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क्यों हो नुकसान का इंतजार?

हाल ही में नेस्ले इंडिया के लोकप्रिय
उत्पाद “मैगी नूडल्स” में तय मात्रा से अधिक सीसा पाया गया।

Jun 03, 2015 / 11:32 pm

मुकेश शर्मा

Maggi noodles

Maggi noodles

हाल ही में नेस्ले इंडिया के लोकप्रिय उत्पाद “मैगी नूडल्स” में तय मात्रा से अधिक सीसा पाया गया। कुछ राज्यों ने इसकी बिक्री पर पाबंदी लगा दी तो कुछ ने जांच शुरू कर दी।


ऎसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी एक खाद्य पदार्थ में तय मानकों के विपरीत पदार्थो का इस्तेमाल हुआ हो लेकिन सवाल यह है कि चाहे खाद्य उत्पाद हो या कोई अन्य उत्पाद, नुकसान की स्थिति में ही हम क्यों जागते हैं? बहुत से ऎसे उत्पाद हैं जो अन्य देशों के मानकों पर खरे नहीं हैं लेकिन हमारे यहां धड़ल्ले से बिकते हैं।


समय रहते क्यों नहीं उठाये जाते उन पर कदम? क्यों नहीं होती समय पर जांच? बहुत से प्रसिद्ध कलाकार और खिलाड़ी इन उत्पादों का विज्ञापन भी करते हैं, यदि उत्पाद में कुछ गलत पाया जाता है तो क्या उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए? जानिए ऎसे सवालों पर विशेषज्ञों की राय आज के स्पॉटलाइट में…

सभी ब्रांडों की हो जांच

प्रदीप सिंह मेहता, कट्स


अनेक बार ऎसा देखने में आता है कि हमारे देश में उत्पादों को लेकर हम बहुत देर से जागरूक होते हैं। हमारे दैनंदिन जीवन में उपयोग आने वाले बहुत से पदार्थ ऎसे हैं जो हमारे लिए नुकसानदेह हैं लेकिन हमें इसके बारे में नियमित प्रयोग के बाद ही पता चलता है। चूंकि नुकसान बहुत धीरे-धीरे होता है और असर बाद में जाकर पता चलता है इसीलिए इनके इस्तेमाल को लेकर लोग अकसर लापरवाह रहते हैं।


ताकतवर व्यापारिक लॉबी

जिन चीजों का रातों-रात असर होता है, उनके मामले में त्वरित कार्रवाई हो भी जाती है और मामले भी दर्ज हो जाते हैं। लेकिन, कुछ पदार्थ ऎसे हैं जिनके लगातार इस्तेमाल से दीर्घकाल में बड़ा नुकसान सामने आता है। ऎसे में आमजन के अलावा अन्य जिम्मेदार लोग भी लापरवाह हो जाते हैं।


तंबाकू उत्पादों को ही लीजिए। सब जानते हैं कि धीमा जहर है लेकिन धड़ल्ले से बिकते ही हैं। इसी तरह बीच में सॉफ्ट ड्रिंक्स में ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑयल (बीवीओ) के इस्तेमाल को लेकर मुहिम चलाई गई थी। काफी संघर्ष के बाद यह बंद हो सका। एक प्रतिष्ठित कंपनी की ओर से आवाज को दबाने का काफी प्रयास किया गया। फिर भी सफलता मिली।



किसी भी किस्म का अभियान लीजिए व्यापारिक लॉबी काफी सशक्त होती है और मामला उसके विपरीत जा रहा हो तो बात को दबाने के लिए वह पूरी ताकत लगा देती है। एक जापानी कंपनी मोनोसोडियम ग्लूटामेट बनाती है और यह नूडल्स में भरपूर इस्तेमाल होता है। यह रसायन बासा खाने को भी ताजा दिखाने में कारगर होता है। आमतौर पर इसे चाइनीज रेस्टोरेंट सिंड्रोम भी कहा जाता है। यह पूरे तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभावत डालता है।


अनेक देशों में इस पर पाबंदी भी है लेकिन हमारे देश में इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है। मामला यही है कि हम देर से चेतते हैं। शायद बड़े नुकसान की प्रतीक्षा करते हैं! दवाइयों के मामले में भी अकसर ऎसा ही होता है। बहुत सी दवाइयां ऎसी हैं जिन पर विदेशों में रोक है, हमारे देश में खूब बेची और खरीदी जाती हैं।

कानून की लचर अनुपालना

ऎसा नहीं है कि देश में विदेशी सामग्री यूं ही इस्तेमाल होने लग जाती है या फिर विदेशी कंपनी भारत में कुछ भी बनाकर बेच दे तो सब चल जाएगा। हकीकत यह है कि हमारे देश में नियम हैं, कानून हैं लेकिन संसाधनों के अभाव में पूरी निगरानी नहीं हो पाती है। मानव संसाधन, प्रयोगशालाओं और प्रभावी प्रवर्तन की बहुत कमी है देश में।


इनकी पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाने से जांच में विलंब होता रहता है। इसका लाभ कंपनियां और छोटे व्यापारी भी उठाते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो की ओर से या राज्य में विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से जांच होती हैं लेकिन ये सब नियमित ना होकर, कभी-कभार वाली स्थिति में होती हैं। अब नूडल्स में मिलने वाले सीसे को ही लीजिए। तय मात्रा से अधिक पाये जाने पर कुछ राज्यों में मैगी नूडल्स पर पाबंदी लगाई गई है और कहीं-कहीं पर जांच चल रही है।


अब यहां पर आगे बढ़कर जांच करने वाली बात यह है कि एक ही ब्रांड क्यों अन्य ब्रांड या अन्य स्थानीय नूडल्स की भी जांच की जानी चाहिए कि क्या उनमें भी तो सीसे की मात्रा तय मानकों से अधिक नहीं है लेकिन अभी तक इस तरह की शुरूआत नहीं हुई। कम से कम सावधानी के तौर पर ऎसा होना चाहिए था लेकिन हुआ नहीं है।

मॉडलों के खिलाफ एफआईआर

यह बहुत ही अजीब सी बात है कि मॉडलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की बात हो रही है। जरा सोचिए कि यह कितना अजीब होगा, यदि कोई व्यक्ति किसी राज्य का ब्रांड एंबेसेडर है और उस राज्य में कोई दुर्घटना हो जाए तो ब्रांड एंबेसेडर को दोषी नहीं ठहराते हुए उस पर मुकदमा चलाया जाए। इस आधार पर नूडल्स में यदि गड़बड़ी पाई गई है तो इसके लिए इनका विज्ञापन करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात समझ से परे हैं। यह जरूर है कि प्रसिद्ध शख्सियतें हैं इसलिए उन्हें विज्ञापन में काम करने के लिए पैसा मिल रहा है।


सैद्धांतिक तौर पर यदि वे विज्ञापन करते हैं तो गलत भी नहीं है लेकिन जो शख्सियतें भारत सरकार से पुरस्कार प्राप्त हैं।


उदाहरण के तौर पर सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन आदि यदि ये विज्ञापन करते हैं तो फिर नैतिकता के सवाल खड़े होते हैं। नैतिक रूप से उन्हें कहां आवश्यकता है कि वे विज्ञापनों के जरिए आय अर्जित करें। ऎसे में उन्हें इससे बचना ही चाहिए।

नूडल्स में सीसा

कई राज्यों में नूडल्स के लोकप्रिय ब्रांड मैगी के नमूनों की जांच हुई जिसमें निर्धारित 2.5 पीपीएम (प्रति 10 लाख में अंश) से अधिक सीसा पाया गया। यूपी में लिए गए नमूनों में सीसे की मात्रा का स्तर 17.2 पीपीएम पाया गया।

एमएसजी हो रहा इस्तेमाल


बासे खाने को लंबे समय तक ताजा रखने में उपयोग में लिए जाने वाले रसायन मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) भी इसमें मिला, जिसकी जानकारी पैकेट पर नहीं दी गई थी।

साबित हुआ…

विश्व में डाइट सोडा को लेकर अरसे से बहस चल रही है कि यह स्वास्थ्य को लेकर अच्छा है या बुरा। हाल ही में एक शोध में सामने आया कि डाइट सोडा डाइबिटीज टाइप-2 जैसी मेटाबॉलिक बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है। एक अध्ययन में पाया गया कि कृत्रिम मिठास का उपभोग करने वाले कुछ लोगो के शरीर में जरूरी बैक्टीरिया खत्म हो गए और कुछ में अत्यधिक मात्रा में बढ़ गए। कुछ लोगों के रक्त में शुगर की मात्रा में बढ़ोतरी भी देखी गई।

देता है ढेरों बीमारियां

एक कोला के गिलास में अनुमानित तौर पर दस चम्मच चीनी मिली होती है। कोला में फॉस्फोरिक एसिड का स्तर भी काफी मात्रा में होता है, जिसके कारण किडनी में पथरी जैसी बीमारियां होने की आशंका रहती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स में अत्यधिक चीनी और एसिड होने के कारण दांतों पर इनेमल की परत को क्षति पहुंचती है। अधिकांश सॉफ्ट ड्रिंक्स में फ्रैक्टोज कॉर्न सीरप होता है, जिससे ह्वदय की बीमारियों का खतरा रहता है।

सख्त निगरानी की जरूरत

टी. मोहनदास पाई, टिप्पणीकार

भारत में फूड एंड सेफ्टी के बारे में सुविधाएं और हमारा दृष्टिकोण बहुत सीमित है। सरकार के पास जो संसाधन हैं, वे अपर्याप्त हैं। साथ ही इस क्षेत्र में जांच और निगरानी के लिए प्रशिक्षित स्टाफ भी नहीं हैं। बाजार में बिक रहे खाद्य उत्पादों की समयबद्ध सैम्पलिंग लेकर जांच करनी होती है पर भारत में इस क्षेत्र में इतना भ्रष्टाचार है कि उत्पादों की जांच करना और गड़बड़ उत्पादों पर लगाम लगाना मुश्किल हो गया है।


यह मसला सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। सरकार को फूड एंड सेफ्टी के बारे में सख्त सिस्टम स्थापित करना चाहिए। जांच तंत्र विकसित करना चाहिए। हरेक राज्य में पर्याप्त लेबोरेट्री होनी चाहिए, उनमें आधुनिक उपकरण हों और प्रशिक्षित स्टाफ हो, जो त्वरित जांच करने में सक्षम हो।

हमें अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से काम करने की जरूरत है। खाद्य उत्पादों जैसा हाल ही दवा क्षेत्र में भी है। बाजार में बड़ी तादाद में नकली दवाएं बिक रही हैं पर उन पर लगाम नहीं लग पाती। इनकी जांच भी कितनी स्वतंत्र होती है, यह सबके सामने है। खुद सरकार इस क्षेत्र में प्राथमिकता से पैसा खर्च नहीं करती है।

तुरंत मामला दर्ज हो

सरकार उपभोक्ताओं तक सुरक्षित खाद्य पदार्थो की पहुंच तभी सुनिश्चित कर सकती है, जब वह इस क्षेत्र में संसाधनों के लिए निवेश करे। अभी जिस किसी उत्पाद में गड़बड़ी पाई जा रही है, उस पर तुरंत मामला दर्ज किया जाना चाहिए। सम्बंधित कम्पनी पर फौरन कार्रवाई होनी चाहिए। अभी ऎसा नहीं हो रहा है। दरअसल, सैम्पलिंग को पास कराने के लिए जमकर घूसखोरी होती है इसलिए कमतर उत्पाद भी बाजार में बिकते हैं।


हमारी नई पीढ़ी तो जमकर मैगी जैसे उत्पाद का उपभोग कर रही है। हालांकि सभी जगह मैगी में गड़बडियां नहीं मिली हैं। महाराष्ट्र, गोवा में जांच हुई, वहां गड़बड़ी नहीं मिली। बाकी राज्यों में भी जांच हो रही हैं। पर ऎसे सभी उत्पादों पर निगरानी रखनी चाहिए।

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