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करों के भार तले दबे मध्यम वर्ग पर ध्यान देने का समय

आज आम आदमी विशेषत: मध्यम वर्ग कई करों का बोझ ढोने को त्रस्त है। आयकर एवं वस्तु तथा सेवा कर के अतिरिक्त भी कई प्रकार के करों की मार आम आदमी पर पड़ रही है।

May 27, 2022 / 06:40 pm

Patrika Desk

करों के भार तले दबे मध्यम वर्ग पर ध्यान देने का समय

करों के भार तले दबे मध्यम वर्ग पर ध्यान देने का समय

विजय गर्ग
चार्टर्ड अकाउंटेंट
और आर्थिक मामलों
के जानकार

सरकार संग्रहित राजस्व को विभिन्न विकास योजनाओं और सब्सिडी आदि में व्यय करती है। अंतरराष्ट्रीय कर व्यवस्था को देखें तो कर, प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में वर्गीकृत हैं। भारत में भी कर इसी प्रकार श्रेणीकृत हैं। आयकर, कॉरपोरेट कर, गिफ्ट टैक्स आदि प्रत्यक्ष कर हैं। वहीं वस्तु एवं सेवा कर, कस्टम ड्यूटी, स्टाम्प शुल्क आदि अप्रत्यक्ष कर हैं। विश्व स्तर पर तुलना की जाए, तो भारत में कर की दरें काफी अधिक हैं। प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर दोनों की दर अधिक होने के कारण भारतीय कर व्यवस्था आमजन पर भारी पड़ती है। जुलाई 2017 में जब जीएसटी लागू किया गया था, तब एक बात बड़े जोर-शोर से प्रचारित की गई थी कि यह कर प्रणाली ‘एक देश, एक कर’ व्यवस्था के रूप में होगी, जिससे आमजन पर करों की मार कम होगी। हुआ इसका उलटा। आज आम आदमी विशेषत: मध्यम वर्ग कई करों का बोझ ढोने को त्रस्त है। आयकर एवं वस्तु तथा सेवा कर के अतिरिक्त भी कई प्रकार के करों की मार आम आदमी पर पड़ रही है।
वर्तमान में भारत की जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है, जिसमें लगभग 46.5 करोड़ मध्यम आय वर्ग से संबंधित हंै। देश में लगभग 8 करोड़ करदाता हैं, जिनमें से 1 करोड़ रुपए से अधिक आय दिखाने वाले करदाता मात्र दो लाख एवं 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए के मध्य आय दिखाने वाले करदाता लगभग एक करोड़ हैं। इस प्रकार अधिकांश करदाता 10 लाख रुपए से कम आय वर्ग से संबंधित मध्यम आय वर्ग से ही हैं। यह मध्यम आय वर्ग, अपनी आय का लगभग 15.22 प्रतिशत हिस्सा आयकर के रूप में व अपने घर संबंधी खर्च, उपयोगिता एवं खानपान में 18-20 प्रतिशत हिस्सा खर्चों पर कर के रूप में चुकाता है। इसके बाद शेष बची राशि को लाइफस्टाइल के अलावा बचत व निवेश के रूप में खर्च करता है, तो उस पर भी उसको कर का भुगतान करना पड़ जाता है। इस प्रकार एक मध्यम वर्ग को अपनी आय का लगभग 50 से 55 प्रतिशत भाग कर के रूप में भुगतान करना पड़ता है। यानी वह प्रभावी रूप से 50 से 45 प्रतिशत आय स्वयं के लिए उपयोग कर पाता है। आम आदमी अपनी आय पर आयकर देने के उपरांत जरूरत की लगभग सभी वस्तुओं पर जीएसटी चुकाता है। फिर भी अगर कुछ राशि बचा पाने में सफल हो जाए और भूमि-भवन क्रय करे, तो स्टाम्प एवं रजिस्ट्रेशन शुल्क दे, वाहन खरीदे तो रोड टैक्स दे, पेट्रोल-डीजल पर कर के साथटोल टैक्स भी दे। फिर भी कुछ बच जाए और बचत योजनाओं में निवेश करे, तो उस पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस के रूप में पुन: आयकर का भुगतान करे।
अल्प आय वर्ग को प्राथमिक जरूरतें रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा मुफ्त या रियायती दर पर उपलब्ध हैं। उच्च आय वर्ग के लिए ये सहज उपलब्ध हैं। साथ ही उच्च वेतनभोगी एवं कम्पनियों के डायरेक्टर आदि को वाहन, फोन, घर, चिकित्सा आदि संबंधित संस्थागत प्रावधानों के तहत प्राप्त होने के कारण इन सुविधाओं पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों की मार कम पड़ती है तथा यह वर्ग कई अप्रत्यक्ष करों से बचा रहता है। अन्तत: मध्यम आय वर्ग ही इन जरूरतों एवं अपनी आय के मध्य संघर्ष करता नजर आता है। चूंकि अल्प आय वर्ग को प्राप्त लगभग सभी मुफ्त सुविधाओं के लिए धन की व्यवस्था सरकार को प्राप्त करों से ही होती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश की महज एक तिहाई आबादी देश की लगभग दो तिहाई आबादी का बोझ उठा रही है। इसी कारण मध्यम आय वर्ग कर व्यवस्था से बुरी तरह त्रस्त है। लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सार्थक करते हुए सरकार को कर ढांचे में व्यापक सुधार करना चाहिए, जिसमें कर दर की कटौती, करों की संख्या में कमी आदि शामिल हो सकते हैं। साथ ही देश की बड़ी आबादी को मुफ्त सामान उपलब्ध करवाने के स्थान पर उनसे उत्पादक कार्यों में सहयोग लेने की योजनाएं एवं इनका प्रभावी क्रियान्वन होना चाहिए, जिससे यह आबादी स्वयं एवं देश के लिए एक ‘एसेट’ साबित हो सके। इस दिशा में त्वरित एवं प्रभावी नीतिगत निर्णय जरूरी हैं, अन्यथा स्थिति अत्यन्त विस्फोटक हो सकती है। हालात बिगडऩे से पहले सुधारवादी उपाय अत्यावश्यक हैं, जिससे मध्यम वर्ग राहत की सांस ले सके।

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