पहले कुछ अनुभव साझा करती हूं- एक परिचित की पोस्ट में पढ़ा कि जब वे कोरोना-ग्रस्त थे, तो पत्नी ने किस प्रकार उनकी देखभाल की। डॉक्टर और दवा से लेकर घर तक संभाला। एक सहेल बीमार पड़ी, तो सबने उसकी देखभाल की, पर घर अस्त-व्यस्त हो गया। एक और परिचित सपरिवार संक्रमित हुए, तो पत्नी पर अपनी बीमारी में भी खाने और बच्चों को संभालने का दबाव रहा। इन घटनाओं के बारे में सोचिए। घर संभालना क्या ऐसा रॉकेट साइंस है, जिसकी पढ़ाई केवल स्त्रियां करती हैं? आप सोचिए कि जो जीवन जीने के सामान्य कौशल हैं, जो परवरिश का हिस्सा होने चाहिए, वे सबको क्यों नहीं सिखाए जाते हैं? सबको खाना खाना आता है, सबकी जरूरत है भोजन, लेकिन पकाना एक जेंडर का काम है।
एक चेक लिस्ट बनाइए। घर में झाड़ू-पोछा कौन लगाता है? तीन समय खाना कौन बनाता है? बर्तन कौन साफ करता है? कपड़े कौन धोता और सुखाता है? सूखने के बाद उनकी तह कौन करता है? बिस्तर की चादर कौन बदलता है? घड़े या बोतलों में पानी कौन भरता? ये सब कुछ उदाहरण हैं। घर के जितने काम होते हैं, उनकी लिस्ट बनाइए और देखिए घर की स्त्री कितना करती है और पुरुष कितना। ऐसी चेक लिस्ट बनाकर देखिए, आंखें खुल जाएंगी और ऐसे ही विकट समय में अहसास होगा कि घरेलू जिम्मेदारियों में बराबरी की बात करना कितना जरूरी है। मेरी दोस्त शैलजा कहती है, ‘किसी को एक ग्लास पानी पिलाने में कोई दिक्कत नहीं, पर जो पानी पिला रहा है, वह भी जब बाहर से आए या थक के बैठे, तो उसे भी कोई पानी पिलाने वाला चाहिए न? चाय-पानी पिलाने जैसा घरेलू कार्य भी एक जेंडर को सौंप दिया जाए, ऐसा तो घर नहीं बनाना चाहिए हमें?
(लेखिका समाज, सिनेमा, संस्कृति जीवन-शैली, शिक्षा आदि पर मुखर लेखन करती हैं)