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सीमित हुई आधार की पहचान

आधार कार्ड यानी यूनिक आईडेंटिफिकेशन नम्बर अब
“यूनिक” नहीं रहा।

Aug 12, 2015 / 11:47 pm

मुकेश शर्मा

Aadhar Card

Aadhar Card

आधार कार्ड यानी यूनिक आईडेंटिफिकेशन नम्बर अब “यूनिक” नहीं रहा। सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता खत्म कर दी है। इसका इस्तेमाल पीडीएस और गैस सब्सिडी तक ही कर सकने की इजाजत दी है। यूपीए सरकार में इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए कहा गया था कि यह नम्बर कई तरह के दस्तावेजों के झंझट से मुक्ति दिलाएगा।


बड़ा तर्क यह भी था कि यह भ्रष्टाचार रोकने में भी मददगार होगा। यह लॉन्च हुआ, लोगों को उनका आधार भी मिलने लगा लेकिन फिर इस विशेष नम्बर की “विशेष” खामियां सामने आने लगीं। कहीं डुप्लीकेशन हुआ तो कहीं फर्जी आधार बने। एक ही व्यक्ति के पास कई आधार कार्ड मिलने लगे तो किसी के कार्ड पर किसी और की तस्वीर छपने लगी।

एक बार जब सरकार ने गैस सब्सिडी के लिए इसे अनिवार्य बनाया तो विवाद ज्यादा बढ़ गया था। उसे कदम खींचने पड़े। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। आखिर कैसा रहा है अभी तक आधार का सफर, क्या थी इसके पीछे सोच और कहां रही खामियां, जानिए आज के स्पॉटलाइट में।


शुरूआती स्तर पर आधार कार्ड परियोजना का उद्देश्य अवैध रूप से देश में रह रहे विदेशियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालना ही था। लेकिन, निजता संबंधी चिंताओं के संदर्भ में बाद में इसके साथ सामाजिक सुरक्षा से संबंधित कार्यक्रमों को जोड़ दिया गया।
अजित डोभाल, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, 2009 में कहा

खर्च और कार्ड

अब तक देशभर में 89.75 करोड़ लोगों के आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं।
2014-15 में अब तक यूआईडीएआई पर 1615.34 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं।
2009-10 से लेकर अब तक इस परियोजना पर 5980.62 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं।

सीधे मिला अनुदान


26 नवंबर 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आधार कार्ड संख्या को जोड़कर सीधे बैंक में अनुदान पहुंचाने की योजना शुरू की। इसका उद्देश्य, परोक्ष अनुदान प्रणाली और इसकी मध्यस्थता को समाप्त करना था। यह परियोजना 1 जनवरी 2013 को शुरूआती स्तर पर 51 जिलों में चालू की गई और बाद में पूरे देश में इसे फैलाया गया।

क्या है आधार कार्ड योजना


आधार 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या वाला कार्ड है जो भारत के नागरिकों को जारी किया जाता है। इसे योजना आयोग के अधीन कार्य करने वाली “यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथोरिटी ऑफ इंडिया” जारी करती है। यही आधार कार्ड की संख्या और भारतीय नागरिक की पहचान संबंधी जानकारी का ब्यौरा संभालती है।


यूआईडीएआई की स्थापना 28 जनवरी 2009 को हुई और इन्फोसिस कंपनी के सह संस्थापक नंदन नीलेकणि 23 जून 2009 को इसके चेयरमैन नियुक्त किए गए। 7 फरवरी 2012 को यूआईडीएआई ने इंटरनेट पर आधार नंबरों की जांच करने की सुविधा लांच की। इसके जरिए बैंक, टेलीफोन कंपनियां और सरकारी विभाग आधार संख्या से पता कर सकने योग्य हो गए कि व्यक्ति भारत का ही नागरिक है या नहीं।


क्या है उद्देश्य

देश में पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, स्थाई खाता संख्या आदि पहचान पत्रों की भरमार हो गई। ऎसे में एक ऎसे एकल पहचान पत्र की आवश्यकता महसूस की गई जो व्यक्ति की न केवल देश में जनसंख्यात्मक आधार पर बल्कि उसके हाथों की उंगलियों और आंखों के आधार पर विशिष्ट पहचान भी बताए। हालांकि आधार कार्ड अन्य पहचान पत्रों के स्थान पर काम में आने वाला पहचान पत्र नहीं है लेकिन अन्य मामलों में यह पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बैंक, टेलीफोन कंपनियां, वित्तीय संस्थान आदि जो ग्राहक की जानकारी चाहते हैं, वहां इसका उपयोग पहचान पत्र के तौर होता है। रसोई गैस सब्सिडी जैसी सरकारी सुविधाओं के लाभ के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

यूं आया था विचार

1999में करगिल युद्ध के बाद सुरक्षा के अध्ययन के लिए के. सुब्रमण्यम के नेतृत्व में समिति बनाई गई। इस समिति की रिपोर्ट पर विचार के लिए लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व मे मंत्रिमंलीय समूह गठित हुआ और इस समूह की रिपोर्ट में कहा गया जल्दी ही बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय सुरक्षा कार्ड परियोजना शरू की जाएगी।


सबसे पहले सीमावर्ती क्षेत्रों के गांवों में रहने वालों को प्राथमिकता से पहचान पत्र जारी किए जाएंगे और बाद में यह सीमावर्ती क्षेत्रों के राज्यों में जारी होंगे।

दिसंबर 2003 में नागरिकता (संशोधन) बिल पेश किया गया। इसमें भारतीय मूल के नागरिकों को विभिन्न अधिकार दिये जाने के साथ यह भी कहा गया कि भारत सरकार देश के सभी नागरिकों का आवश्यक पंजीकरण कर पहचान पत्र जारी कर सकती है।


योजना को कोर्ट में मिली चुनौती

नवंबर 2012 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश के.एस. पुत्तास्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की और इस योजना की वैधानिकता पर सवाल उठाए।
सितंबर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश दिया कि सरकार आधार कार्ड नहीं होने पर किसी को देश का नागरिक होने के आधार मिलने वाली सु्विधाओं को प्राप्त करने से वंचित नहीं कर सकती क्योंकि यह स्वैच्छिक है। इसके अलावा कोर्ट ने अवैधानिक रूप से भारत में रहने वालों को आधार कार्ड बनाकर नहीं देने को लेकर चेतावनी दी।
अक्टूबर 2013 में, यूआईडीएआई की ओर से कहा गया आधार कार्ड केवल पहचान पत्र है, इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता।
मार्च 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से वे सभी आदेश वापस लेने को कहा जो आधार कार्ड को आवश्यक तौर पर बनाने के लिए बाध्य करते हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार मानव का मौलिक अधिकार है इसलिए बायोमेट्रिक जानकारियां देने से बचना होगा।
फरवरी 2015 में एनडीए सरकार ने कहा कि आधार कार्ड योजना को जारी रखना चाहती है और पूर्व में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अनुपालना करेगी।


जुलाई 2015 में ही सरकार ने कहा कि संविधान के तहत देश के नागरिकों को मूलभूत अधिकारों में निजता का अधिकार नहीं मिला है। इस मामले पर संविधान पीठ से फैसला मांगा गया।
अगस्त 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने फिर कहा आधार कार्ड अनिवार्य नहीं ऎच्छिक है। सभी सरकारी योजनाओं के लिए यह जरूरी नहीं है। हालांकि न्यायालय ने पीडीएस और रसोई गैस से इसे जोड़ने की मंजूरी दी। इसके अलावा न्यायालय ने आधार से संबंधित चुनौती याचिकाएं संविधान पीठ को सौंपी और जो तय करेगी कि निजी जानकारियों को मूल अधिकार माना जाए कि नहीं।

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