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दिन-प्रतिदिन सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराता क्यों जा रहा है ?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

May 07, 2021 / 04:50 pm

Gyan Chand Patni

दिन-प्रतिदिन सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराता क्यों जा रहा है ?

दिन-प्रतिदिन सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराता क्यों जा रहा है ?

भयावह स्थिति
निस्संदेह दिन-प्रति-दिन सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराता जा रहा है, क्योंकि किसी ने नहीं सोचा कि कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयावह स्थिति पैदा करेगी। सरकार को चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए।
-सोहैल खान, कोटा
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विश्वास का संकट
इस वर्ष कोरोना के कहर ने राज्य व केंद्र सरकार के सिस्टम को नाकारा साबित कर दिया है। संजीवनी कहे जाने वाले अस्पतालों के दर पर मरीज दम तोड़ रहे हैं । गंभीर मरीजों के लिए भी अस्पतालों के दरवाजे बंद हो चुके हैं। राज्य सरकार हो अथवा केंद्र सरकार पीडि़तों को राहत नहीं दे पा रही। ऐसे में दिन प्रतिदिन सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराना स्वाभाविक है।
-पूरण सिंह राजावत, जयपुर
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भ्रष्ट आचरण मुख्य कारण
सरकारी तंत्र अपनी निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के कारण विफल सिद्ध हुआ है। बिना रिश्वत के के कोई भी आवश्यक कार्य नहीं होता। रिश्वत के लोभ ने राजकीय व्यवस्था की गरिमा को खत्म कर दिया है। कोरोना महामारी जैसी कठिन समय में भी सरकारी तंत्र जनता के लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है। इसी कारण जनता सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर जरा भी भरोसा नहीं करती।
-मनु प्रताप सिंह चींचडौली, खेतड़ी
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हकीकत आई सामने
सिस्टम की अच्छाई-बुराई, विश्वास-अविश्वास, अक्सर संकट की घडिय़ों में ही सामने आती है। महामारी परीक्षा की घड़ी होती है, जिसमें न केवल अपनों की पहचान होती है, बल्कि शासकों की हकीकत भी सामने आ जाती है। अस्पतालों में चिकित्सा संसाधनों की कमी, दवाओं की कालाबाजारी, इसके साथ लडख़ड़ाता हमारा ढांचा कहीं ना कहीं हमारी कमजोरी को दिखा रहा है। ऐसे में सिस्टम को और भी सुदृढ़ व मजबूती प्रदान करना आज की जरूरत है। सरकार को जनता का विश्वास जीतना होगा।
-कुमकुम सुथार, रायसिंहनगर, श्रीगंगानगर
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संसाधनों की कमी
एक वर्ष पूर्व से हम इस महामारी से जूझना शुरू हुए थे परन्तु सरकारों का लचर सिस्टम एवं बीमारी को गंभीरता से नहीं लेने के कारण आज हम फैल हो रहे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी, प्रमुख इंजेक्शनों की आपूर्ति होने के साथ ही दवाइयों की कालाबाजारी एवं अन्य जरूरी संसाधनों की कमी ही इसके प्रमुख कारण बनते जा रहे हैं। ऐसे आपातकाल में जनप्रतिनिधि भी अपनी भूमिका को सही ढंग से नहीं निभा पा रहे हंै। दिन प्रतिदिन ऑक्सीजन की कमी होने से लोग कालकवलित हो रहे हैं।
-विवेक जैन, जयपुर
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बार-बार छली गई जनता
सिस्टम पर विश्वास करके जनता बार-बार छली गई है। नेताओं की कथनी और करनी में भारी अंतर है। जिस पर विश्वास करके जनता ने चुना वही सत्ता में आने पर विश्वास को खंडित करता है। इसीलिए अब सिस्टम पर से विश्वास खत्म होता जा रहा है।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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मिलजुल कर करें काम
देश में सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां हर समय एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप ही लगा रही हैं। हर समय एक दूसरे की गलतियां निकालने और एक दूसरे को गलत साबित करने में लगी हुई हैं। यह प्रवृत्ति सिस्टम को कमजोर कर रही है। आम लोगों का सिस्टम पर से विश्वास उठ रहा है। महामारी से लडऩे के लिए सभी को एक साथ मिल जुलकर काम करना होगा ।
-उदित सैनी, जोधपुर
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सुरक्षित नहीं जनता
देश को आजाद हुये 73 साल हो चुके हैं और अभी तक आम इन्सान खुद को सुरक्षित महसूस नहीं मानता। देश में धर्म, जाति और राजनीति के नाम पर दंगे करवाये जाते हैं। राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति या सत्ता में बने रहने की ही कोशिश करते रहते हैं। पिछले वर्ष भी कोरोना संक्रमण फैला था। इस बार तो हमें इससे लडऩे के लिए तैयार रहना चाहिए था। मुश्किल यह है कि जब इस महामारी से लडऩे की तैयारी करनी थी, तब हम चुनावी अखाड़े में उतरे हुए थे।
-प्रदीप सिंह, हनुमानगढ़
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सरकार पर से उठता विश्वास
किसी मरीज की सांसेंं उखड़ रही हों और उसके परिजन को ऑक्सीजन के लिए घंटों लाइन में लगने पर भी ऑक्सीजन न मिल पाए, अस्पतालों में बेड न मिले और श्मशान घाट पर परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा हो तो जनता का सरकार पर से विश्वास उठना स्वाभाविक है। कोरोना की दूसरी लहर आने से पहले सरकार को तैयारी के लिए एक अच्छा अवसर मिला था, जिसे उसने खो दिया ।
-ब्रजेश कुमार राय, महावीर नगर तृतीय, कोटा
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हमारे देश के सिस्टम में भ्रष्टाचार घुल-मिल गया है। कोई सा भी विभाग हो रिश्वत के बिना काम नहीं होता। लिफाफा नहीं दिया तो आपकी फाइल एक टेबल से आगे नहीं बढ़ेगी। अगर आपकी पहुंच ऊपर तक है, तो आपका काम जल्दी हो सकता है। जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, तो भी लोग अपना घर भरने में लगे हैं। तो फिर सिस्टम पर कैसे भरोसा किया जाए?
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन
सिस्टम पर विश्वास का संकट गहराने के कई कारण हैं। देखा गया है कि जो नीतियां एवं योजनाएं बनाई जाती हैं, वे जमीनी हकीकत से कहीं मेल खाती नहीं दिखती हैं। सिस्टम में बैठे लोग ठीक तरह से काम नहीं करते। वर्तमान में कोरोना के उपचार में ऑक्सीजन एवं वैक्सीन की कमी इसको साफ दर्शाती है। जब सिस्टम ही जनता को संतुष्ट नहीं करेगा तो सिस्टम पर से विश्वास उठता ही नजर आएगा।
-वानी माधव प्रधान, जयपुर
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कथनी और करनी में अंतर।
हमारे नेताओं की ही नहीं, बल्कि उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की भी कथनी और करनी में अंतर है। किसी ने भी विशेषज्ञ समितियों की राय को अहमियत नहीं दी। आंकड़ों को जानबूझकर छुपाया गया कालाबाजारी अपने चरम स्थल पर पहुंच गईं। सरकारें कह रही हैं कि संसाधनों की कमी नहीं है। फिर इतनी मौतें क्यों हो रही है? कुछ समय पूर्व बड़े-बड़े भाषण देने वाले नेता अब अपने-अपने बिलों में जाकर सो गए हैं।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़

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