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Patrika Opinion: खसरा-रूबेला का फैलाव चिंताजनक

कोरोना की दस्तक वर्ष 2020 में ही आ गई थी। खसरे समेत पूरा टीकाकरण कार्यक्रम देश और दुनिया में उसी समय अस्त-व्यस्त हो गया था।

Nov 25, 2022 / 10:41 pm

Patrika Desk

प्रतीकात्मक चित्र

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इस सदी की सबसे दुसाध्य व विनाशकारी महामारी की वजह बना कोरोना वायरस भले ही अब निस्तेज अवस्था में पहुंच गया है, पर इसके दुष्परिणाम दुनिया भर को अब भी अलग-अलग क्षेत्रों में भुगतने पड़ रहे हैं। भारत में खसरे के फैलाव को इसी का दुष्परिणाम समझा जा सकता है। इसकी भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी भी सामने आ गई है। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी केंद्र शासित प्रदेशों व राज्यों को संवेदनशील क्षेत्रों में नौ महीने से पांच साल तक के सभी बच्चों को खसरा और रूबेला के टीके की अतिरिक्त खुराक देने पर विचार करने को कहा है तथा एहतियाती उपाय करने के निर्देश जारी कर दिए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो आंकड़ा दिया है, वह वर्ष 2021 में खसरे के टीके से वंचित रहे दुनिया के चार करोड़ बच्चों का है। कोरोना की दस्तक वर्ष 2020 में ही आ गई थी। खसरे समेत पूरा टीकाकरण कार्यक्रम देश और दुनिया में उसी समय अस्त-व्यस्त हो गया था। उस साल के आंकड़े भी मिला लेंगे तो खसरे के टीके से वंचित बच्चों की संख्या इससे बहुत अधिक मिलेगी। अभी देश में महाराष्ट्र में दस बच्चों की मृत्यु का मामला सामने आया है और बिहार, गुजरात, हरियाणा, केरल व झारखंड जैसे कुछ राज्यों के इसके प्रभाव में आने की सूचनाएं हैं। खसरे के टीके पूरे भारत में ही कम लगे हैं। पोषण के लिहाज से भी सजगता जरूरी है। खसरे के लिए सर्वविदित तथ्य है कि कुपोषित व अत्यधिक कुपोषित बच्चों के लिए यह जानलेवा साबित हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एहतियाती कदम उठाते हुए बच्चों में खसरे के मामलों में वृद्धि के आकलन व प्रबंधन के लिए उच्च स्तरीय दल तैनात किए हैं, पर ये देश के आकार को देखते हुए नाकाफी हैं। ये उच्चस्तरीय दल रांची, अहमदाबाद और मलप्पुरम में तैनात हैं। कम से कम एक राज्य में एक उच्च स्तरीय दल तो जरूरी है, तभी खसरे के फैलाव की सही तस्वीर सामने आ पाएगी और तभी इसे नियंत्रित करने के पर्याप्त कदम उठाए जा सकेंगे। इन उच्च स्तरीय दलों को खसरे तक सीमित रखना भी सही कदम नहीं होगा। उन्हें पूरे टीकाकरण की स्थिति जानने और तदनुरूप भरपाई के कदम उठाने का दायित्व सौंपना चाहिए ताकि भविष्य में कोई और बीमारी भी अपना सिर नहीं उठा पाए।

कोरोना से सबक लेकर कुछ रूपरेखा इसे लेकर भी बनानी होगी कि भविष्य में किसी महामारी की स्थिति में टीकाकरण कार्यक्रम और अन्य चिकित्सकीय जरूरतों की निरंतर उपलब्धता कैसे सुनिश्चित की जा सकती है, ताकि हम चिकित्सा व स्वास्थ्य में सालों पीछे न चले जाएं।

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