प्रो. विद्या जैन निदेशक, गांधी अध्ययन केंद्र, राज. विश्वविद्यालय, जयपुर
बिहार सरकार ने राज्य में शराबबंदी की शुरुआत करके साहसिक कदम उठाया है। यह चरणबद्ध शुरुआत है। राज्यभर में देसी शराब न तो तैयार होगी और ना ही इसकी बिक्री की जा सकेगी। गांवों में किसी भी किस्म की शराब नहीं बिकेगी अलबत्ता शहरों में सीमित स्तर पर विदेशी शराब जरूर मिलेगी।
उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में बिहार में संपूर्ण शराबबंदी लागू हो सकेगी। यह सही है कि शराबबंदी लागू करने के मामले में बिहार पहला राज्य नहीं है। उससे पहले गुजरात और केरल में शराबबंदी लागू है। सवाल यह नहीं है कि शराबबंदी लागू करने के मामले में कौनसा राज्य आगे है और कौनसा नहीं बल्कि सवाल इच्छाशक्ति का है जो बिहार सरकार ने दिखाई है। सवाल यह भी है कि यदि देश के कुछ राज्य इस तरह के कदम उठा सकते हैं तो क्या पूरे देश में शराबबंदी लागू नहीं की जा सकती? एक साथ नहीं तो बिहार की तरह चरणबद्ध तरीके से इसे लागू करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।
शराब बिक्री के तर्क
ऐसा नहीं है कि देश में शराबबंदी लागू करने को लेकर विचार नहीं हुआ हो। स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और पहले प्रधान प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच इस विषय को लेकर काफी लंबी बहस भी हुई थी। लेकिन, तब शराबबंदी को लागू करने पर फैसला नहीं हो सका। तब यह तर्क भारी पड़ा कि शराब की बिक्री से सरकार को भारी आमद होती है और इस आमद क इस्तेमाल समाज के लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने के लिए किया जा सकता है। स्कूल-कॉलेज खोले जा सकते हैं। मेडिकल सुविधाएं शुरू की जा सकती हैं। लेकिन, हम सभी को पता है कि शराब की बिक्री से कितनी बड़ी आय होती है और इस आय का क्या उपयोग होता रहा है। सवाल यही है कि क्या शराब की बिक्री से होने वाली आय की भरपाई का अन्य कोई रास्ता ही नहीं है? क्या आमजन के स्वास्थ्य की कीमत से बड़ी है ऐसी आय?
आय की बात बेमानी
ये तर्क बेमानी हैं कि शराब की बिक्री से राज्य को भारी मात्रा में आय होती है और इस आय को बंद कर पाना बेहद कठिन कदम है। निस्संदेह शराब की बिक्री से राज्यों को भारी-भरकम आय होती रही है। बिहार को केवल देसी शराब की बिक्री से ही 2000 करोड़ रुपए की आय होती रही है।
ऐसे में उसने यह साहसिक कदम उठाया ही। मामला केवल इतनी बड़ी राज्य की आय को छोडऩे का नहीं है बल्कि यह भी सोचने का है कि शराब पीने के कारण किस तरह से लोगों की और उनसे जुड़े परिवारों की जिंदगी तबाह होती रही है। जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं उपलब्ध कराना भी सरकार का काम है। शराब के कारण बीमार पड़े लोगों के इलाज का खर्च भी कभी जोड़कर देखा जाए कि यह ज्यादा है या शराब से होने वाली आय। हां, शराब की बिक्री से राज्य को होने वाली आय की तुलना लोगों की जिंदगी से तो बिल्कुल ही नहीं की जा सकती।
गांधी जी भी थे खिलाफ
महात्मा गांधी देश में पूर्ण शराबबंदी के पक्ष में थे। वे कहा करते थे कि यदि उन्हें मौका मिले तो वे देशभर में बिना किसी मुआवजे के शराबबंदी लागू करवा दें। उनका मानना था कि शराब से होने वाली आय के मुकाबले नशामुक्त समाज तैयार करना ज्यादा जरूरी है। उनका यह मानना बिल्कुल सही है कि शराब के इस्तेमाल से समाज में अपराधों की संख्या बढ़ती ही है। शराब के इस्तेमाल के साथ ही भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है, क्या इसे रोकने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है?
क्या सरकार का सारा ध्यान इससे होने वाली आय पर ही रहेगा? उनका जोर राजनैतिक आजादी की लड़ाई पर तो था ही लेकिन इससे अधिक वे सामाजिक आजादी की बात भी किया करते थे। गांधी जी कहा करते थे कि सशक्त राष्ट्र के लिए जरूरी है कि उस देश का समाज नशामुक्त हो, अपराध मुक्त हो। समाज के लोगों को आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं मिलें। लेकिन, दुर्भाग्य से गांधी के अनुयायियों ने ही ने उनकी इस सोच को आगे नहीं बढ़ाया। अब भी समय है बिहार के इस कदम से देश को सीख लेनी चाहिए।
नई पीढ़ी व व्यसन
एक दौर था जबकि समझा जाता था कि महिलाएं तो शराब से दूरी बनाकर ही चलती हैं। वे खुद तो इसके सेवन से दूर ही रहती हैं बल्कि पुरुषों पर भी वे अंकुश में सहायक होती हैं। लेकिन, हमारे समाज में आधुनिक बनने की होड़ ऐसी लगी कि महिलाओं ने पुरुषों से मुकाबला करना शुरू कर दिया।
पुरुषों के साथ महिलाएं भी खासतौर पर युवा पीढ़ी शराब सेवन को सामाजिक स्तर से जोड़कर देखती है। अब तो गरीब घर की महिलाएं भी शराब का सेवन करती हुई देखी जा सकती हैं। महात्मा गांधी का कहना था कि महिलाओं को पुरुषों की बराबरी की आवश्यकता नहीं है। पुरुषों के पहनावे की नकल करने और उनकी तरह के व्यसन पालने में बराबरी करने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि पुरुषों को चाहिए कि वे महिलाओं की बराबरी करें। वे स्वयं में करुणा का भाव जागृत करें। देश को सामाजिक पुनरोत्थान की जरूरत है।
गुजरात है अग्रणी
शराब बिक्री से होने वाली आय से किसी राज्य की प्रगति जुड़ी होने का तर्क बेकार है। हमारे सामने गुजरात एक मॉडल राज्य के रूप में सामने हैं। गुजरात में शराबबंदी 1960 से ही लागू है। इसके साथ ही यह भी गौर करने लायक बात है कि आजादी के बाद यदि किसी राज्य में तेजी से औद्योगीकरण की बात होती है तो महाराष्ट्र के बाद गुजरात का ही नाम आता है। उसे तो कभी शराब बिक्री से होने वाली आय की जरूरत नहीं पड़ी। इसका अर्थ है कि अन्य राज्य भी शराब बिक्री से होने वाली आय की बजाय उद्योग लगाकर राज्य आर्थिक विकास कर सकते हैं।