अधिक कुशल शिक्षकों के लिए बदलना होगा ढांचा
अध्यापकों की क्षमता और उनकी प्रभावशीलता में सुधार की जरूरत है। यह तभी हो सकेगा जब शिक्षक शिक्षा व शिक्षकों को अधिक कुशल बनाने की दिशा में संरचनात्मक और व्यवस्थित परिवर्तन होंगे।
अधिक कुशल शिक्षकों के लिए बदलना होगा ढांचा
अनुराग बेहर
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन
के सीईओ शिक्षकदिवस पर शिक्षकों का जो आदर-सत्कार होता है, वह पूरे साल नहीं रहता है। शिक्षकों को ज्यादातर शिक्षा- समस्याओं के कारण के रूप में देखा जाता है। सुरक्षित नौकरी, स्कूल से अक्सर गैर-हाजिर और पढ़ाने के प्रति प्रतिबद्धता नहीं द्ग शिक्षकों के बारे में आम धारणा यही है। यह विसंगति तीन कारकों और उनके पारस्परिक प्रभावों से उत्पन्न होती है। पहला, विशिष्ट अध्यापकों के लिए सम्मान की अभिव्यक्ति जैसे ‘मेरे अध्यापकÓ और ‘मेरे बच्चों के अध्यापक।Ó दूसरा, आदर्श शिक्षक के विचार को नमन, साथ ही उस स्थिति के लिए दुख जो नदारद है और जिसकी अपेक्षा है। तीसरा, शिक्षा प्रणाली की खामियों के लिए शिक्षकों को मुख्य रूप से दोष दिया जाना।
तीसरे कारक को बारीकी से देखें, तो विश्लेषण की शुरुआत इस तथ्य की स्वीकारोक्ति से होती है कि स्कूलों में बच्चे वह सब नहीं सीख रहे हैं जो उन्हें सीखना चाहिए। बच्चों को लिखना-पढऩा नहीं आता और वे गणित के मामूली सवाल भी हल नहीं कर सकते। इन समस्याओं के दृष्टांत से ज्यादातर लोग दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से चुनिंदा जानकारी के आधार पर अपने-अपने तर्क गढ़ लेते हैं। इस विश्लेषण में पहली अवधारणा तो यह होती है कि कमतर पढ़ाई का कारण केवल अप्रभावी शिक्षा और शिक्षक हैं। ऐसा क्यों? फौरी जवाब दिया जाता है: इस पेशे में आए लोग पर्याप्त काम नहीं कर रहे और शायद पढ़ाने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं हैं। यह दोषपूर्ण और काफी हद तक गलत निदान है। फिर यह तर्क इतना प्रभावशाली क्यों है? कारण, यह विशेष थ्योरी गहरे से संतुष्ट करती है क्योंकि इससे समस्या के खत्म होने का बोध होता है और स्कूली शिक्षा में गड़बड़ी के लिए शिक्षक समूह को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। इस दृश्य को बलि का बकरा बनाना कहा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि शिक्षक भी वैसे ही हैं, जैसे कोई अन्य बड़ा कार्यबल समूह।
नब्बे लाख शिक्षक हैं, सभी कत्र्तव्यविमुख हो सकते हैं क्या? आइटी प्रोफेशनल्स अथवा अकाउंटेंट्स के कार्यबल समूह की तरह उनमें से कुछ मनोयोग से जुटे रहते हैं, कुछ बिल्कुल नहीं। अधिकांशत: हर रोज अपना काम ईमानदारी से करने की कोशिश करेंगे। कुछ भी हो, शिक्षक ज्यादा मेहनत करते हैं, और वह भी अधिक कठिन परिस्थितियों में। जिन बच्चों के साथ वे रहते हैं, उनके प्रति उनमें जिम्मेदारी का बोध होता है और इस भावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके प्रयास भी निश्चित रूप से स्थानीय और कई तरह की स्थितियों से प्रेरित होते हैं। एक अन्य बात, हमारी नितांत त्रुटिपूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण प्रणाली अध्यापकों को उनकी भूमिका के लिए तैयार नहीं करती। शिक्षण करियर के लिए जो प्रणाली है, वह जान-बूझकर प्रतिकूल परिणाम ही सुनिश्चित करती है और इसमें शिक्षकों की कोई गलती नहीं है। शिक्षक प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम तैयार करने वाले इस व्यवस्थित कमी के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। नई शिक्षा नीति में इस मुद्दे को गंभीरता से लिया गया है। अध्यापकों की क्षमता और उनकी प्रभावशीलता में सुधार की जरूरत है। यह तभी हो सकेगा जब शिक्षक शिक्षा व शिक्षकों को अधिक कुशल बनाने की दिशा में संरचनात्मक और व्यवस्थित परिवर्तन होंगे।
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