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क्या है भारत में लोकतंत्र की सफलता का रहस्य

यह तथ्य है कि भारत में लोकतंत्र गहरी जड़ें जमा चुका है। चुनावों के बाद राजनीतिक सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हो रहा है। सत्ताधारी दल प्रतिकूल चुनावी फैसले को स्वीकार करते हैं। भारत की कल्याणकारी और सुरक्षात्मक प्रतिबद्धता नीतियों में परिलक्षित होती है। उत्तरोत्तर सरकारें इन्हीं नीतियों पर चलती हैं। सवाल यह है कि भारत में लोकतांत्रिक सफलता का रहस्य क्या है?

Oct 07, 2022 / 07:21 pm

Patrika Desk

क्या है भारत में लोकतंत्र की सफलता का रहस्य

क्या है भारत में लोकतंत्र की सफलता का रहस्य

आशुतोष कुमार
प्रोफेसर और अध्यक्ष,
राजनीति विज्ञान विभाग,
पंजाब विश्वविद्यालय


लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की असाधारण सफलता का जश्न चल रहा है। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देश, जो भारत के बाद आजाद हुए, वहां या तो लोकतंत्र बचा नहीं अथवा वहां उतार-चढ़ाव वाली स्थिति रही। भारत में इसकी जड़ें व्यापक और गहरी हुई हैं। इस सफलता की जड़ भारत की विश्वसनीयता में निहित है। भारत राजनीतिक लोकतंत्र के रूप में ढांचागत कमजोरियों से बाहर निकलने में कामयाब रहा है। पश्चिम के पुराने संगठित लोकतंत्रों के विपरीत, नया स्वतंत्र भारत घोर गरीबी, निरक्षरता, सामाजिक और आर्थिक असमानता से त्रस्त था। सदियों पुरानी विकृत सामाजिक व्यवस्था ने अधिसंख्य आबादी को सम्पत्ति, स्तर और ताकत की किसी भी हिस्सेदारी से वंचित कर रखा था। यह स्थिति सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना में बड़ी बाधक थी। कुटिल औपनिवेशिक शासन ने भारतीयों को विभाजित किया, जो विभाजन और साम्प्रदायिक हिंसा की वजह बना। यह भी माना जाता है कि लोकतंत्र ऐसे समाज में जड़ें जमाता है, जहां लोग समान धर्म, भाषा और संस्कृति साझा करते हैं। भारत जैसे सदियों पुराने जातीय विभाजन वाले समाज के बारे में तो माना जाता था कि वह लोकतंत्र बनाए रखने में सफल नहीं होगा।
भारत की असाधारणता इस रूप में फिर प्रकट होती है कि इसके पड़ोसी देश, जो अविभाजित भारत के हिस्सा थे, लोकतंत्र को टिकाऊ बनाए रखने में विफल रहे। वहां चुनावों के बाद, जब लोकतंत्र की वापसी होती दिखती है, तब भी विपक्षी दलों के साथ ही तटस्थ पर्यवेक्षकों की नजर में यह संदिग्ध ही रहता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह भारत विफल लोकतांत्रिक देश क्यों नहीं बना, यह प्रश्न विचारणीय है? यह भी सच है कि भारत की असाधारण लोकतांत्रिक सफलता को मुख्य रूप से चुनावी दृष्टिकोण से विश्व में सराहना मिली है। भारत में चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते रहे हैं। यहां स्वतंत्र चुनाव आयोग है, स्वतंत्रता से चुनावी सर्वे भी होते हैं। राजनीतिक दलों और समूहों की चुनावों में भागीदारी बढ़ी है। भारत की चुनावी सफलता समकक्ष पश्चिमी देशों से भिन्न है।
पश्चिमी देशों में सबको मताधिकार औद्योगिक क्रांति के बाद मिला, इसके विपरीत भारत की संविधान सभा ने बिना भेदभाव के वोट का अधिकार दिया। 1928 में ही नेहरू रिपोर्ट में इसका वादा किया गया था। यह वही वर्ष है, जब विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र ने अंतिम रूप से महिलाओं को वोट का अधिकार दिया था। भारत में लोकतंत्र की सफलता इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि एक वर्ग यह मानता है कि किसी भी देश में लोकतंत्र बने रहने की सफलता के मूल में आय सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होती है। इसके विपरीत आजादी के वक्त भारत सबसे गरीब देशों में से एक था और आज भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी से जूझ रहे हैं। भारत का स्थान संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल जारी किए जाने वाले मानव विकास संकेतकों में बहुत नीचे है। इसके बावजूद देश में लोकतंत्र मजबूत है। गरीब और वंचित समाज के लोग बड़े पैमाने पर मतदान करते हैं। पश्चिम की तुलना में, लोकसभा चुनावों की अपेक्षा स्थानीय चुनावों यानी पंचायत स्तरीय चुनावों के प्रति मतदाताओं का रुझान बढ़ा है।
यह तथ्य है कि भारत में लोकतंत्र गहरी जड़ें जमा चुका है। चुनावों के बाद राजनीतिक सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हो रहा है। सत्ताधारी दल प्रतिकूल चुनावी फैसले को स्वीकार करते हैं। भारत की कल्याणकारी और सुरक्षात्मक प्रतिबद्धता नीतियों में परिलक्षित होती है। उत्तरोत्तर सरकारें इन्हीं नीतियों पर चलती हैं। सवाल यह है कि भारत में लोकतांत्रिक सफलता का रहस्य क्या है?
पहली बात, औपनिवेशिक शासन की विरासत ने भारतीयों को सरकार होने का बोध कराया। ब्रिटिश शासन ने अदालत की स्थापना की, एक कानूनी प्रणाली की शुरुआत की। साथ ही सीमित मताधिकार, विधायी निकायों और एक आधुनिक नौकरशाही की शुरुआत की। 1909, 1919 और 1931 के अधिनियमों से संविधान को आकार देने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अंग्रेजी शिक्षा ने अभिजात्य वर्ग और नव उभरे मध्यम वर्ग के बीच आधुनिक और उदार लोकतांत्रिक मूल्यों को जन्म दिया। दूसरी बात, राष्ट्रवादी आंदोलन ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजों को देश से निकालना ही नहीं, बल्कि आजाद भारत के लिए सामाजिक और आर्थिक एजेण्डा तैयार करना भी था। महात्मा गांधी का आंदोलन, 1928 की नेहरू रिपोर्ट, 1931 का कराची प्रस्ताव, 1945 की सप्रू रिपोर्ट इसके उदाहरण हैं। संविधान में अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के लिए जो प्रावधान हैं, उनकी जड़ें और मूल्य राष्ट्रवादी नेतृत्व के आंदोलन में नजर आते हैं। तीसरी बात, लोकतांत्रिक सफलता का श्रेय राजनीतिक नेतृत्व को भी जाता है। आजाद हुए अन्य देशों के विपरीत, भारतीय नेतृत्व ने लोकतांत्रिक संस्थानों का पोषण किया। इसी तरह संसद ने भी अपनी पूर्व-प्रतिष्ठित स्थिति को बरकरार रखा। चौथी बात, तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व, विशेषकर कांग्रेस, ने चुनावी हार के बाद भी विपक्षी दलों को स्थान देना जारी रखा। पांचवीं बात, लोकतांत्रिक भारत की राजनीतिक संस्कृति सदियों पुराने बहुलवाद और सहिष्णुता के पारंपरिक मूल्यों पर आधारित है। इन मूल्यों ने विविधतायुक्त समाज में व्यापक सामंजस्य की भूमिका निभाई है।
अंतिम रूप से, चुनौतियों को दूर करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र अभी और बेहतर, अधिक प्रतिनिधित्व वाला और समावेशी बन सकता है। और यह बात सभी लोकतांत्रिक देशों पर लागू होती है, क्योंकि कोई भी लोकतंत्र पूर्ण नहीं होता है।

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