scriptचीन से आर्थिक संबंधों की राह | The path of economic relations with China | Patrika News
ओपिनियन

चीन से आर्थिक संबंधों की राह

चीन भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। चीन ने हमें आँख दिखाई है तो उसे सबक सिखाना ही होगा। चीनी उत्पादों के बहिष्कार के साथ आत्मनिर्भरता ही श्रेष्ठ विकल्प है।

नई दिल्लीJul 06, 2020 / 12:14 pm

shailendra tiwari

Textile industry needs working capital without interest in bhilwara

Textile industry needs working capital without interest in bhilwara

डाॅ. अश्विनी महाजन, आर्थिक मामलों के जानकार दिल्ली विवि में अध्यापन

चीन द्वारा बार-बार भारत के साथ सीमा विवादों और हमारे 20 जवानों की शहादत, अपने निर्यातों द्वारा भारतीय बाजारों में अपने माल की डंपिंग, हमारे दुश्मनों और विशेष तौर पर आतंकवादियों को धन और हथियारों द्वारा समर्थन करते हुए पाकिस्तान द्वारा हथियाई गई हमारी भूमि पर चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के नाम पर हमारी इच्छा के विरुद्ध इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण आदि के कारण भारत की जनता और सरकार दोनों ही चीन से क्षुब्ध हैं और चीन को सबक सिखाना चाहती हैं। पूरे देश में चीनी सामानों के बहिष्कार और चीनी निवेश और चीनी कंपनियों को इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में ठेकों से बाहर रखने के लिए मांग जोर पकड़ती जा रही है। ऐसे में हालांकि बड़ी संख्या में लोग चीनी बहिष्कार के लिए कृत संकल्प हो चुके हैं। सरकार द्वारा भी लगातार चीनी निवेश पर अंकुश लगाए जा रहे हैं। चीनी कंपनियों को मिले ठेकों को रद्द किया जा रहा है और चीनी सामानों की बंदरगाहों पर भी पूरी चेकिंग की जा रही है। लेकिन कुछ लोगों का यह मानना है कि चीन के बहिष्कार से अर्थव्यवस्था को बड़े नुकसान हो सकते हैं। इसलिए अर्थव्यवस्था के हित में बहिष्कार को छोड़ चीन के साथ आर्थिक संबंधों को बदस्तूर जारी रखना चाहिए।
यह बात सही है कि चीन से आने वाले आयात हमारे देश में उत्पादित वस्तुओं की तुलना में सस्ते हैं। ऐसे में सस्ते आयातों का बहिष्कार करना क्या सही होगा? इस संदर्भ में चीन के बहिष्कार के नफा नुकसान का आकलन सही होगा।

क्या है आलोचकों का कहना?
बहिष्कार के आलोचकों का कहना है कि चीन के माल को रोकना देश में अकुशलता को न्यौता देना होगा क्योंकि देश के उद्योगों में कुशलता बढ़ाने का कोई दबाव ही नहीं होगा। अकुशल उद्योग देश के निर्यात के अवसर समाप्त करते हैं। दूसरे, उनका यह भी कहना है कि इससे गरीब उपभोक्ताओं को नुकसान होगा क्योंकि उन्हें महंगे विकल्प खरीदने होंगे। तीसरे आलोचक कहते हैं कि हमारी चीन पर अत्यधिक निर्भरता है उनका कहना है कि आज सप्लाई चेन में कई देश शामिल होते हैं और देश में उत्पादन हेतु चीन के कलपुर्जों के आयात बाधित होने पर देश में उत्पादन और रोजगार बाधित होगा। यदि हम टैरिफ बढ़ाते हैं तो चीन ही नहीं दूसरे देश भी भारतीय माल पर अपने यहां भारतीय माल पर टैरिफ बढ़ा देंगे। उनका यह भी कहना है कि बहिष्कार कर हम चीन का कोई नुकसान नहीं कर पाएंगे क्योंकि चीन के लिए भारत में निर्यात का कोई विशेष महत्व है ही नहीं। उनका कहना है कि अभी भी भारत में चीन के कुल आयात उनके कुल निर्यातों का मात्र 2.7 प्रतिशत ही हैं ऐसे में बहिष्कार कर चीन को क्षति पहुंचाना संभव नहीं है। रोचक बात यह है कि देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के भी बहिष्कार के विरुद्ध लगभग यही तर्क हैं।
चीन के भी यही हैं तर्क
जब से देश में चीनी माल के बहिष्कार का दौर शुरू हुआ है, चीनी सरकार का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स भी लगभग यही तर्क दे रहा है। क्या यह महज संयोग है या हमारे बुद्धिजीवी और कुछ राजनीतिक दल चीन के तर्कों से अभिभूत हैं। इन सब तर्कों के साथ चीनी मीडिया का भी यह कहना है कि भारत में क्षमता ही नहीं कि वह चीन जैसे साज सामान बना सके अथवा चीन को टक्कर दे सके।उनका यह कहना है कि कुछ दिन की बहिष्कार की बातें कर लोग शांत हो जाएंगे और चीन का आयात भारत में बदस्तूर जारी रहेगा।
क्या है सच्चाई?

यह सही है कि आज चीन से हमारे आयात बहुत ज्यादा हैं। लेकिन पिछले 2 सालों में चीन से आयातों में कुछ कमी जरूर आई है। उदाहरण के लिए, पिछले 2 वर्षों में, चीन से आयात 2017-18 में 76.4 बिलियन डालर से घटकर 2019-20 में 65.3 बिलियन डालर हो गया। 2018-19 में, इलेक्ट्रिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक में लगभग8 बिलियन डालर की बड़ी गिरावट देखी गई। 2019-20 में भी इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक के आयात में 1.5 बिलियन डालर की गिरावट आई है, यानि 7.3 प्रतिशत गिरावट। 2018-19 में लोहे और इस्पात के आयात में 12.3 प्रतिशत और 2019-20 में भी 22 प्रतिशत की गिरावट। 2019-20 में, जैविक रसायनों के आयात में 7.3 प्रतिशत और उर्वरकों में 11.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। चीन से आयात, जो पहले तेजी से बढ़ रहे थे, जहां हमारी निर्भरता चीन पर अधिक है उन उत्पादों पर एंटी-डंपिंग डयूटी और आयात शुल्कों में वृद्धि और मानकों के लगने के कारण एक महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई है। इसके कारण देश में इन सभी वस्तुओं का उत्पादन भी बढ़ा है। गौरतलब है कि हम इनमें से कई उत्पादों के मामले में हम क्षमता से बहुत कम काम कर रहे हैं। 2018 में हमारी केमिकल्स में अनुपयुक्त क्षमता 24 प्रतिशत से 3 7 प्रतिशत की थी। और प्रयास कर हम क्षेत्रों में एक ओर पूरी क्षमता का उपयोग करें और दूसरी ओर अतिरिक्त क्षमता का निर्माण करें तो हमारी निर्भरता चीन पर पूरी तरह से समाप्त भी हो सकती है। इसके लिए देश में विदेशी आयातों को रोककर देश में उत्पादन क्षमता का भरपूर उपयोग और अतिरिक्त क्षमता का सृजन कर सकते हैं।
आलोचकों का यह तर्क कि सस्ते चीनी आयातों से देश में कम लागत पर उत्पादन करने हेतु कुशलता बढ़ाने का अवसर मिलता है और यदि आयातों पर रोक लगती है तो देश में कुशलता बढ़ाने का अवसर ही समाप्त हो जाएगा।वे लोग यह भूल जाते हैं कि सस्ते चीनी आयातों के फलस्वरूप हमारे उद्योग ही नष्ट हो गए। उदाहरण के लिए हमारा एक उद्योग चीन से इनके कारण पूरी तरह से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है जहां 90 प्रतिशत हम अपने देश में बनाते थे आज हम विदेशों पर निर्भर हो चुके हैं जिसमें से 70 प्रतिशत निर्भरता तो मात्र चीन पर ही है लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि अभी भी यदि चीन से अनुचित व्यापार न हो तो हम यह सभी बना सकते हैं। यह सही है कि चीनी माल पर हमारी निर्भरता है, वर्तमान परिस्थितियों में हमें यथाशीघ्र निर्भरता को दूर करना ही होगा। यह कहना भी उचित नहीं है कि देश में चीन के सामानों के प्रतिस्थापन्न की क्षमता नहीं है। समझना होगा कि जिन कल पुर्जों के लिए हमारी चीन पर निर्भरता है उसके लिए हम प्रौद्योगिकी विकसित कर अथवा प्राप्त कर उनका देशमें उत्पादन कर सकते हैं। हाल ही में देश में पीपीई किट्स टेस्ट किट्स, वेंटिलेटर आदि के उत्पादन से अपनी क्षमताओं को सिद्ध करने का अवसर भी मिला है।

जो लोग यह तर्क देते हैं कि हमारे आयातों को रोकने में चीन को कोई अंतर नहीं पड़ेगा, सर्वथा असत्य है। नहीं भूलना चाहिए कि हमारे आयात बेशक चीन के निर्यातों का मात्र 2.7 प्रतिशत ही हैं, हमारा व्यापार घाटा चीन के व्यापार अधिशेष का 11.6 प्रतिशत है। आज अमेरिका भी चीन से अपने आर्थिक संबंध काफी हद तक विच्छेद कर रहा है। यही नहीं यूरोप लेटिन अमेरिकी देश, अफ्रीकी देश, ऑस्ट्रेलिया सभी चीन के चीन से संबंध घटा रहे हैं। इन सब का चीन की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, इसबारे में आलोचकों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। समझना होगा कि चीन भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है ऐसे में उसके कृत्यों हेतु उसे सबक सिखाना जरूरी होगा। बहिष्कार के साथ आत्मनिर्भरता ही भारत के लिए सहीकदम होगा।

एसोसिएट प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
निवास: एम-451, गुरुहरिकिशन नगर, नई दिल्ली-110087
मोबाईल: 09212209090

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