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सामयिक : न होना पड़े महिला खिलाड़ियों को शोषण का शिकार

महिला खिलाड़ी कर रहीं अवांछित टिप्पणियों के बीच खुद को सिद्ध करने का संघर्ष ।

नई दिल्लीSep 22, 2021 / 10:56 am

Patrika Desk

पूर्व ओलंपिक चैंपियन अमरीका की सिमोन बाइल्स

पूर्व ओलंपिक चैंपियन अमरीका की सिमोन बाइल्स

ऋतु सारस्वत, (समाजशास्त्री और स्तम्भकार)

बीता सप्ताह खेल की दुनिया में महिला खिलाडिय़ों के उस संघर्ष की परतें खोल गया जिसके बारे में बात करने से सारी दुनिया हिचकती है। पूर्व ओलंपिक चैंपियन अमरीका की सिमोन बाइल्स 15 सितंबर को सीनेट की न्याय समिति के सामने अपने साथ हुए यौन शोषण की सुनवाई के लिए उपस्थित हुईं। उल्लेखनीय है कि 2015 में उन्होंने डॉ लैरी नासर के खिलाफ आवाज उठाई थी। सिमोन के साहस को देखकर और भी महिला खिलाड़ी सामने आईं और 150 से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि नासर ने उनका भी शोषण किया।

दुनिया भर में ऐसी हजारों महिला खिलाड़ी हैं जो खेल मैदान में उत्पीडऩ का शिकार होती आई हैं। बीते 11 वर्षों में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की अलग-अलग इकाइयों में यौन उत्पीडऩ के कई मामले सामने आ चुके हैं। इनमें छेड़छाड़ से लेकर शारीरिक शोषण तक के मामले शामिल हैं। अधिकतर मामलों में आरोपियों को जहां बरी कर दिया जाता है, वहीं कई लोगों के खिलाफ पूछताछ सालों से चली आ रही है। महिला सशक्तीकरण पर एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में फरवरी 2019 में कहा गया, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि संरक्षक और मार्गदर्शक खुद शिकारी बन जा रहा है।’ संसदीय समिति का यह मानना है कि कई बार कोच के खिलाफ मामला दर्ज ही नहीं होता है।

विडंबना है कि महिलाओं को देह से अधिक कुछ समझा ही नहीं जाता। जब बात खेलों की हो तो स्थितियां और भी गंभीर हो जाती हैं। इस संदर्भ में पूर्व में साई महानिदेशक रहे थॉमसन ने कहा था, ‘ज्यादातर लड़कियां गरीब पृष्ठभूमि से आती हैं इसलिए उन्हें अपना बयान बदलने या अपनी शिकायत वापस लेने के लिए राजी किया जाता है या दबाव बनाया जाता है। लड़कियां देखती हैं कि गरीबी के चक्रव्यूह से निकलने की चाबी और खेल में उनका भविष्य कोचों के हाथ में है, इसलिए वे अक्सर हार मान लेती हैं।’ भारतीय महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी ने अपनी किताब ‘गेम इन गेम’ में खुलासा किया था कि टीम मैनेजमेंट, कोच और सेक्रेटरी द्वारा टीम की महिला खिलाडिय़ों का उत्पीडऩ किया जाता है। अभी कुछ माह पूर्व ही तमिलनाडु के एक कोच पी. नागराजन पर राष्ट्रीय स्तर की महिला एथलीट ने भी यौन शोषण के आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। समस्या खेल मैदान के भीतर तक ही नहीं है। ज्यादा विराट और डरावना वह सामाजिक दृष्टिकोण है जो महिला खिलाडिय़ों के खेल से ज्यादा उनके व्यक्तिगत जीवन, पहनावे और जीवनचर्या में दिलचस्पी रखता है। खेल के मैदान में पुरुषों के बराबर मेहनत कर अपना मुकाम हासिल करने वाली खिलाड़ी को सिर्फ खिलाड़ी मानने से पुरुषसत्तात्मक सोच इंकार करती आई है।

टायला हैरिस, ऑस्ट्रेलिया फुटबॉल लीग की खिलाड़ी हैं। खेल के दौरान हैरिस ने पूरी जान लगा कर अपना पहला गोल किया। इस प्रभावशाली गोल के समय टायला का एक पांव हवा में था। इसी तस्वीर को एक न्यूज चैनल ने सोशल मीडिया पर डाल दिया लेकिन बजाय खिलाड़ी के खेल के प्रति जुनून देखने के लोगों ने अश्लील टिप्पणी की, ऐसी बौछार लगा दी कि इस खिलाड़ी को कुछ समय के लिए खेल से दूरी बनानी पड़ी। लगभग हर महिला खिलाड़ी ऐसी टिप्पणियों और देह नापती आंखों के बीच स्वयं को खिलाड़ी सिद्ध करने की जुगत करती रहती है, पर क्या यह संघर्ष अवांछित नहीं है? क्या हम महिला खिलाडिय़ों को बिना किसी जेंडर भेद के सिर्फ खिलाड़ी होने का सम्मान नहीं दे सकते? क्या यह जरूरी नहीं कि कोच और अधिकारियों को शक्तिशाली बनाने के बनिस्पत ऐसी पारदर्शी व्यवस्था की स्थापना हो जहां महिला खिलाड़ी अपने भविष्य के डर से किसी भी प्रकार के शोषण का शिकार न बने।

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