scriptमहिला अपराध के दोषियों के प्रति नरमी क्यों? | why soft corner for people who crime against women | Patrika News
ओपिनियन

महिला अपराध के दोषियों के प्रति नरमी क्यों?

सुप्रीम कोर्ट का यह रोष, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले पर फूटा, जहां एक तेजाब पीड़िता के मुजरिम को सिर्फ 30 दिन के कारावास की सजा सुनाई।

Mar 21, 2017 / 11:26 am

समाजशास्त्री

युवती पर एसिड हमले के अपराध में तीस दिन के कारावास से न्याय न सिर्फ बहिष्कृत हुआ, बल्कि अनौपचारिक तौर पर वानप्रस्थ भेज दिया गया। इसकी कतई इजाजत नहीं दी जा सकती। 

सुप्रीम कोर्ट का यह रोष, आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले पर फूटा, जहां एक तेजाब पीड़िता के मुजरिम को सिर्फ 30 दिन के कारावास की सजा सुनाई। एक अन्य मामले में 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता बच्ची ने जब मनोधैर्य सरकारी योजना के तहत 3 लाख रुपए मुआवजा मांगा तो महाराष्ट्र सरकार ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह मामला आपसी सहमति का है। 
मुम्बई उच्च न्यायालय ने इस रुख को ‘क्रूर’ बताया। ये दोनों ही मामले ये बताने भर के लिए पर्याप्त हैं कि हम महिलाओं के प्रति कितने असंवेदनशील हैं। दोनों ही जघन्य अपराधों में पीड़िताओं को मुआवजा भीख नहीं, राज्य का दायित्व था। 
केंद्र से राज्य सरकारें तक महिला सशक्तीकरण का पैरोकर होने का दावा करते नहीं थकतीं। पर जब बात महिलाओं को उनके अधिकार देने की आती है तो कोई न कोई अड़चन खड़ी कर दी जाती है। सभी राज्यों में महिला सशक्तीकरण के लिए अलग विभाग हैं जिसमें बड़ी संख्या में अधिकारी कर्मचारी तैनात हैं फिर भी पीड़िताओं को अगर विभाग न्याय नहीं दिला सकता तो ऐसे विभाग के होने का कोई औचित्य नहीं है। 
कानून और प्रशासन की लचर व्यवस्था और सोते हुए समाज की नींद स्त्री की पीड़ा से कभी भी नहीं खुलती और यही कारण है कि विगत दशकों में दुष्कर्म और तेजाब हमलों के मामलों में निरंतर बढ़ोतरी हुई है और इससे भी कहीं अधिक दु:खद पहलू यह है कि इस तरह के मामले भी कोर्ट की तारीखों की भेंट चढ़ जाते हैं। 
पीड़िताएं न्याय के इंतजार में अपना जीवन निकाल देती हैं। 1992 के राजस्थान में भटेरी गांव की भंवरी देवी का दुष्कर्म प्रकरण जिसका फैसला आने में 15 साल से अधिक लगा था। यक्ष प्रश्न फिर वहीं है। क्यों निचली अदालतें भी महिलाओं के प्रति यूं असंवेदनशील दिखाई देती है। 
सबूत ढूंढने के खेल में, पीड़िताओं के अस्तित्व को छिन्न-भिन्न किया जाता है। अपराधियों को सजा देते वक्त दयाभाव क्यों इतना हावी रहता है। क्यों पुलिस थानों से लेकर निचली अदालतों में मध्यस्थ के रास्ते चुनने का प्रयास किया जाता है। क्या अब यह अपरिहार्य नहीं हो जाता कि ऐसे जघन्य अपराधियों के प्रति नरमी नहीं बरती जाए। सरकारें पीड़िताओं के दर्द को समझें। 

Home / Prime / Opinion / महिला अपराध के दोषियों के प्रति नरमी क्यों?

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो