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पाठ्यक्रम कटौती पर क्यों मचा घमासान?

यह दावा तो किया जाता है कि पाठ्यक्रम विशेषज्ञों की सहायता से तैयार किए जाते हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है की पाठ्यक्रमों को लेकर सत्ताधारी दल अपनी विचारधारा को हमेशा ही आगे रखते आए हैं ।

नई दिल्लीJul 13, 2020 / 03:51 pm

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राजेन्द्र मोहन शर्मा, शिक्षाविद व लेखक


केंद्र सरकार ने कोरोना के कारण बंद सीबीएसई के स्कूलों के लिए 30% पाठ्यक्रम कम करने की घोषणा की है । इसी क्रम में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जो पाठ्यक्रम कम किया गया है उसमें संविधान से जुड़े कुछ पाठ भी शामिल हैं। बस इसी आधार पर पाठ्यक्रम को लेकर देशभर में कोहराम मच गया है। सीबीएसई ने पड़ौसी देश नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार के पाठ हटा दिए जबकि इस समय इनके बारे छात्रों को जानना कितना जरूरी है सब जानते हैं । इसी तरह विद्यार्थी इस साल धर्मनिरपेक्षता, नागरिकता, राष्ट्रवाद, जीएसटी जैसे पाठ भी नहीं पढेंगे । दसवीं के छात्र लोकतंत्र और विविधता, लोकतंत्र की चुनौतियां जैसे अनेक पाठों से वंचित रहेंगे ।विषय विशेषज्ञों की राय के आधार पर इन पाठों को हटाने की बात कही जा रही है लेकिन लगता है इस मामले के सारे जानकार एकमत नहीं हैं । अनेक विशेषज्ञ सरकार के इस निर्णय से खुश नहीं हैं ।

हमारे देश में विद्यार्थियों को कब क्या पढ़ना चाहिए इसको लेकर हमेशा ही विवाद रहा है। कहने के लिए एनसीईआरटी द्वारा पाठ्यक्रम तैयार किए जाते हैं और यह भी दावा किया जाता है कि यह पाठ्यक्रम विशेषज्ञों की सहायता से तैयार किए जाते हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं है की पाठ्यक्रमों को लेकर हमेशा ही सत्ताधारी दल अपनी विचारधारा और अपने हितों को हमेशा ही आगे रखते आए हैं । कोरोनाकाल में स्कूलों में अवकाश की स्थिति को देखते हुए एनसीईआरटी जो 30% पाठ्यक्रम कम किया है उसमें भी कुछ इसी तरह के तर्कों का सहारा लिया जा रहा है । इसके कारण कई गैर भाजपाई सरकार है अब अपने पाठ्यक्रमों में भी इसी तर्क के आधार पर पाठ्यक्रमों की समीक्षा कर उसे कम ज्यादा करने का काम करने जा रही हैं ।

प्रश्न यह नहीं है के पाठ्यक्रम कितना कम किया जाए, प्रश्न उठता है पाठ्यक्रम की क्रमबद्धता और उसकी उपादेयता की स्थिति क्या है । पाठ्यक्रमों में से जिन पाठों को हटाया जा रहा है यह देखना बहुत आवश्यक है कि उनके कारण क्रमबद्धता तो नहीं टूट रही है । सीबीएसई ने जिन पाठों को हटाया है उनमें या खतरा पैदा हो गया है । वहां अनेक ऐसे पाठ हैं जो पाठों के हटाने के बाद आगे पीछे के अन्य पाठों के साथ अब मेल नहीं कर पा रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम में आवंटित सारे पाठ पढ़ाए जाते और परीक्षा केवल उन पाठों में से ली जाती जो एनसीईआरटी या बोर्ड द्वारा निर्धारित किया जाए जाते ।
इससे लाभ यह होता के विद्यार्थियों को समग्र रूप से अपने विषय को पढ़ने और समझने में सहायता मिलती शिक्षकों को भी यह आसानी रहती कि वह विद्यार्थियों को कर्मबद्धता से सारे पाठ पूरे कराते और यह भी बताते कि आपको इन पाठों के आधार पर ज्ञान और समझ विकसित करने में सहायता मिलेगी। कहने वाले शिक्षण कार्य के लिए समय की कमी और छात्रों पर दबाव की बात कह सकते हैं लेकिन आप ही बताइए सरकार के अंग पढाते हुए संसद तो पढाई जाए और उसकी कानून निर्माण की प्रक्रिया छोड़ दी जाए तो कैसा लगेगा ।

जब बात बात में राजनीतिक नजरिया सामने हो और हर बार हम प्रत्येक वस्तु को भले ही उससे हमारी युवा पीढ़ी का भविष्य ही क्यों न जुड़ा हो राजनीतिक आधार पर निर्णय करने लगेंगे तो खिलवाड़ तो निश्चित ही होगा । राजस्थान के शिक्षा मंत्री ने केन्द्रीय सरकार के पाठ्यक्रम कम करने के तरीके की कड़ी आलोचना की है और यह भी घोषणा की है कि हम भी विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित कर पाठ्यक्रमों का स्वरूप निर्धारित करेंगे ।

केंद्र सरकार के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में इस बात के आशंका है कि राजस्थान में भी माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा कुछ ऐसा ही कदम उठाया जाएं जो एक प्रकार से केन्द्र के द्वारा उठाए गए कदम का उत्तर होगा । इससे राजनीतिक आकाओं का कद घटेगा या बढ़ेगा कहा नहीं जा सकता लेकिन विद्यार्थियों को नुकसान अवश्य होगा ।

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