जी-7 देशों को वैक्सीन का वादा करने मात्र से आगे बढऩा होगा। अक्टूबर में रोम में होने वाले जी-20 सम्मेलन तक इन चार माह के लिए चार बातों पर जोर दिए जाने की जरूरत है। वैक्सीन निर्माण, वितरण, वित्त और भावी महामारियों के लिए जैव सुरक्षा तैयारी। विश्व स्वास्थ्य संगठन इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं है और विश्व भर में वैक्सीन वितरण अभियान ‘कोवैक्सÓ के सहारे पूरा करना असंभव लग रहा है। भले ही, सरकारों और प्राइवेट कंपनियों ने वैक्सीन बना ली हों, उन्हें फिर भी वैक्सीन के अरबों डोज और बूस्टर शॉट्स के उत्पादन के लिए गति बढ़ानी होगी। जी-7 और उसके सहयोगी देशों को वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए निर्माताओं की मदद करनी चाहिए। इससे वैक्सीन आपूर्ति शृंखला में सुधार होगा। वैक्सीन निर्माण सामग्री के लिए सब्सिडी समन्वय, आपूर्ति शृंखला को जमाखोरी और प्रतिस्पद्र्धा से मुक्त रखना एवं निर्यात प्रतिबंधों पर रोक लगाने की पहल, यह सब वल्र्ड बैंक, डब्ल्यूएचओ और जी-7 की निगरानी में हो ताकि अपरिहार्य समस्या आने पर उससे निपटा जा सके। उत्पादन की ही तरह वितरण भी जरूरी है और विकासशील देशों में यह बड़ी चुनौती है। अफ्रीकी देशों में अन्य संक्रामक बीमारियों के पूर्व अनुभव के कारण वैक्सीन के लिए आधारभूत ढांचा है। कुछ के पास वैक्सीन भंडारण सुविधा भी है। जी-7 को वल्र्ड बैंक व क्षेत्रीय विकास बैंकों की सूची बना कर हर देश के स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाना चाहिए।
नेक इरादों को वित्तपोषण की भी जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, 50 बिलियन डॉलर में विश्व की करीब 60 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण 2022 तक किया जा सकता है। यह राशि अमरीका द्वारा घर में ही खर्च किए गए कई ट्रिलियन की तुलना में यह छोटी राशि है। विश्व बैंक व अन्य संस्थाओं को सहायता को प्राथमिकता देनी चाहिए। जी-7 को आइएमएफ के उक्त 60 फीसदी के लक्ष्य को हासिल करना ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जी-20 सम्मेलन में वे विकासशील देशों के निशाने पर होंगे। इससे बाइडन प्रशासन की आकांक्षाओं को ठेस पहुंचेगी, और कोई भी कमांडर इन चीफ नहीं चाहेगा कि उसे आपदा में चेतावनियों की अनदेखी करने वाले शख्स के तौर पर याद किया जाए।