कोविड-19 की दूसरी लहर भारत के लिए अधिक विनाशकारी साबित हुई है। इसका भार आर्थिक संसाधनों पर पड़ा है। इसलिए भारत को हिन्द महासागर में अब सैन्य आधुनिकीकरण और नौसेना विस्तार को स्थगित करना पड़ेगा। भारत को लद्दाख में सेना तैनाती को और अधिक स्थाई बनाना होगा। परिवहन और ऊर्जा के बुनियादी ढांचे तथा उन्हें बेहतर उपकरणों से लैस करने में ज्यादा लागत आएगी। दूसरी ओर, चीन किसी बड़े नुकसान से बच गया है। वह अपनी उच्च-संसाधनों वाली सेना को पूरी एलएसी पर बेहतर तरीके से जमा कर सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले तीन से चार गुना ज्यादा है।
सवाल यह है कि भविष्य में भारत के सामने नीतिगत चुनौती क्या है? उत्तरी सीमा पर चीनी सेना का बढ़ता खतरा है, तो हिन्द महासागर में तेजी से बढ़ती उसकी सैन्य मौजदूगी भी चिंताजनक है। ऐसे में भारत को संतुलन बनाना होगा। भारत ठोस सैन्य रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर इस चुनौती को संभाल सकता है। केंद्र सरकार का प्रत्युत्तर न केवल चीन के साथ भारत के रणनीतिक मुकाबले को आकार देगा, बल्कि उन देशों के हितों में भी होगा, जिनकी सक्षम और मजबूत भारत के निर्माण में हिस्सेदारी है।
लद्दाख में घुसपैठ के बाद भारत ने खुले तौर पर चीन को दो संकेत दिए हैं। पहला, संकट से आर्थिक रिश्ते बाधित होंगे। दूसरा, भारत अमरीका के साथ सुरक्षा सम्बंधों को और मजबूत करने को विवश होगा। अधिक सैन्यीकृत एलएसी लद्दाख संकट की मुख्य रणनीतिक विरासत होगी। एलएसी पर सामान्य स्थिति लाना कठिन कार्य होगा। घरेलू राजनीतिक कारणों से भारत को विवादित सीमा पर निष्क्रिय नहीं देखा जा सकता। लेकिन चीन के पक्ष में शक्ति संतुलन को झूलने से रोकने में भारत की अक्षमता चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की भारत की क्षमता को कमजोर करेगी। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने इस आधार पर भारत से रणनीतिक सम्बंधों को गहरा किया है कि सक्षम भारत चीन के सैन्य विस्तार का प्रतिकार करेगा। भारत को दिखाना होगा कि वह चीन के बढ़ते राजनीतिक-सैन्य प्रभाव को रोकने के लिए राजनीतिक रिश्ते बनाने और सैन्य क्षमता विकसित करने को तैयार है।
(लेखक एसपीयूपी में सहायक प्रोफेसर हैं)