चितकुल पहुंचकर हम प्रकृति के मौलिक स्वरूप को देख पाते हैं। बर्फ से लदी पर्वत की चोटियां, हरे-भरे घास के मैदान, छोटी-छोटी नदियां और तैरते प्रतीत होते सफेद रंग के दूधिया पत्थर। लगता है कि सूर्य की किरणों ने पूरी घाटी में ही मोती बिखेर रखे हैं। आसपास के प्राकृतिक वातावरण को देख मन खिलखिला उठता है। यदि आप एक सुकून भरी जगह की तलाश में हैं तो पांच-सात दिन का समय लेकर चितकुल पहुंच जाएं। मैंने इस जगह की यात्रा पहली बार अप्रेल 2014 में की थी। तब से अब तक यहां कई बार आ चुका हूं। प्रकृति ने इस जगह को स्वर्ग बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इस जगह पर आप जैसे ही पहुंचेंगे आपका परिचय बसपा घाटी से होगा। यह घाटी बसपा नदी और अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जानी जाती है। चितकुल बसपा नदी के दाहिने किनारे पर भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम और सबसे ऊंचा गांव है।
इस जगह पर पैर रखते ही यात्रा की सारी थकान दूर हो जाती है। लगता है कि किसी अलग दुनिया में आ गए हैं। भेड़ों के पीछे भागते बच्चे, लकड़ी के घर, पहाड़ों से बहते बर्फीले ठंडे पानी की धारा, खिड़कियों से बाहर मंडराते बादल इतने करीब होते हैं कि उन्हें छूने का दिल कर जाए। जैसे यहां की प्रकृति सुंदर है, वैसे ही यहां के लोग द्ग बाहरी दुनिया की दौड़-भाग से बेअसर। धार्मिक, स्थानीय रीति-रिवाज व मान्यताओं में आस्था रखने वाले इन लोगों का व्यवसाय खेती-बाड़ी ही है।
एनएच-22 पर शिमला से रिकांगपिओ तक का सफर करीब 10 घंटे का है। रिकांगपिओ या फिर रक्छम से आप बस या फिर किराये की गाड़ी भी ले सकते हैं और चितकुल पहुंचकर यादगार समय बिता सकते हैं।
(ट्रैवल ब्लॉगर, मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ब्लॉगर में शामिल)