विजयादशमी असत्य पर सत्य, हिंसा पर करुणा, लोक शासन पर लोक कल्याण, तानाशाही पर लोकमत और अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है। यह राम के रावण पर विजय का पर्व है। यह पर्व है भारत में लोक कल्याणकारी आध्यात्मिक जीवन दृष्टि से संपन्न रामराज्य की स्थापना का। यह केवल उत्सव मात्र नहीं है और शत्रु पर विजय की कामना का पर्व भी नहीं है। यह अवसर है शत्रु भाव के नाश का और मित्र भाव के उदय का। राम रावण युद्ध के पूर्व ही राम ने स्नेह, औदार्य, करुणा, मुदिता, धैर्य, शुचिता, सत्य, इत्यादि मूल्यों को अपनी विजय का उद्देश्य प्रतिपादित किया था। पैदल राम, वनवासी राम, विरथ राम, त्रिलोक विजयी रावण के अत्याचारी और लोलुप राजसत्ता को अत्यंत साधारण जीवों के बल पर चुनौती देते हैं। वे सादगी, शुचिता, मर्यादा और नैतिकता के बल पर आसुरी सभ्यता पर विजय अर्जित करते हैं। यह राजा की नहीं, राम की विजय है, संस्कार की विजय है, इसलिए वास्तविक विजय है और यह पर्व सच्चे अर्थों में भारत के जन-जन का विजय पर्व है।
आजादी के अमृत महोत्सव पर विजयादशमी का विशेष महत्त्व है। यही वह दिन है जब 1909 को इंडिया हाउस में ‘हिंद स्वराज’ का विचार महात्मा गांधी के मन में उपजा था। बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सन् 1956 में विजयादशमी के दिन ही नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली थी। उन्होंने अस्तेय, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य और मादक द्रव्यों के त्याग के पंचशील का संकल्प स्वीकार करते हुए नैतिकता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित समतामूलक समाज का उद्घोष किया था। इस बार की विजयादशमी विशिष्ट है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय का सर्वोदय और अंत्योदय विकास का एकमात्र रास्ता है। भारत ने इसका शंखनाद किया है। वस्तुत: यह शोषणकारी सभ्यता के विरुद्ध समता, ममता और पोषणकारी दृष्टि से युक्त सभ्यता का पावन पर्व है। विजय का तात्पर्य मनुष्य या अन्य किसी प्राणी को दास बनाना नहीं है, बल्कि पाशविक प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करना है।
यही वह तिथि है जब नौ दिन तक चले कलिंग युद्ध के नरसंहार से व्यथित चंड अशोक ने धम्म दीक्षा ली थी। दशहरा पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। भारतीय इतिहास में यह ऐसा पर्व है, जो असलियत में हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है। रावण दहन कर हम सत्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। विजय का हिन्दू अर्थ है स्वधर्म और स्वदेश की रक्षा, न कि युद्ध कर दूसरों की भूमि, धन और स्वत्व का अपहरण। यही निहितार्थ है विजयपर्व विजयादशमी का। ऐसी विजय में किसी का पराभव नहीं होता, राक्षसों का भी पराभव नहीं हुआ, केवल रावण के अहंकार का संहार हुआ।
विजय का सभ्यतागत अर्थ है सर्वोदय के भाव से मानव एवं सभ्यता के रिपुओं का दमन। विजय यात्रा का तात्पर्य है इंद्रियों की लोलुप वृत्ति का दमन कर चिन्मयता का विस्तार और विजयादशमी का अर्थ है काम, क्रोध आदि दस शत्रुओं पर विजय का अनुष्ठान। यही विजय वास्तविक विजय है। दशहरे को इसलिए भारत में विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि अन्य विजय सत्ता के युद्ध हैं। इनका लक्ष्य एक को हरा कर अन्य सत्ता को प्रतिस्थापित करना है। इन सब में प्रतिशोध का असात्विक भाव है, साथ ही सत्ता का राजसिक अहंकार भी है। राम की विजय वानर, ऋक्ष और पैदल चलने वाले मनुष्य की सत्य और नैतिकता के लिए कृत संघर्ष की विजय गाथा है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर और स्वयं की सफलता की आपाधापी से परे सभी के कल्याण की कामना के साथ किया गया युद्ध ही विजयादशमी का पाथेय है।