दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव काफी समय से काम से जी चुराने वाले और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त अधिकारियों को ‘काम करो या नौकरी छोड़ो’ का सख्त संदेश दे रहे हैं। उनके पास रेल मंत्रालय भी है। इस साल मई में रेलवे बोर्ड ने 19 लापरवाह अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया था। इससे पहले 75 रेल अधिकारियों की छुट्टी की जा चुकी थी। सितंबर में सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल के एक वरिष्ठ अधिकारी को वैष्णव की बैठक में झपकी लेते हुए पाए जाने पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दी गई थी। बीएसएनएल के प्रशासन को कसने की जरूरत काफी पहले से महसूस की जा रही थी। अगर पूर्ववर्ती सरकारों ने इस पर ध्यान दिया होता, तो शायद इसकी हालत इतनी खस्ता नहीं होती। बीएसएनएल कभी सरकार का बड़ा कमाऊ पूत हुआ करता था। देश में दूरसंचार क्रांति के बाद निजी कंपनियां जिस तेजी से फलती-फूलती गईं और बीएसएनएल जिस रफ्तार से घाटे के संस्थान में तब्दील होता गया, उसके लिए काफी हद तक अधिकारियों की लापरवाही व अदूरदर्शिता जिम्मेदार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक नए भारत के निर्माण के लिए ठोस प्रयास का जो आह्वान करते रहे हैं, वह सुशासन से ही संभव है। सुशासन के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को ज्यादा जिम्मेदार, सक्षम और सजग बनाने की जरूरत है। अधिकारियों को इस संदेश को भी गांठ की तरह बांध लेना चाहिए कि उन्हें जनता पर शासन नहीं करना है, जनता के लिए शासन करना है।
सुशासन तभी फलीभूत होगा, जब ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के साथ संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण सोने पर सुहागे की तरह शामिल होगा। रेलवे और दूरसंचार विभाग के लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ जैसी कार्रवाई हुई, उसके दायरे में दूसरे विभागों को भी लाया जाना चाहिए। इनकी जगह नई नियुक्तियां भी यथासमय होती रहें, ताकि कामकाज में संतुलन बना रहे।