शराबबंदी की मांग को लेकर जयपुर में 32 दिनों से अनशन कर रहे पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा का निधन राजस्थान की सरकार ही नहीं, सम्पूर्ण समाज पर काले धब्बे की तरह है।
जब-जब राजस्थान की पीढि़यां, शराब और उसके चलन को रोकने के लिए हुए आन्दोलनों को पढ़ेंगी, छाबड़ा का बलिदान याद किया जाएगा। साथ ही यह भी हमेशा याद किया जाएगा कि 32 दिनों के आन्दोलन में मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के किसी मंत्री या अधिकारी ने उनसे कोई सार्थक बात नहीं की।
इसी तरह यह भी कि जिस समाज के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया, वह उनके साथ कहीं खड़ा नजर नहीं आया। यह तो वही बात हुई कि भगत सिंह पैदा होना चाहिए पर पड़ोसी के घर में। इस मानसिकता वाले समाज ज्यादा समय तक समाज नहीं रह पाते हैं।
जाति, धर्म और समाज के ठेकेदारों के साथ तमाम राजनीतिक दलों को भी इस पर चिंतन-मनन करना चाहिए। चिंतन इस बात पर भी होना चाहिए कि क्या प्रदेश ही नहीं, देश में शराबबंदी संभव है? अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मौकों पर शराबबंदी की मांग उठती रहती है।
धरने भी दिए जाते हैं और प्रदर्शन भी होते हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में हर मुद्दे पर समाज की राय जुदा होती है। शराबबंदी का मुद्दा भी ऐसा है, जिसे लेकर समाज विभाजित है। शराब का सीधा ताल्लुक जहां राजस्व प्राप्ति से जुड़ा है। राज्यों की राजस्व उगाही का बड़ा स्रोत आबकारी विभाग माना जाता है। सिक्के का दूसरा पहलू शराब के स्याह पक्ष की कहानी बयां करता है।
शराब के नशे के कारण होने वाले अपराध समाज में सदा भय का माहौल बनाए रखते हैं। शराब का सेवन पारिवारिक कलह के साथ अनेक परिवारों की बर्बादी का कारण भी बनता है। गुजरात एक उदाहरण है देश के सामने जहां लम्बे समय से शराबबंदी है लेकिन फिर भी वह विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार है।
यह बात अलग है कि शराबबंदी के बावजूद गुजरात में आसानी से शराब मुहैया हो जाती है। दूसरे राज्यों से तस्करी के जरिए लाई गई शराब से वहां की सरकार को राजस्व की प्राप्ति नहीं हो रही लेकिन आबकारी विभाग और पुलिस से लेकर शराब तस्कर तक इस काम में मोटा मुनाफा कूट रहे हैं। देश के चंद राज्यों में शराबबंदी हो भी जाए तो कोई फर्क नजर नहीं आएगा। एक राज्य में शराब बंद हुई तो गुजरात की तरह दूसरे राज्यों के रास्ते खुल जाएंगे।
लिहाजा शराबबंदी करनी ही है तो समूचे देश में एक साथ लागू करने पर विचार करना चाहिए। पर्यटन सहित इसके सभी पक्षों पर गंभीरता से विचार किया जाए और सभी तबकों को विश्वास में भी लिया जाए।
इतिहास साक्षी है कि कोई भी बात थोपने से किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता। शराबबंदी बड़ा मामला है, इसलिए इस पर कोई भी फैसला व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाना चाहिए। छाबड़ा के निधन ने नई बहस का अवसर उपलब्ध कराया है, इसलिए इस पर खुलकर बहस भी की जानी चाहिए और कोई रास्ता तलाशने की कोशिश भी की जानी चाहिए।
कोई भी बात थोपने से किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता। शराबबंदी बड़ा मामला है, इसलिए इस पर कोई भी फैसला व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाना चाहिए।