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जिनके लिए बदलाव वे ही परेशान क्यों?

 जीएसटी कर दरों और इसकी तैयारियों को लेकर व्यापारी और उद्यमी परेशान हैं
वहीं आम आदमी को लग रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुएं और सेवाएं
काफी महंगी हो जाएंगी

Jun 29, 2017 / 10:59 pm

शंकर शर्मा

GST opinion news

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प्रो. वी.एस. व्यास प्रमुख अर्थशास्त्री

जीएसटी कर दरों और इसकी तैयारियों को लेकर व्यापारी और उद्यमी परेशान हैं वहीं आम आदमी को लग रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुएं और सेवाएं काफी महंगी हो जाएंगी। लागू होने के बाद क्या महंगा होगा या क्या सस्ता हो जाएगा, चिंता इस बात की नहीं है। जरूरी यह है कि इसे लागू करने संबंधी परेशानियों से निजात पाई जाए।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 30 जून 2017 की मध्यरात्रि को संसद भवन में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) का एप लांच करेंगे। इस ऐतिहासिक कदम के बाद लंबे समय से चर्चा में रहा जीएसटी पूरे देश में कर कानून के रूप में लागू हो जाएगा। जीएसटी 1 जुलाई 2017 से केरल और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में क्रियान्वित हो जाएगा। केरल की विधानसभा में अगले सप्ताह तक जीएसटी कानून पारित होने की उम्मीद है।

तमाम तरह की आशंकाओं के बावजूद अर्थशास्त्रियों द्वारा इसे स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़े कर सुधार के रूप में देखा जा रहा है। मैं भी मानता हूं कि करों की समरूपता के लिहाज से जीएसटी का उद्देश्य बहुत ही अच्छा है लेकिन इसे पूरी तैयारी के साथ लागू किया जाना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि इसके लिए न तो उद्यमी और न ही सरकार पूरी तरह से तैयार है। जीएसटी के संदर्भ में दो तरह की समस्याएं हैं, एक तो अलग-अलग वस्तुओं और सेवाओं पर कर दरों को लेकर और दूसरे इसे लागू करने की तैयारियों को लेकर।

पहली समस्या का तोड़ तो यही है कि व्यापारियों को देर-सबेर समझा-बुझाकर काम चला लिया जाए। लेकिन, दूसरी समस्या अधिक विकट है, इसके लिए कमजोरी नहीं छोड़ी जा सकती। सरकार यह कहकर नहीं बच सकती कि छोटे व्यापारी जो 20 लाख रुपए के टर्नओवर की सीमा में ही कारोबार करते हैं, उन्हें कोई परेशानी नहीं है और इससे अधिक टर्नओवर वाले व्यापारी और कंपनियां, इसकी तैयारी कर ही लेंगी।

सवाल यह उठता है कि क्या वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार करने वाली कंपनियों और व्यापारियों ने इंटरनेट से संचालित होने वाली नई कर प्रणाली के लिए खुद को तैयार कर लिया है? क्या इंटरनेट की उन्हें सुविधा हर समय उपलब्ध रहेगी? क्या व्यापारियों और उद्यमियों ने आवश्यक सॉफ्टवेयर को लेकर तैयारी कर ली है? इससे भी बड़ी बात क्या सरकार भी पूरी तरह से तैयार है। केवल एप लांच करने भर से ही तो काम नहीं चलने वाला।

समझ में यह भी नहीं आ रहा है कि इसे लागू करने की हड़बड़ी आखिर क्यों दिखाई जा रही है। लागू करना है भी तो इसे पूरी तैयारी के साथ लागू करना चाहिए। मैं एक बार फिर कहूंगा कि नई कर व्यवस्था वास्तव में कर सुधार ही है लेकिन किसी भी व्यवस्था को जब लागू किया जाता है तो तैयारियों के लिए पूरा वक्त लिया जाता है। एक ही झटके में उसे लागू करना काफी कठिन हो जाता है। देश के व्यापारी और उद्यमी पुरानी व्यवस्था के आदी हैं, उन्हें अचानक कर प्रणाली बदलने से परेशानी अवश्य ही आएगी। उन्हें पर्याप्त समय देना चाहिए।

अचानक नई कर प्रणाली शुरू करने से उनका व्यापार निश्चित तौर पर बाधित होगा। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जीएसटी वर्तमान में दुनिया के 140 से भी ज्यादा देशों में लागू है तो सवाल उठता है कि हमारे यहां लागू करने में क्या परेशानी है? निस्संदेह हमारे यहां भी इसे जरूर लागू करना चाहिए लेकिन इतना भी समझें कि जिन देशों में इसे लागू किया जा चुका है, वहां भी उद्यमियों-व्यापारियों को पुरानी व्यवस्था से नई व्यवस्था अपनाने और पर्याप्त संसाधन जुटाने के लिए समय दिया गया होगा। हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं किया जा रहा?

देश में इसके लागू होने के एक दिन पहले तक भी आम आदमी और व्यापार जगत में काफी आशंकाओं और असमंजस का माहौल है। व्यापारी और उद्यमी कर दरों व इसकी तैयारियों को लेकर परेशान हैं, तो आम आदमी को लग रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुएं और सेवाएं काफी महंगी हो जाएंगी।

जीएसटी लागू होने से पहले ही बाजारों में सस्ती दरों पर सामान बेचने की होड़ लग गई है। ऑनलाइन खरीद पर ही नहीं बड़े-बड़े शॉपिंग बाजारों में भी दाम घटाकर वस्तुओं को बेचने के ऑफर दिए जा रहे हैं। ये सभी इस बात को पुख्ता कर रहे हैं कि आम आदमी के लिए जीएसटी लागू होने बाद महंगाई बढऩे वाली है। लेकिन, चिंता इस बात की नहीं है कि क्या महंगा होगा या क्या सस्ता हो जाएगा।

अभी तो जरूरी है कि इसे लागू करने संबंधी परेशानियों से निजात पाई जाए। लोगों में जीएसटी को लेकर पनप रहीं भ्रांतियों को दूर करना जरूरी है। लोगों को यह समझाना जरूरी है कि नई कर प्रणाली पुरानी प्रणाली के मुकाबले बेहतर और उनके हित में है। हाल ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा है कि शुरुआत में जीएसटी को लागू करते हुए सरकार नरम रुख रखेगी। दो महीने के बाद भी व्यापारी-उद्यमी रिटर्न भरें तो भी चलेगा।

शायद वे उन्हें भी तैयारियों का समय ही देने की बात कर रहे हैं? मेरा तो इतना ही कहना है कि यदि यही सब कहना और करना था तो फिर व्यापारियों-उद्यमियों पर सख्ती करने की जरूरत क्या है? उन्हें तैयारी के लिए और समय दे दिया जाए साथ में कर दरों संबंधी परेशानियों को इस दौरान निपटा लिया जाए।

नई कर प्रणाली व्यवसाइयों की सुविधा के लिए है और उन्हें ही परेशानी हो तो इस प्रणाली का लाभ ही क्या है। ऐसा लगता है कि पहली जुलाई को जैसे कोई मुहूर्त निकाल कर बैठ गई है सरकार और उसने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।

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