युद्ध की बात हावी रही और सबसे बड़े विजेता रहे वे तंत्र जो लड़ाई लडऩे के लिए ही बनाए गए और जिन्हें जल्द ही यह समझ आ गया कि यह मुद्दा अंतहीन है। लेकिन इससे उन्हें फायदा यह हुआ कि यह अंतहीन संसाधनों, बढ़ते बजट, अनुबंधों, खरीद ऑर्डर, ताकत और प्रभाव का स्रोत बन गया द्ग यानी नई अर्थव्यवस्थाएं जो ड्रग तस्करी से लडऩे के लिए थीं, लेकिन उसी पर निर्भर भी थीं। वह ‘युद्ध’ कभी जीता ही नहीं गया। ड्रग तस्करी बढ़ती गई। लातिन अमरीका से यूएस की ओर संभावित खतरनाक द्रव्यों का बाजार बढ़ता गया और एक अनियंत्रित उद्योग बन गया।
1970 के दशक के मध्य में शुरू हुए इस व्यापार ने क्षेत्र में औद्योगिक क्रांति ला दी, तब तक तो मुक्त व्यापार और खुले बाजार का उदारवादी दौर भी नहीं आया था। ड्रग उद्योग ने बेतहाशा वृद्धि की, जिसके आगे सभी निर्यात उद्योग बौने रह गए। ऐसा ही पेरू में कोकीन के साथ था। परासरण की स्थायी स्थिति के चलते जल्द ही कई देशों की सामान्य आर्थिक स्वास्थ्य के साथ यह उद्योग रम गया। इस उद्योग से जुड़ी अनिश्चितता और उच्च स्तरीय मुनाफे के चलते इसमें राजनीतिक भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया। ऐसे कई लोग हैं जिन पर ड्रग तस्करी से लडऩे का जिम्मा था, पर अमरीकी प्रवर्तन व इंटेलीजेंस एजेंसियों से घनिष्ठता के चलते वे मुनाफा कमाने में लग गए। क्षेत्र के नार्को धनाढ्यों और उनके मुनाफे के कई साझेदारों की दुनिया के नीचे आजीविका के लिए कोकीन की फसल पर आश्रित पेरू, बोलीविया और कोलम्बिया के किसानों और मजदूरों की विशाल नींव है। गरीबी ही उन्हें एक ऐसे कारोबार से जोड़ती है, जिसमें पूंजी की तरलता है और अनवरत प्रतिलाभ भी। लेकिन उन्हें अपने अधिकारों और जीवन के साथ समझौता करना पड़ता है।
ड्रग पर युद्ध के कई मोर्चे और आंकड़े हैं, पर यह बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में ड्रग कारटेल फैला हुआ है, जिस कारण आपराधिक हिंसा का ग्राफ आसमान छू रहा है। बीते पचास सालों से चला आ रहा यह युद्ध विषाक्त और विनाशकारी रहा है। हम मानसिक पीड़ा के दुष्चक्र में फंसे हैं, पर अब और नहीं। वक्त आ गया है जब ‘युद्ध’ रणनीति को दरकिनार कर ड्रग्स के प्रति नई सोच विकसित की जाए, जिसमें सुरक्षा, गवर्नेंस, ग्रामीण विकास, वैध बनाने की प्रक्रिया और नशा मुक्ति उपचार और संभाव्य लाभकारी तत्वों के अध्ययन में सुधार लाने के नए तौर-तरीके शामिल हों। ‘ड्रग्स के खिलाफ युद्ध’ ने हमें पीछे धकेल दिया है, लेकिन हम अब भी आपत्तिजनक और पूर्वाग्रही तरीके बदल सकते हैं।
द वॉशिंगटन पोस्ट