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ओपिनियन

अपनानी होगी नई प्रवेश प्रणाली

 
शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश परीक्षा छात्रों की रूचि का मूल्यांकन करने वाली होनी चाहिए न की वरीयता सूची तैयार करने वाली। परीक्षाओं में पारदर्शिता, परीक्षा की विश्वसनीय प्रणाली, व मूल्यांकन की जरूरत है। _ _ _

नई दिल्लीJul 17, 2020 / 03:42 pm

shailendra tiwari

Uttarakhand Secondary Education Council

Uttarakhand Secondary Education Council

सत्यनारायण सिंह, पूर्व आईएएस

भारत में करीब 30 करोड़ निर्धन लोग है। उनकी पहुंच बुनियादी शिक्षा, कौशल, सामाजिक और आर्थिक समान अवसर, उच्च नौकरियों तक नहीं है। महिलाओं को समाज में समानता प्राप्त नहीं है। शिक्षा मानसिकता और दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने में बड़ी भूमिका अदा करती है। उनके सामाजिक, आर्थिक वंप शैक्षिक विकास के लिए शिक्षा का विस्तार आवश्यक है। गरीबी, बीमारी, पिछड़ापन जैसी समस्याओं का पूर्ण समाधान निरक्षता दूर किये बिना संभव नहीं है, शिक्षा प्रसार के बिना जनसंख्या की समस्या का समाधान भी नहीं किया जा सकता। देश के समग्र विकास के लिए शिक्षा व साक्षरता बहुत आवश्यक है। सरकार ने शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया।स्वतके पश्चात भारत में शिक्षा प्रक्रिया को व्यावहारिक, प्रांसगिक तथा विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने के महत्वपूर्ण प्रयास हुये है। परन्तु यत्र-तत्र परिलक्षित सफलताओं को छोड़कर आज भी सामान्यतया शिक्षा पुस्तकीय ज्ञान अर्जित करने तक सीमित है।
सक्रिय सहभागिता, सहयोग, क्रियाशील तत्परता के प्रभावे में छात्रों में कार्य नियोजन, उच्चस्तरीय चिन्तन, नवाचार तथा क्रियात्मक गतिविधियों का नितांत अभाव बरकरार है। अभी शिक्षा में श्रुति व स्मृति का ही बोल बाला है। सरकार ने शिक्षा को मांग के अनुकूल उपयोगी बनाने की चेष्टा की। समाज और शिक्षा के बीच एक संतुलन पैदा करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए आधुनिकरण, शहरीकरण के अनुरूप व्यवहारिक स्वरूप देने का प्रयत्न किया है जिससे युवा भावी जीवन में विषम, अत्याशित, अनपेक्षित परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकें तथा अभिनवन क्षमता, समायोजन की मानसिकता तथा उद्यमिता के गुणों का विकास कर सकें। वर्तमान शिक्षा आदर्शो में मुक्त कर दी गई है। शिक्षा को जनोपयोगी बनाने के लिए पाठ्यक्रमों में सुधार और परीक्षा प्रणाली की समीक्षा आवश्यक है, संचार प्रौद्योगिकी का बेहतर उपयोग बढ़ाने, व्यवसायिक शिक्षा व प्रशिक्षण पर ध्यान केन्द्रित करने, स्थानीय उद्योग, व्यापार और व्यवसाय के साथ जोडऩे की आवश्यकता है।उच्च शिक्षा भारत में अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है।
शिक्षा में न तो योग्य अध्यापक है न अनुसंधान की सुविधा उच्च शिक्षा को पुनरीक्षित करने की आवश्यकता है। विकेन्द्रीकरण कर नये विचारों के साथ प्रयोग करने की स्वतंत्रता हो। शिक्षा से ही जागरूक संवेदनशील बनते है ; सरकार ने अपनी लोक कल्याणकारी जिम्मेदारीयों से पल्ला झाड़कर उच्च शिक्षा के क्षेत्र को देशी विदेशी व्यापारीयों पर छोड़ दिया हैं विश्वविधालयों में स्वपोषित पाठ्यक्रम शुरू कर दिये है। ज्ञान के उद्योग में निजी पूंजी निवेश करने से विश्वविधालय का ढांचा चरमराने लगा है। उच्च शिक्षा पर सबका समान अधिकार माना गया था। अब केवल उच्चवर्ग व वर्गाे की बपौती बना दिया है। राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव से आर्थिक संसाधनों की कमी हो गई है। उच्च शिक्षा का ग्लोबलाइजेशन फैशन के लिए नहीं देश की जरूरत के मुताबित होनी चाहिए। हम उच्च शिक्षा के आयात निर्यात के लिए तैयार है बगैर किसी नीति निर्धारण के, जो किसी नीति निर्धारण में शिक्षा पर आयात निर्यात के सिद्धान्त को लागू नहीं किया जाना चाहिए।
रोजगार के अवसर राष्ट्रवापी होने के कारण पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बदलते समाज की जरूरतों पर खरा उतरे, अध्यापक प्राध्यापकों में प्रतिबद्धता होनी चाहिए। शिक्षण व युवको के प्रति विशेष लगाव होना चाहिए। प्रभावी शिक्षण देने के लिए अपेक्षित ज्ञान भी होना चाहिए, स्वाभिमानी होना चाहिए। शिक्षण संस्थाओं में आधुनिक सूचना प्रोधोगिक यंत्र और संरचना व बुनियादी सुविधायें होनी चाहिए।
शिक्षा में सुधार एक सतत् प्रक्रिया है, हमें व्यवहारिक दृष्टिकोण से विचार करना होगा। पाठ्यचर्चा ऐसी होनी चाहिए कि वह युवा पीढ़ीको नयी प्राथमिकताओं व बदलते सामाजिक संदर्भ में उभरते दृष्टिकोणों के परिप्रेक्ष्य में पुर्नमूल्यांकन व पुर्नव्र्याख्यापित करने में सक्षम बना सके। व्यक्तित्व निर्माण, चहुंमुखी विकास को अपना लक्ष्य मानती हैं। शिक्षण में शास्त्रीय एंव ज्ञान शास्त्रीय विवेचना की जानी चाहिए। लोकतंत्र एक व्यक्ति की एक मनुष्य के रूप में आत्म सम्मान व योग्यता में आस्था पर आधारित है। लोकतांत्रिक शिक्षा का उद्देश्य हर व्यक्तित्व का पूर्ण व चहुंमुखी विकास है। उस शिक्षा का कोई लाभ नहीं जो शालीनता सामंजस्य कार्य कुशलता के साथ जीने की शैली के लिए आवश्यक गुुुण को पोषित नहीं कर सकें। सिखाने वाली शैली व भाषा माध्यम प्रभावोत्पादक और सुगम्य होना आवश्यक है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी निवेश को आंमत्रित करने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाई जानी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में हमें नयी संरचनाओं और विचारों की आवश्यकता है। व्यावसायिक शिक्षा में सुधार के साथ-साथ दूरवर्ती शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यक है भारत के ज्ञान और कौशलपूर्ण अर्थव्यवस्था के रूपान्तरण के लिए अनुसंधान के अनुकूल सुदृढ़ वातावरण की नितांत आवश्यकता हैं। ज्ञान आयोग के पूर्व अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने शोध में कहा है “शिक्षा प्रणाली कुशल एवं रोजगार के लिए तैयार जनशक्ति का निर्माण करने की अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा रही। कौशल सम्बन्धी बाजार की आवश्यकता और रोजगार चाहने वालो के कौशल के बीच खाई बढ़ती जा रही हैं। 57 प्रतिशत युवा रोजगार पाने की योग्यता नहीं रखते देश को व्यवसायिक शिक्षा प्रशिक्षण प्रणाली में आमूल परिवर्तन लाने की आवश्कता है। देश में समान स्कूल प्रणाली लाये बगैर शिक्षा में असमानता और शिक्षा के सर्वव्यापीगण का गहरा सम्बन्ध हैं।
सार्वजनिक-निजी और औपचारिक एवं अनोपचारिक व्यवस्थाओं का उपयुक्त और मिलाजुला शिक्षण व प्रशिक्षण जो अर्थव्यवस्था और समाज की बदलती आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो, शिक्षण प्रशिक्षण की संयुक्त व्यवस्था बाजार की बदलती जरूरते पूरी करने के लिए उपयुक्त होना आवश्यक हो।

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