भौतिकवादी संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसलिए नागरिकों की मानसिकता बदलती जा रही है। प्राचीन काल में पहले बचत, फिर उपभोग की संस्कृति थी। अब पहले उपभोग, बाद में बचत की प्रवृत्ति से ऋण लेने की नौबत आ जाती है। उपभोक्ता ऋणों की आसान उपलब्धता, दिखावे की पृवत्ति में बढ़ोतरी, खरीद के पाइंट पर ही ऋणों की उपलब्धि, बिना जमानत के ऋणों की उपलब्धि आदि कारणों से भारत के नागरिक भी तेजी से ऋणों के जाल में फंसते जा रहे हैं।
-गिरीश कुमार जैन, कोटा
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आय के स्रोतों की कमी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अत्यधिक खर्चे, भौतिकवाद की चकाचौंध में नागरिकों में कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। प्रचलित मुद्रा की अधिकता से कर्ज नागरिकों को आसानी से उपलब्ध होता है। साहूकार, बैंक, सूदखोर नागरिकों को ब्याज के लोभ में ऋण उपलब्ध कराते हैं। नागरिकों में कर्ज लेने की प्रवृत्ति दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, जो कई बार जानलेवा भी हो जाती है।
-कुमेर मावई, करौली
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पश्चिमी जीवनशैली की नकल और सब कुछ तुरंत पाने की इच्छा लोगों को कर्ज के जंजाल में फंसा रही है। यह चिंताजनक स्थिति है।
-राजीव राय बेंगलूरु
……………… कर्ज बना दुविधा
कर्ज लेने से हाथ में पैसा आता है, जिसे व्यक्ति की खरीद शक्ति बढ़ती है। इसी सहूलियत के चलते धीरे-धीरे यह उसकी प्रवृत्ति बनती जाती है, जो एक दिन उसे डुबो देती है।
-वन्दना दीक्षित, कोटा
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आसानी से कर्ज मिलने, होड़ एवं दिखावे की प्रवृत्ति के कारण कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। निवेश करके लाभ कमाने की लालसा भी कर्ज की ओर ले जाती है ।
-मोहन लाल सिन्धी, गुरुग्राम
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ऐसे युवा जो नई स्किल को महत्व देने की बजाय सामाजिक दिखावे को ज्यादा महत्व देते हैं, उनमें कर्ज लेने की प्रवृत्ति भी बढऩे लगती हैं।
-राजेंद्र पटेल, मांडावास, पाली
……………. विलासितापूर्ण जीवनशैली
समाज में बढ़ती ऋण लेने की प्रवृत्ति हमारी भौतिकतावादी विलासतापूर्ण जीवन जीने का परिणाम है। हम भौतिक सुखों को प्राप्त करने एवं समाज में बनावटी प्रतिष्ठा के लिए कर्जयुक्त जीवन का सहारा लेते हैं।
– बीरबल सिद्ध जाखड़, मालासर चूरू
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जो व्यक्ति सीमित साधनों में असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति की आकांक्षा करता है, वही कर्ज जाल में फंसता है। बाजार में कर्ज देने वालों की होड़ लगी है, जिनके मायाजाल में वह आसानी से फंस जाता है। यही कारण है कि कर्ज लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
-शिवराज , मुवेल, झाबुआ
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अनावश्यक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ऋण का सहारा लेने लगते हैं। इस प्रकार ऋण लेने की आदत पड़ जाती है। वास्तव में ऋण लेना मजबूरी नहीं, एक आदत का परिणाम है। अत: हमें शांतिपूर्ण जीवन निर्वाह के लिए कर्ज से बचना चाहिए। फसल की बुवाई के लिए लोन लेना बेहतर कदम है, शिक्षा ऋण भी आपकी भावी योजना के हिसाब से बेहतर साबित हो सकता है.
-अनोप भाम्बु, जोधपुर
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बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के कारण उच्च शिक्षित भी बैंकों से लोन लेकर अपना कारोबार करना चाहते हैं। इसलिए कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ रही है।
-सज्जाद अहमद कुरेशी, शाजापुर