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आधी आबादी : कोरोना के चलते मुश्किल हो गई महिलाओं की जिंदगी

– मध्यमवर्गीय स्त्रियों का जीवन एक अलग तरह के कठघरे से घिर गया है। अब सुबह से शाम तक के काम में ही उलझे रहना है।- इन दिनों घरेलू जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं।

May 10, 2021 / 11:17 am

विकास गुप्ता

आधी आबादी : कोरोना के चलते मुश्किल हो गई महिलाओं की जिंदगी

आधी आबादी : कोरोना के चलते मुश्किल हो गई महिलाओं की जिंदगी

अंकिता जैन

कोई भी रास्ता जब शुरू होता है तो कितना कठिन लगता है ना? फिर जब हम उस पर चलने लगते हैं तो मंजिल पर पहुंचने का लालच उस रास्ते को आसान बना देता है। कई बार मंजिल बहुत उम्मीदों से भरी होती है और रास्ता बहुत कठिन, कुछ अभी जैसा ही। एक पुरानी सखी का फोन आया था। हम अपना-अपना जीवन जीते हैं और जब याद आती है, तो एक-दूसरे को याद कर लेते हैं। उसने कहा कि उसे मेरी बहुत याद आ रही थी। मैंने पूछा क्यों, तो बोली, ‘अब जीने की इच्छा खत्म सी होने लगी है।’ मैं एक पल को चौंकी। एक तरफ जहां सारा संसार एक बीमारी से लड़ते हुए जीने की लालसा पाल रहा है और दूसरी तरफ इसकी जीने की इच्छा खत्म होने लगी है। मैंने कारण पूछा तो बोली, ‘जिंदगी में ना रस रह गया है, ना प्रेम।’ मैंने पूछा, ‘क्यों क्या हुआ? तू तो पति-मोह में बंधी ही रहती थी।’ बोली, ‘उसे मेरी परवाह ही नहीं।’

इस समय में अचानक विपदा आने से जोड़े घरों में एक-दूजे के साथ कैद से हो गए हैं। संभवत: यह उनके जीवन में पहली ही बार हुआ होगा, जब वे ‘बिना घर से बाहर निकले’ एक-दूजे के साथ इतना समय बिता रहे होंगे। ऐसे में कई सारी अपेक्षाएं और उम्मीदें जन्म लेने लगती हैं। जब हम चौबीसों घंटे साथ रहते हैं, तो साथी में अचानक ही कुछ नया सा भी दिखने लगता है, जो अब तक नहीं दिखा हो। फिर भारतीय पुरुषों की परवरिश ऐसी होती है कि वे स्त्री-मन को समझने की शायद ही कोशिश करते हों। तभी तो हमेशा रेलगाड़ी सी धड़धड़ाती रहने वाली मेरी सखी आज शांत थी। जैसे उसकी गाड़ी का इंजन जीवन में पहली बार रुका हो। इन दिनो जब स्त्रियां अपने साथी को ही अपना सहयोगी बनाना चाह रही हों और उन्हें सहयोग नहीं मिले, तो वे क्या सोचने लगेंगी, यह कह पाना कठिन है।

मध्यमवर्गीय स्त्रियों का जीवन एक अलग तरह के कठघरे से घिर गया है। अब सुबह से शाम तक के काम में ही उलझे रहना है। समय पर खाना, समय पर चाय, समय पर कपड़े सब कुछ और यदि महिला वर्किंग हो, तो और मुसीबत। ऐसे में यदि पति ठेठ पितृसत्ता वाला हुआ, तो समझो गई भैंस पानी में। और मुझे मेरी सखी की भैंस भी इसी वजह से पानी में जाती लग रही है।

(लेखिका ‘ऐसी—वैसी औरत’ उपन्यास की राइटर हैं और सामाजिक और स्त्री मुद्दों पर लेखन)

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