरिक्त और अवकाश दिवस पर भी काम करना पड़ता है। 
समस्या तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों में आती रही है। लेकिन, जब से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को संविदा पर रखने की शुरुआत हुई है, तब से उनमें काफी सुधार हो गया है। और, फिर कार्य को लेकर उनकी जिम्मेदारी नहीं होती है। 
उन्हें तो रखरखाव के लिहाज से शनिवार को आना भी पड़़ता है। ऐसे में उनके कार्य दिवस बढ़ाने और शनिवार का अवकाश रद्द करने के प्रस्ताव का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जहां तक तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का प्रश्न है तो वे आंशिक रूप से कार्य के संबंध में जिम्मेदार होते हैं। 
वे अधिकतर लिपिकीय कार्य या सहायक की भूमिका में रहते हैं। लेकिन, ऐसा देखने में आता है कि वे दफ्तरी कामकाज के मामले में कम ही रुचि लेते हैं। वे कार्यालय की जिम्मेदारी के मुकाबले सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने में अधिक रुचि लेते हैं। 
उदाहरण के तौर पर अब लिपिकीय कार्य कागज रहित हो गया है। ज्यादातर कामकाज कंप्यूटर पर ही होता है। तृतीय श्रेणी वर्ग के कर्मचारियों को कई बार प्रशिक्षण भी दिया जाता है लेकिन हर बार उनका एक ही बहाना रहता है कि उन्हें कंप्यूटर पर कामकाज नहीं आता। 
यह भी देखा जाता है कि वे कंप्यूटर पर इंटरनेट का निजी उपयोग करते हैं लेकिन कार्यालय कामकाज के समय उन्हें कंप्यूटर कामकाज की जानकारी ही नहीं होती। जरूरत है उन्हें कड़ा प्रशिक्षण दिया जाए वह भी घर से दूर रखकर और फिर उनके कामकाज की निरंतर निगरानी हो और काम की समीक्षा की जाती रहे। तृतीय श्रेणी कर्मचारियों के कामकाज की समीक्षा प्रबंधकीय विशेषज्ञ द्वारा की जाए। इस तरह से कार्य संस्कृति को सुधारा जाए, कार्यावधि बढ़ाने का लाभ नहीं होगा।

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