scriptट्रिपल तलाक: शरीयत या संविधान | spotlight | Patrika News
ओपिनियन

ट्रिपल तलाक: शरीयत या संविधान

भारतीय संविधान में किसी भी धार्मिक समुदाय को यह अधिकार नहीं दिया गया है कि उसके धार्मिक या व्यक्तिगत रीति-रिवाजों का दर्जा देश के कानून से ऊपर होगा। मुस्लिम समुदाय में ट्रिपल तलाक की व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे को समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ाया जा रहा कदम माना जा

Oct 22, 2016 / 12:49 am

भारतीय संविधान में किसी भी धार्मिक समुदाय को यह अधिकार नहीं दिया गया है कि उसके धार्मिक या व्यक्तिगत रीति-रिवाजों का दर्जा देश के कानून से ऊपर होगा। मुस्लिम समुदाय में ट्रिपल तलाक की व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे को समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ाया जा रहा कदम माना जा रहा है। मुस्लिम महिला अधिकार आंदोलन से जुड़े लोग इससे खुश हैं वहीं मजहबी उलेमा इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बता रहे हैं। इस मसले पर बड़ी बहस…
तलाक के मसले को लेकर दरअसल इन दिनों गुमराह करने का दौर चला है। सच माने तो इसकी आड़ में सरकार मुसलमानों पर समान नागरिक संहिता थोपने की साजिश में है। मेरा मानना है कि भारत का संविधान मुकम्मल है। यहां समान नागरिक संहिता की ज्यादा जरूरत इसलिए नहीं कि यहां सभी वर्ग-समुदाय के अपने-अपने रीति-रिवाज है और वे उसी के अनुरूप सामाजिक रस्मों की अदायगी करते हैं। हिन्दुओं को ही लें, यहां रावण के पुतले जलाए जाते हैं तो उसको पूजा भी जाता है। कहीं अंतिम संस्कार के लिए शव को दफनाया जाता है तो कहीं अग्नि के सुपुर्द किया जाता है तो कहीं जल समाधि दी जाती है। मेरा मानना है कि तीन तलाक के मसले पर भी जो माहौल बनाया जा रहा है उसका कारण यह है कि ऐसे मामलों में शरीयत की पूरी तरह पालना नहीं की जा रही। एक ही सांस में तीन बार तलाक कह कर वैवाहिक संबंध तोडऩे का न तो कुरान में उल्लेख है और न ही शरीयत में। इस्लाम में तो दूसरी शादी की इजाजत को लेकर भी पाबंदी है। साफ कहा गया है कि दूसरा निकाह करने पर हो सकता है तुम अपनी पहली बीवी को न्याय नहीं दे पाओ। यदि ऐसा हो तो तुम दूसरा निकाह मत करो। देश में सभी को आजादी से रहने का अधिकार है। हम मुसलमान हैं इसलिए यह बात नहीं कह रहे बल्कि इसलिए कह रहे हैं कि हम सबसे पहले भारतीय हैं। तलाक को लेकर जो प्रक्रिया इस्लाम में तय है उसमें तलाक के लिए 90 दिन की अवधि तय है। एक ही सांस में तीन बार तलाक तो विवेक सम्मत हो ही नहीं सकता। क्योंकि इंसानी स्वभाव में गुस्सा, गलतफहमी और गुमराह होना भी शामिल है। 
हमने तीन तलाक की इस प्रक्रिया के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई थी। मुल्ला-मौलवियों का हमें कोपभाजन भी बनना पड़ा था। लेकिन अब जो माहौल बहस का हो रहा है वह समान नागरिक संहिता की बात करने वाले बना रहे हैं। जहां तक कि बात मुस्लिम विवाह पद्धति में सुधार की है हमने खुद सरकार से मांग की है कि हिन्दू विवाह कानून की तरह मुस्लिम विवाह कानून भी बनाया जाना चाहिए। अभी भी मुसलमानों में निकाह एक अनुबंध है और गवाहों के सामने दुल्हन इस अनुबंध को मंजूर करती है। मुस्लिम समुदाय में निकाह, तलाक, दूसरा निकाह तथा विरासत आदि के बारे में प्रावधान कर मुस्लिम मैरिज एक्ट बनाया जा सकता है। हमने वर्ष 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील को इस सम्बन्ध में पूरा मसौदा बनाकर सौंपा था कि किस तरह से मुस्लिम मैरिज एक्ट बनाया जा सकता है। मेरा मानना है कि मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए काम तब सबसे बेहतर होगा जब उनको कुरीतियों के जाल से मुक्त कराया जाएगा। हां, कोई बदलाव हो तो वह भी शरीयत के दायरे में ही होना चाहिए न कि कोर्ट या सरकार के जरिए। 
शाइस्ता अम्बर 

आल इंडिया मुस्लिम वीमन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष 

भारत का संविधान मुकम्मल है। यहां समान नागरिक संहिता की ज्यादा जरूरत इसलिए नहीं कि यहां सभी वर्ग-समुदायों के अपने-अपने रीति-रिवाज है और वे उसी के अनुरूप सामाजिक रस्मों की अदायगी करते हैं।
कई मुस्लिम देशों में ये प्रथा नहीं, हमारे यहां क्यों

भारतीय मुस्लिमों में प्रचलित ट्रिपल तलाक (तीन तलाक) की प्रथा पर रोक लगनी चाहिए। तीन बार तलाक, तलाक, तलाक बोलने से भी तलाक मान्य हो जाता है। कई बार तो फोन पर या एसएमएस से तलाक दे दिया जाता है और मान्य होता है। यह तरीका बिल्कुल गलत है क्योंकि इसका सीधा असर औरत और बच्चों की जिंदगी पर पड़ता है। व्यक्ति कई बार गुस्से में भी बोल देता है। अगर किसी आदमी या औरत को तलाक चाहिए तो इसके लिए कम से कम तीन महिने का वक्त मिलना चाहिए जिससे उनमें अगर कोई गलतफहमी या नाराजगी है तो उसको बातचीत के माध्यम से दूर की जा सके। इससे कई विवाह टूटने से बच सकेंगे। इस समय के दौरान भी सुलह नहीं हो तो वो तलाक ले सकते हैं। भारत में तीन तलाक से काफी संख्या में मुस्लिम महिलाएं पीडि़त हैं। भारत के 13 राज्यों में हम ऐसी काफी महिलाओं से मिले हैं। वैसे तीन तलाक भारत के पूरे मुस्लिम समुदाय में प्रचलित नहीं है। यह मुस्लिम समुदाय के किसी वर्ग में है, तो किसी वर्ग में नहीं है। 
इसके पक्षधरों का यह तर्क है कि यह शरीयत के अनुसार सही है। लेकिन तीन तलाक कुरान के अनुसार सही नहीं है। कुरान में तलाक के संबंध में कहा गया है कि ख्याल आने और तलाक लेने के बीच समय होना चाहिए। दुनिया के 22 मुस्लिम देशों में तीन तलाक की प्रथा खत्म की जा चुकी है। इन देशों में तीन तलाक पर कानूनन रोक लगी हुई है। तीन तलाक के पक्षधर लोग मुस्लिम समुदाय को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं। वह नहीं चाहते की मुस्लिम समुदाय पर उनकी पकड़ ढीली हो जाए। ये लोग मुस्लिम महिलाओं को भी बराबरी का हक नहीं देना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि मुस्लिम महिलाएं पढ़-लिखकर प्रगति करके उनके बराबर आएं। राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। राजनीतिक दल तीन तलाक के मुद्दे पर सुविधा की राजनीति कर रहे हैं। दल अपना सियासी नफा-नुकसान देखकर ही इसके पक्ष और विपक्ष में राजनीति कर रहे हैं। हां, कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जो राजनीति से परे इस पर बात कर रहे हैं। 
वह महिलाओं की समस्याओं को समझ रहे हैं। कुछ लोग तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का आपस में घालमेल कर रहे हैं। यह नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि समान नागरिक संहिता और तीन तलाक दोनों अलग-अलग चीजें हैं उन्हें उसी हिसाब से समझना चाहिए। समान नागरिक संहिता केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए नहीं है इसमें अन्य समुदाय की महिलाएं भी सम्मिलित हैं। वैसे भी मुस्लिम महिलाओं के सामने मौजूदा समय में काफी समस्याएं हैं जिनको दूर किया जाना जरूरी है। मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी है और वह गरीबी से लड़ रही हैं। इनमें बदलाव तो आ रहा है लेकिन गति धीमी है, जिसे और तेज करने की जरूरत है।
नूरजहां सफिया नियाज

सहसंस्थापक, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन

कुछ लोग तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का आपस में घालमेल कर रहे हैं। यह नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि समान नागरिक संहिता और तीन तलाक दोनों अलग-अलग चीजें हैं उन्हें उसी हिसाब से समझना चाहिए। 

Home / Prime / Opinion / ट्रिपल तलाक: शरीयत या संविधान

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो