ओपिनियन

मृदा स्वास्थ्य कार्ड से सुधर रही है खेतों की मिट्टी की सेहत

5 दिसंबर: विश्व मृदा दिवस – मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांटने के बाद के सर्वे में पाया गया कि 8-10 प्रतिशत उर्वरक खपत कम हुई तथा फसलों की उपज में भी 5-6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

नई दिल्लीDec 04, 2021 / 10:07 am

Patrika Desk

नई दिल्ली। मानव की तरह खेत की मृदा भी बीमार हो जाती है। पौधों की बढ़वार के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। प्रमुख रूप से एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी या अधिकता, भूमि का अम्लीय, लवणीय व क्षारीय होना और जल प्लावन भूमि की प्रमुख बीमारियां हैं। इन्हीं के कारण कोई भूमि उपजाऊ होते हुए भी उत्पादक नहीं होती है। वर्षों से लगातार खेती, अंधाधुंध, असंतुलित और उच्च सांद्रता युक्त उर्वरकों का उपयोग, कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों व अन्य रसायनों का आवश्यकता से अधिक उपयोग, देसी खाद का कम इस्तेमाल और उपयुक्त फसल चक्र का समावेश न करना इसका प्रमुख कारण है।
1950 के आसपास भारत की मृदाओं में मुख्यत: नाइट्रोजन की कमी थी, लेकिन लगातार खेती करने से अब लगभग 10 पोषक तत्वों की कमी आ गई है। पौधों की बढ़वार एवं उपज के लिए पोषक तत्वों का संतुलित एवं आवश्यक मात्रा में होना अति आवश्यक है। नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का आदर्श अनुपात बिगड़ गया है। उर्वरकों के असंतुलित उपयोग ने समस्या बढ़ाई है।
यह भी पढ़ेंः द वाशिंगटन पोस्ट से… कोविड-19 के लिए सरकार की तैयारी क्या थी? जांच के लिए आयोग का गठन आवश्यक

भारत में 83 प्रतिशत से अधिक मृदाओं में नाइट्रोजन की कमी पाई गई है। फास्फोरस का स्तर मध्यम व पोटाश का स्तर उपयुक्त पाया गया है। देश की मृदाओं में से 34 प्रतिशत में जिंक, 31 प्रतिशत में लोहा, 4.8 प्रतिशत में तांबे, 22.6 प्रतिशत में बोरोन और 39.1 प्रतिशत में गंधक की कमी पाई गई है।
फसलों की उपज भूमि के अन्य विकारों से भी कम हो जाती हैं। भारत की 6.43 मिलियन हेक्टेयर मृदाओं में क्षार या लवणों की मात्रा अधिक है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में इनकी जांच की जाती है। गौरतलब है कि कोई उपाय नहीं किए जाएं, तो पौधों को पोषक तत्व नहीं मिल पाते। भूमि के भौतिक विकारों के कारण फसलों की उपज कम हो जाती है।
मृदा की इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की थी। योजना के अंतर्गत किसानों की प्रत्येक जोत के जीपीएस आधारित मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा रहे हैं। इन कार्डों में भूमि में उपस्थित पोषक तत्वों एवं विकारों को ध्यान में रख कर फसल के अनुसार उर्वरक की सलाह दी जा रही है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना में अब तक देश के 22 करोड़ 56 लाख किसानों को कार्ड वितरित कर दिए गए हैं। योजना के तहत 429 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं, 102 चल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं और 8452 सूक्ष्म मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं मृदा परीक्षण का कार्य कर रही हैं।
यह भी पढ़ेंः Patrika Opinion : किस हांडी में पकेगी विपक्ष की खिचड़ी

स्वास्थ्य कार्ड आधारित उर्वरक उपयोग से जहां हम ज्यादा मात्रा में उर्वरक दे रहे थे, वहां मात्रा कम हो रही है। उर्वरक की अधिक मात्रा पौधे के काम की नहीं होती। इससे किसान की फसल उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
जहां किसान कम उर्वरक उपयोग करता है, परन्तु कार्ड में अधिक मात्रा की अनुशंसा है, तो उस किसान को निश्चित रूप से फसल की अधिक उपज मिलेगी एवं उसकी प्रति किलोग्राम उत्पादन लागत भी कम आएगी।
मृदा कार्ड बांटने के बाद के सर्वे में पाया गया कि 8-10 प्रतिशत उर्वरक खपत कम हुई तथा फसलों की उपज में भी 5-6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

प्रवीण सिंह राठौड़
(श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं)

Home / Prime / Opinion / मृदा स्वास्थ्य कार्ड से सुधर रही है खेतों की मिट्टी की सेहत

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.