नाबालिग की उम्र 18 हो या 16 वर्ष, यह बात कोई मायने नहीं रखती है। बालक का मस्तिष्क परिपक्व होना चाहिए। उसमें सही और गलत की सोच का भान होना चाहिए । केवल उम्र घटा या बढा देने से समस्या का स्थाई समाधान नहीं है । प्रत्येक बच्चे की समझ अलग अलग आयु में होती है। किसी को कम उम्र में ही समझ विकसित हो जाती है तो कइयों को लाड—प्यार व सुविधाओं के चलते भले—बुरे की समझ देर से आती है। आपराधिक प्रवृत्ति का होना या अपराध करना, पारिवारिक संस्कारों से मिलता है। छोटी गलती करने पर नहीं डांटना या गलत करने पर भी उसे नजरअंदाज करना, मां—बाप के मोह की वजह से है। बाद में बडी गलती करने पर 16 साल की आड़ में उसे बचाने की कोशिश करते हैं। इसमें उम्र का कोई फर्क नहीं पडता। आजकल देखने में आता है कि मां—बाप को बच्चे की गतिविधियों के बारे में जानने की फुर्सत ही नहीं है। इसलिए बालिग की आयु में परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है।
— सुनील माथुर, जोधपुर
वर्तमान में किशोर—किशोरी 16 वर्ष की आयु में ही परिपक्व हो जाते हैं। वे अपराध करने के बावजूद 18 वर्ष से कम आयु की वजह से छूट जाते हैं। बड़े होने पर उन्हें अपराध करना गलत ही नहीं लगता। इसी वजह से आपराधिक गिरोह भी आपराधिक कृत्यों के लिए 18 साल से कम आयु वर्ग के किशोर किशोरियों को अपनी गैंग में शामिल करना चाहते हैं। इसके अलावा ड्राइविंग लाइसेंस भी 18 से कम आयु वाले का नहीं बनता, जबकि आज भागदौड़ की जिंदगी में इसकी महती आवश्यकता है।
— दिनेश कुमार भाटे , जयपुर
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अपना भला —बुरा एवं सही— गलत को समझने, परखने के लिए 16 वर्ष की आयु कम होती है। इस उम्र में बच्चा किशोरावस्था की दहलीज पर होता है। मानसिक और शारीरिक विकास की इस वय में किशोर और किशोरियों में अपरिपक्वता होती है। वर्तमान में निर्धारित 18 वर्ष की आयु समाजशास्त्रियों द्वारा विभिन्न तथ्यों का आकलन करके निर्धारित की गई है। इसमें फेरबदल करना उचित नहीं होगा।
— ललित महालकरी, इंदौर
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आज बच्चों का विकास तेजी से हो रहा है। उनके सोचने- समझने की क्षमता भी बढ़ रही है। मोबाइल जैसे तकनीकी युग में बच्चों को सभी तरह की जानकारियां उन्हें सर्वसुलभ हैं। इसलिए बालिगता 18 से घटाकर 16 वर्ष कर देनी चाहिए।
—साजिद अली, इंदौर
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18 वर्ष में ही बालक या बालिका शारीरिक एवं मानसिक रूप से सक्षम होते हैं। सही गलत के चुनाव करने की क्षमता विकसित होने लगती है। साथ ही सरकार संवैधानिक अधिकारों का कड़ाई से पालन करवाये तभी पोर्चे जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है!
— विक्रम सिंह राजपूत, दमोह, मध्य प्रदेश
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कई नाबालिग आयु की आड में वीभत्स कांड को अंजाम दे देते हैं। इन्हें जघन्य अपराध मानकर उम्र के आधार पर छूट नहीं देनी चाहिए। साधारण व सामान्य मामले में 18 वर्ष ही बालिगता का पैमाना होना चाहिए।
— दिनेश परिहार “मुंदडीवाला”, रतलाम मध्यप्रदेश
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वर्तमान में मानसिक परिपक्वता की उम्र तो बढ़ रही है, किन्तु शारीरिक परिपक्वता उस मात्रा में नहीं। अतः बालिग की उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 नहीं 17 वर्ष ही की जानी चाहिए।
भगवती प्रसाद गेहलोत, मंदसौर