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ओपिनियन

सरकारों से ताकतवर बनती जा रही हैं टेक कंपनियां

प्रौद्योगिकी सामथ्र्यवान बनाती है, तो वह व्यवधानकारी भी है।
ट्विटर ने पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड टं्रप का ट्विटर अकाउंट तक ब्लॉक कर दिया था। फेसबुक ऑस्ट्रेलिया का बहिष्कार कर चुका है

May 06, 2021 / 08:23 am

विकास गुप्ता

सरकारों से ताकतवर बनती जा रही हैं टेक कंपनियां

सरकारों से ताकतवर बनती जा रही हैं टेक कंपनियां

शुभ्रांशु सिंह

अमेजन, अमरीका की ई-कॉमर्स कंपनी, का बाजार मूल्य अकेले भारत की जीडीपी का 2/3 है। अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट का बाजार मूल्य भारत और वियतनाम की संयुक्त जीडीपी से भी ज्यादा है। पिछले 15 वर्षों में दुनियाभर की प्रौद्योगिकी कंपनियों के मूल्यांकन में बेमिसाल और अपूर्व वृद्धि दिखी है। फेसबुक, अमेजन, अल्फाबेट (गूगल), माइक्रोसॉफ्ट और नेटफ्लिक्स बहुत हद तक सफल कंपनियां हैं। ये कंपनियां हमारे जीवन जीने के तरीके को भी प्रभावित करती हैं। ये पूंजीवाद के रथ को खींच रही हैं। फेसबुक का सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप समेत) पर वर्चस्व है, तो अमेजन इ-कॉमर्स क्षेत्र की दिग्गज कंपनी है, नेटफ्लिक्स वीडियो स्ट्रीमिंग में अग्रणी है। फिर जैसा कि हम जानते ही हैं कि गूगल पर उन सभी प्रश्नों के जवाब हैं, जो हम चाहते हैं। इसके साथ ही यू-ट्यूब सर्च करने पर हमें सबसे अधिक वीडियो व्यूज हासिल हो जाते हैं। जाहिर है कि ये कंपनियां अपने वित्तीय तरीकों से हटकर कुछ अलग कर रही हैं, जिससे उनका बाजार मूल्यांकन बढ़ रहा है। उनके पास एक कीमती संसाधन है और वह संसाधन है-डेटा।

इसके पीछे कंपनियों का अपने ‘नेटवर्क इफेक्ट’ का होना है। इंटरनेटजनित एल्गोरिदम उनकी इस काम में मदद करता है। यह बताता है कि अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिए किसी कार्य को कैसे निष्पादित किया जाना है। जितने अधिक उपभोक्ता कंपनियों के उत्पादों को पसंद करते हैं, उतने ही ज्यादा वे नए ग्राहकों को लुभाते भी हैं। गूगल और फेसबुक पहले से ही बड़ी कंपनियां हैं। विज्ञापनों के डिजिटल वल्र्ड में चले जाने से उनका लाभ बढ़ता ही रहेगा। फेसबुक या गूगल की तरह अन्य कंपनियां विज्ञापन दिखाकर पैसे नहीं कमाती हंै। देखा जाए तो कई कंपनियां सदस्यता मॉडल को अपना रही हैं। हालांकि, उनके प्रस्तावों का बड़ा हिस्सा नि:शुल्क होता है। क्यों? क्योंकि, आपकी खपत और डेटा वह भुगतान है, जो आप करते हैं। डेटा उन्हें ज्यादा धन उपार्जित कराने में मदद करता है। कंपनियों के इस मूल्यांकन में गोपनीयता, विनियमन और सरकारों के साथ टकराव आदि सभी निहित हैं। कॉरपोरेशन की लगातार जीत हो रही है। यही वजह है कि उनका मूल्य इतना विशालकाय है।

प्रौद्योगिकी सामथ्र्यवान बनाती है, तो वह व्यवधानकारी भी है। वह मूल्यवान बनाती है, पर स्थापित उद्योगों पर कहर भी ढाती है। इसका प्रभाव हमारी जिन्दगी के हर पहलू, नौकरियों और समुदायों पर पड़ता है। यहां तक कि हमारी जड़ों और मूलस्रोत को भी यह प्रभावित करती है, निगरानी भी रखती है। अमरीका द्वारा हाल में जारी ग्लोबल ट्रेंड्स 2040 के अनुमान के अनुसार दुनिया में वर्ष 2025 तक 6,400 करोड़ डिवाइस होंगी, जो पूरी तरह से ऑनलाइन संचालित होंगी। इनमें से सभी एक-दूसरे से जुड़ी होंगी और उन्हें मॉनिटर किया जा सकेगा।

एक बात और, आधुनिक दुनिया में प्रौद्योगिकी जितना ज्यादा ताकतवर और शक्तियों का स्रोत है, कंपनियां उतनी ही अधिक सरकार और समाज से ऊपर उठ जाती हैं। सभी ने यह देखा भी है कि ट्विटर ने पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंट तक ब्लॉक कर दिया था। फेसबुक ने आस्ट्रेलिया जैसे देश का बहिष्कार भी कर दिया था। कंटेट पर निर्णय लेने के लिए फेसबुक की अपनी खुद की ‘अदालत’ है। यह तो भविष्य की एक झलक है। आगे चलकर टेक कंपनियां लगभग सब-कुछ नियंत्रित कर सकती हैं। आप नेटवर्क तोड़ नहीं सकते। कानूनी उपायों से जानकारी नहीं निकाल सकते। समाज किस तरह से उपकरणों का इस्तेमाल करता है, उससे मूल्यों का निर्माण होता है। इस बात पर ध्यान दीजिए। अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें और सतर्क बने रहें।
(लेखक ग्लोबल मार्केट लीडर और बिजनेस कोच है )

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