scriptआपका हक : महिलाओं के हिस्से कर्तव्य ही क्यों | Why women have duties only | Patrika News
ओपिनियन

आपका हक : महिलाओं के हिस्से कर्तव्य ही क्यों

करोना काल जैसी विषम परिस्थिति में भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की जिम्मेदारियां और आर्थिक कठिनाइयां बढ़ी हैं।

नई दिल्लीMay 12, 2021 / 11:59 am

विकास गुप्ता

आभा सिंह (सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता)

आभा सिंह (सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता)

आभा सिंह

अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारतीय संविधान में नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। मुश्किल यह है कि जब हम वास्तविक सामाजिक धरातल की बात करते हैं, तो पुरुष बहुत से अधिकारों को अपनी बपौती समझते हैं, तो महिलाओं के हिस्से में कर्तव्य ज्यादा आते हैं। यही सोच सामाजिक असंतुलन का बड़ा कारण है। आंकड़े भी यही इंगित करते हैं कि 21वीं सदी में भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष लाने के लिए अब भी बहुत काम किया जाना चाहिए। कोविड-19 महामारी के दौरान भी यह बात सामने आई है। करोना काल जैसी विषम परिस्थिति में भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की जिम्मेदारियां और आर्थिक कठिनाइयां बढ़ी हैं।

अगर हम आंकड़ों की बात करें तो मार्च 2020 में देश में सख्त लॉकडाउन के दौरान लगभग 12 करोड़ लोगों की आजीविका चली गई थी, उनमें से अधिकतर ऐसे थे, जो अनौपचारिक क्षेत्र में थे और इसमें महिलाओं का प्रतिशत लगभग आधा था। नवंबर 2020 के बाद जब स्थितियों में सुधार हुआ, तो यह देखा गया कि जिन पुरुषों की नौकरियां चली गई थीं, उन्हें कहीं ना कहीं काम मिल गया, लेकिन महिलाएं पीछे छूट गईं। उनके लिए कोई पुख्ता सामाजिक सुरक्षा तंत्र भी नहीं बनाया गया। कोविड-19 और लैंगिक समानता पर मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक असमानता के चलते इस महामारी का प्रभाव समाज के अतिसंवेदनशील और असुरक्षित तबके यानी महिलाओं पर ज्यादा पड़ा। भारत और अमरीका में किए गए एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सही पाया गया। पूरे विश्व में कामकाजी महिलाओं ने दफ्तर के काम के साथ घर का काम जैसे खाना बनाना, सफाई करना, बीमार की सेवा करना इत्यादि भी खूब किया।

ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के कारण पैदा हुई आर्थिक असमानता की खाई को भरने में 257 वर्ष लगेंगे। इसका मतलब कि अगर इस जीवन में ही नहीं, बल्कि अगले जीवन में भी महिलाएं पुरुष के बराबर आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हों पाएंगी। महिला नर्सों ने भी इस संकट में खूब काम किया और अब भी कर रही हैं। अपने दूध पीते बच्चों को, बीमार बुजुर्ग माता-पिता को भारी मन से घर पर छोड़ कर दिन-रात कोरोना मरीजों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। कब तक घर और बाहर के दोहरे दायित्व के बीच केवल महिला ही पिसती रहेगी?
(लेखिका सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं)

Home / Prime / Opinion / आपका हक : महिलाओं के हिस्से कर्तव्य ही क्यों

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो