scriptआखिर स्त्रीवाद की जरूरत किसको है? | who needs feminism After all: Rashmi Bhardwaj | Patrika News
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आखिर स्त्रीवाद की जरूरत किसको है?

आधी आबादी: स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच महीन रेखा
एक ‘अभिजात्य फेमिनिज्म’ भी है, जिसकी अराजक ‘माई चॉइस’ की रट सिर्फ स्त्रीवाद के मूल संघर्ष को ही हाशिए पर नहीं डालती, स्त्री के मनुष्य समझे जाने के अधिकार की भी धज्जियां उड़ा देती है

नई दिल्लीJan 18, 2021 / 09:37 am

Mahendra Yadav

Rashmi Bhardwaj

Rashmi Bhardwaj

रश्मि भारद्वाज ( लेखक, अनुवादक, स्त्री विमर्श पर निरंतर लेखन)

समान नागरिक अधिकारों, संसाधनों एवं अवसरों की समानता एवं स्त्री को मनुष्य समझेे जाने के लिए संघर्ष करता स्त्रीवाद एक लंबा सफर तय कर चुका है। आर्थिक, शैक्षणिक, नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में स्त्री की स्थिति बहुत सुदृढ़ हो चुकी है, लेकिन स्त्रीवाद के संघर्ष एवं इसके मूल उद्देश्यों की सही जानकारी नहीं होने के कारण सामाजिक स्तर पर इसकी स्थिति बहुत विवादास्पद हो चुकी है। एलीट या अभिजात्य वर्ग के ‘फैशनेबल फेमिनिज्म’ ने इसे हास्यास्पद भी बना दिया है। ऐसे हालात में यह जानना जरूरी हो जाता है कि स्त्रीवाद की जरूरत किसे है।
फेमिनिज्म या स्त्रीवाद, हाशिए पर पड़ी उन तमाम स्त्रियों, लड़कियों के लिए है, जो अब तक शिक्षा तक के अधिकार से वंचित हैं। जो बाल विवाह और अन्य सभी कुरीतियों, पाखंडों का शिकार हैं। जो अब भी मासिक और प्रसूति की शारीरिक समस्याएं झेलती असमय मौत का शिकार हो जाती हैं। फेमिनिज्म या स्त्रीवाद उनके लिए है, जो महानगरों, शहरों में अपनी अस्मिता की लड़ाई के लिए सुबह-शाम सड़कों, कार्यालयों, बसों, मेट्रो में धक्के खाती हैं। फेमिनिज्म या स्त्रीवाद उनके लिए है, जो शिक्षित और संभ्रांत परिवार से होने के बावजूद हर निर्णय के लिए पिता, पति और पुत्र का ही मुंह जोहती हैं। जिनके लिए ऐशो-आराम के साधन तो जुटा दिए जाते हैं, पर जिनकी स्थिति पिंजरे की मैना सी होती है, जो खुद भी पितृ सत्ता की एजेंट बन जाती हैं।
इन सबसे इतर एक ‘अभिजात्य फेमिनिज्म’ भी है जिसकी अराजक ‘माई चॉइस’ की रट सिर्फ स्त्रीवाद के मूल संघर्ष को ही हाशिए पर नहीं डालती, स्त्री के मनुष्य समझे जाने के अधिकार की भी धज्जियां उड़ा देती है। स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच की विभाजन रेखा बहुत महीन है। चयन का अधिकार हर मनुष्य का नागरिक अधिकार होना चाहिए, लेकिन हर चयन स्त्रीवाद के संघर्ष के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता। मसलन सिगरेट, शराब, सेक्स संबंध किसी का व्यक्तिगत निर्णय है। अगर एक स्वस्थ समाज ने अपने विकास के लिए इनसे जुड़े कुछ अघोषित नियम बना रखें हैं, तो वह सभी पर लागू होते हैं।

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