इस बात से तो यही कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया के मंच का रुख तानाशाहों के पक्ष में झुका हुआ रहता है। बीते अक्टूबर माह के दौरान सीनेट के सामने पेश हुए ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी ने कहा था कि खामनेई के यहूदी-विरोधी ट्वीट और इजरायल का नामोनिशान मिटाने के नारों से कंपनी के नियमों का उल्लंघन इसलिए नहीं होता क्योंकि ये ‘कोरी धमकियां मात्र’ हैं। डोर्सी ने दावा किया क्योंकि खामनेई के जुबानी हमले अपने नागरिकों के खिलाफ नहीं हैं, इसलिए वे स्वीकार्य हैं। यह कोरा झूठ है और इसमें दूरदर्शिता का अभाव है। नवंबर 2019 के विरोध प्रदर्शन इसका उदाहरण हैं, जब शासन ने कम से कम एक सप्ताह के लिए इंटरनेट बंद कर दिया था। इंटरनेट बहाल होने पर सामने आए वीडियो दिल दहला देने वाले थे।
अमरीकी नागरिकों को जिस तरह की लोकतांत्रिक संस्थाएं सुलभ हैं, ईरानी नागरिकों के लिए उनका अभाव है और उनके लिए सोशल मीडिया का मंच ही अपनी बात कहने का उपकरण है। अब समय आ गया है कि सोशल मीडिया कंपनियां तानाशाहों को नफरत फैलाने के लिए इन प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग करने से रोकें।
– द वॉशिंग्टन पोस्ट