scriptस्पॉटलाइट: इरादा तो नेक लेकिन… | Spotlight: Government changes in FDDI in india | Patrika News
ओपिनियन

स्पॉटलाइट: इरादा तो नेक लेकिन…

भारत सरकार ने सात क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा और शर्तों में परिवर्तन किए हैं। ये परिवर्तन इस उम्मीद के साथ किए गए हैं कि देश में विदेशी कंपनियां भारी-भरकम निवेश करेंगी।

Jun 22, 2016 / 03:35 am

केंद्र सरकार ने रक्षा, फार्मा, उड्डयन आदि क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए किए भारी परिवर्तन…

भारत सरकार ने सात क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा और शर्तों में परिवर्तन किए हैं। ये परिवर्तन इस उम्मीद के साथ किए गए हैं कि देश में विदेशी कंपनियां भारी-भरकम निवेश करेंगी। लेकिन, सवाल यह है कि फार्मा उद्योग में अनुमति के साथ 74 फीसदी से अधिक निवेश की मंजूरी किन कंपनियों को लाभ पहुंचाएगी? फूड रिटेलिंग और ई-कॉमर्स की कंपनियों को यदि बराबरी की प्रतिस्पर्धा का माहौल नहीं मिला तो एफडीआई में मिलने वाली 100 फीसदी छूट का लाभ उठाने, कौनसी कंपनियां आगे आएंगी? हो सकता है कि उड्डयन और सिंगल ब्रांड स्टोर क्षेत्र निवेश का कुछ लाभ मिले पर रक्षा उद्योग क्षेत्र में आने वाली कंपनियों को लेकर संदेह है कि ये हमारी विदेश नीति तक को प्रभावित कर सकती हैं। स्पॉटलाइट में पढि़ए ऐसे ही मुद्दों पर पढि़ए विशेषज्ञों की राय…
भारत सरकार ने जिन सात क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा और शर्तो में परिवर्तन किया है, वह स्वागत किए जाने योग्य है। उम्मीद है कि इन फैसलों के परिणास्वरूप दीर्घकाल में हमें बेहतर निवेश देखने को मिलेगा। लोगों को रोजगार और वास्तविक पूंजी निर्माण के साथ देश की विकास दर दोहरे अंक में लाने में सहायता मिलेगी। फिलहाल उम्मीद की बात इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि इतना सब करने के बाद भी बहुत कुछ करना शेष रह गया है। 
छोटे दवा उद्योगों को लाभ

पूर्व में दवा उद्योग में समस्या यह थी कि हमारे देश में लागू दवा मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के कारण बाहर की बड़ी कंपनियां निवेश करने से बचती थीं। लेकिन, अब इस उद्योग में सरकार ने बिना किसी पूर्वानुमति के 74 फीसदी तक ब्राउन फील्ड में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत दी है। इससे अधिक के निवेश के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता होगी। मगर समस्या यह है कि इस क्षेत्र की 10 प्रमुख कंपनियां तेजी से विकास कर रही हैं। उन्हें अपनी इक्विटी बेचने की जरूरत ही नहीं है। ऐसे में सरकार की ओर से फार्मा उद्योग मे अनुमति के साथ ब्राउन फील्ड में 100 फीसदी निवेश की छूट मिलने पर, कोई भी विदेशी निवेशक किसी बड़ी कंपनी में निवेश तभी कर सकेगा, जबकि वह टॉप की बड़ी कंपनी को इक्विटी की असमान्य कीमत देने को तैयार हो। ऐसे में यदि इस ढील का फायदा होगा भी तो कुछ मझोली व छोटी कंपनियों को ही होगा। यदि सरकार को फार्मा उद्योग में छूट देनी ही थी तो ग्रीन फील्ड में देनी थी। इसी से एफडीआई में बढ़ोतरी होती। 
बराबरी का मौका नहीं

देश में उत्पादित वस्तुओं को बेचने के लिए ही फूड रिटेल और ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दी है। कहने में तो बहुत ही अच्छा लगता है कि घरेलू दुकानदारों के हितों की रक्षा की गई है और विदेशी निवेश के माध्यम से आने वाले उद्योगों पर देश में उत्पादित वस्तुओं को बेचने की अनिवार्य शर्त के साथ घरेलू उत्पादकों को लाभ पहुचाने की बात की गई है। लेकिन, इतनी बाधाओं के साथ कौन समझदार विदेशी निवेशक यहां कर निवेश करेगा? भारतीय दुकानदार तो आयातित माल बेचेंगे लेकिन विदेशी निवेशक ऐसा नहीं कर सकेंगे, तो वे किस फायदे के लिए यहां पर आएंगे? इसके अलावा यदि उन्होंने आयातित वस्तुएं बेचनी शुरू कर भी दीं, उन पर नियंत्रण करना भी टेढ़ी खीर होगा।
उड्डयन क्षेत्र में संभावना

नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में देश में घरेलू यात्रियोंं की संख्या दुनिया में सबसे अधिक तेजी से बढ़ रही है। प्रति माह लगभग 22 फीसदी की वृद्धि हो रही है। यह बात बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की कुछ विमानन कंपनियों की माली हालत बहुत ही खराब भी है। सरकार ने अब इस क्षेत्र में एफडीआई सीमा 49 से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी है। इस लिहाज से नागरिक उड्डयन क्षेत्र में बड़ा निवेश आने की संभावना बन सकती है। कहा जाता है कि 20-22 जहाजों के साथ नागरिक उड्डयन क्षेत्र में लाभ नहीं कमाया जा सकता, इसके लिए जितनी अधिक संख्या में जहाज होंगे और जितनी बेहतर कनेक्टिविटी होगी, उतना ही लाभ मिलेगा। ऐसे में निवेश बेहतर होने से घाटे में चल रही घरेलू कंपनियों को लाभ मिलेगा। 
जब अन्य देशों की माली हालत कमजोर है फिर भी भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों की कंपनियां भारत आकर निवेश करेंगी, यह बात समझ से परे है। 
एफडीआई यानी

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अर्थ है, किसी एक देश की इकाई का दूसरे देश की इकाई में निवेश। अंग्रेजी में इसे फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट या प्रचलित लघु रूप में एफडीआई भी कहा जाता है। इस तरह से किए जाने वाले निवेश से निवेशकों को अन्य देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा मिल जाता है, जिसमें उसका धन लगता है। घरेलू कंपनियां विदेश से अपने उद्योग के लिए धन उगाहने के उद्देश्य एफडीआई का सहारा लेती हैं। लेकिन, कितना और कैसे किस उद्योग क्षेत्र में निवेश होगा, यह फैसला केंद्र सरकार करती है। 
केंद्र सरकार ने मुख्य रूप से फार्मा उद्योग में 74 फीसदी तक ब्राउन फील्ड में बिना अनुमति के और इससे अधिक के लिए अनुमति के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत दी है। घरेलू विमानन कंपनियों में एफडीआई सीमा 49 बढ़ाकर 100 फीसदी, रक्षा, डीटीएच, मोबाइल टीवी, देश में उत्पादित खाद्य पदार्थ और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी है। 
ग्रीन व ब्राउन फील्ड

एफडीआई के लिए ग्रीन फील्ड व ब्राउन फील्ड दो श्रेणियां हैं। ग्रीन फील्ड निवेश का अर्थ है जब कोई कंपनी किसी नई परियोजना के लिए विदेशी निवेश की चाहत रखती है। ब्राउन फील्ड श्रेणी वह है जिसमें पहले से संचालित परियोजना में नई उत्पादन के लिए निवेश होता है। 
निवेश की परिस्थिति

सरकार सामान्यतौर पर तीन प्रकार से उद्योग में विदेशी निवेश को नियंत्रित करती है। पहले तो वह सीमित दायरे में पूर्वानुमति के साथ निवेश की मंजूरी देती है। दूसरे, वह सीमित दायरे में अनुमति के साथ निवेश की मंजूरी देती है। इसके अलावा निवेश को मंजूरी नही देती।
रक्षा क्षेत्र और सिंगल ब्रांड रिटेल 

र क्षा उद्योग के क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी गई है। यदि कोई कंपनी भारत आकर बंदूक, टैंक या मिसाइल बनाने भी लगे तो उन्हें बेचने के लिए बाजार चाहिए होगा। चूंकि वे भारत की धरती से उत्पादन कर रही होंगी, इसके लिए सबसे बड़ा खतरा होगा हमारी विदेश नीति पर दबाव का। हो सकता है कि उन कंपनियों के हित साधने के लिए हमें हमारी विदेश नीति के फैसलों में परिवर्तन भी करना पड़े। जहां तक सिंगल ब्रांड रिटेल के क्षेत्र में छूट की बात है तो सबसे बड़ा फायदा एपल कंपनी को होने वाला है। उसके सीईओ भारत में आए भी थे और वे अपने ही उत्पादों को भारत में बेचने के लिए एकल ब्रांड स्टोर की अनुमति चाहते थे। इस मामले में तीन साल की छूट दी गई है और इसे पांच साल और बढ़ाया जा सकता है। अब तक विदेशी कंपनी को अपने स्टोर से 30 फीसदी भारतीय उत्पाद का इस्तेमाल करने की बाध्यता थी। अब इस मामले में छूट दी गई है। अब एपल के आवेदन को हरी झंडी मिल सकती है। हो सकता है कि इसका फायदा सोनी और डेल जैसी कंपनियां भी उठाएं।
प्रो.गौरव वल्लभ, अर्थशास्त्री

Home / Prime / Opinion / स्पॉटलाइट: इरादा तो नेक लेकिन…

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो