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जैसा अन्न- वैसा मन

प्रकृति के सिद्धान्त समय, व्यक्ति अथवा क्षेत्र के साथ बदलते नहीं हैं। प्रकृति प्रत्येक कर्म का निश्चित फल भी देती है।

Aug 19, 2017 / 10:29 am

सुनील शर्मा

meditation

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– गुलाब कोठारी

प्रकृति के सिद्धान्त समय, व्यक्ति अथवा क्षेत्र के साथ बदलते नहीं हैं। प्रकृति प्रत्येक कर्म का निश्चित फल भी देती है। हां, यह हमारी समझ से परे है कि फल कब मिलेगा। कहते हैं- ‘वहां देर है, अंधेर नहीं है।’ कर्म का केन्द्र मन होता है। मन में इच्छा पैदा होगी तभी कर्म होगा। और मन बनता है अन्न से। ‘जैसा अन्न, वैसा मन’। मन का सत्वभाव अन्न शुद्धि पर ही टिका है। सात्विक, राजस, तामस जैसा भी अन्न खाया जाएगा वैसा ही भाव भी मन में पैदा होगा। मनु ने तो अन्न दोष को ही व्यक्ति की जीवित-मृत्यु का कारण माना है। तब क्या आश्चर्य है कि अनेक बड़े-बड़े नेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के आचरण तथा उनकी सन्तानों के आचरण आसुरी हो रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है। हर काल में होता रहा है। जाति, धर्म, राजनीतिक दलों की इसमें कोई सीमा नहीं होती। ऐसे दागी हर जगह मिल जाते हैं।
हाल ही हमारे सामने कुछ नाम सार्वजनिक हुए हैं- पूर्व मंत्री (उ.प्र) याकूब कुरेशी की चाबुक वाली बेटी आशमां, सपा नेता का भतीजा मोहित यादव, राहुल महाजन, महिपाल मदेरणा, मलखान सिंह, बी.बी. मोहन्ती, मधुकर टंडन, अमित जोगी, विकास-विशाल यादव, विकास बराला से लेकर तेजस्वी-मीसा तक के उदाहरण रिकॉर्ड पर हैं। भले ही नेता सत्ता के जोर पर अपराधों को ढंकने में कामयाब हो जाएं, किन्तु ईश्वर की नजर से कैसे बचेंगे। कहते हैं कि ईश्वर जिससे रुष्ट होता है, उसे खूब धन, समृद्धि देता है ताकि वह ईश्वर से बहुत दूर चला जाए। उसको याद भी नहीं करे। और जिससे प्रेम करता है उसको तिल-तिल कर जलाता है। ताकि वह एक पल को भी दूर न हो।
स्वामी राम नरेशाचार्य ने पत्रिका के ही एक कार्यक्रम में कहा था-‘कोई मंगल उपस्थित हो जो हमारे जीवन को उत्कर्ष देने वाला है तो हमारे यहां कहा जाता है, हमारे पुण्य का फल है। वैसे तो आपने देखा है, गलत तरीके से जीवन जीकर भी आदमी मोटा हो जाता है, बड़े पद पर चला जाता है, धनवान हो जाता है। लेकिन उसको, शास्त्र कहते हैं कि यह उसके पुण्य का फल नहीं है, उसके पाप का फल है, क्योंकि निश्चित रूप से यह उसे दु:ख देगा, लांछित करेगा, जेल में पहुंचाएगा, उसकी पीढिय़ां दर पीढिय़ां लांछित होंगी, नष्ट हो जाएंगी। यदि सही रीति से कोई आगे बढ़ा है तो ही वह सुख प्राप्त करता है और जीवन का जो परम उत्कर्ष है जहां स्थायित्व है, पुनरावर्तन नहीं है उसको प्राप्त करता है।’
मनुस्मृति में कहा है-
‘अधर्मेणैधतेतावत्ततो भद्राणि पश्यति।
सपत्नाञ्जयते सर्वान् समूलस्तु विनश्यति ॥’

अर्थात्-प्रथमत: मनुष्य अधर्म से बढ़ता है और सब प्रकार की समृद्धि प्राप्त करता है तथा अपने सभी प्रतियोगियों से आगे भी निकल जाता है किन्तु समूल नष्ट हो जाता है। इसका भावार्थ है कि अधर्म के जरिए उत्पन्न अन्न जिसके भी भोग में आएगा, उसका, उसकी सन्तानों का, सम्बन्धियों का सम्पूर्ण (जड़ सहित) नाश निश्चित है। ऐसे अन्न का अर्जन करने वाला यह सुनिश्चित कर जाना चाहता है कि इस अन्न का भोग करने वाला अपराधी, असामाजिक तत्त्व के रूप में भी जाना जाए। कुल को कलंकित भी करे तथा अन्त में समूल नष्ट हो जाए। आज जिस गति से भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है, भ्रष्ट लोगों के परिजन नित्य-प्रतिदिन समाजकंटक के रूप में सामने आते जा रहे हैं। हर युग मे ऐसे प्रमाण सामने आते रहे हैं। पारिवारिक कलह, असाध्य रोग और अकाल मृत्यु के योग बने रहते हैं। आज तो इनके नाम बड़े-बड़े घोटालों में अपयश प्राप्त करते हैं।
हम प्रकृति की सन्तान हैं। न अपनी मर्जी से पैदा होते हैं, न ही मर्जी से मर सकते हैं, केवल कर्म हमारे हाथ में है। चूंकि आज अन्न भी तामसिक हो गया है। गीता १७/१० में तामस भोजन को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि, ‘झूठ-कपट, चोरी-डकैती, धोखेबाजी आदि किसी तरह से पैसे कमाए जाएं, ऐसा भोजन तामस होता है।’ इसी तरह गीता १६/१२ में अन्यायपूर्वक धन संचय करने वाले के लिए कहा गया है कि ‘आसुरी प्रकृति वाले मनुष्यों का उद्देश्य धन संग्रह करना और विषयों का भोग करना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात, टैक्स की चोरी आदि करके, दूसरों का हक मारकर, मन्दिर, बालक, विधवा आदि का धन दबाकर और इस तरह अन्यान्य पाप करके धन का संचय करना चाहते हैं।’
आज स्वाद स्वभाव पर भारी पड़ रहा है। जंक फूड, विषाक्त अन्न और आपराधिक, भ्रष्ट आचरणों से अर्जित अन्न समाज और देश के नवनिर्माण की सबसे बड़ी बाधा है। पिछले दस-बीस वर्षों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, दल के नेताओं का इतिहास देखें, उनकी सन्तानों का आकलन आज करें, तो सारे प्रकृति के समीकरण समझ में आ जाएंगे। और यह भी समझ में आ जाएगा कि अपने परिजनों के इनसे बड़े शुभचिन्तक भी कौन होंगे, जो इनके सम्पूर्ण नाश की व्यवस्था करके जाते हैं-रावण और कंस की तरह। और यह भी तय है कि भविष्य की भी यही तस्वीर है। भ्रष्टों की सन्तानें अधिक भ्रष्ट होंगी। समाज को आतंकित करेंगी। पुलिस उनकी ही सहायता करेगी। जनता को स्वयं इस समस्या से लडऩा पड़ेगा। सत्ता का अहंकार सत्व गुण का विरोधी होता है। सत्ता भी भ्रष्ट तरीकों से हासिल की जाने लगी है। खुद अपराधी सत्ता में बैठने लगे हैं। ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे, वरना सरकारी आतंक ही सुख-चैन छीनने का माध्यम बन जाएगा। रक्षक ही भक्षक हो जाएंगे।

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