फिर से दोहराई गई “चक दे इंडिया”, 11 साल पहले मिला जख्म अब भरा, पढ़ें इस कोच की दिल को छू लेने वाली कहानी
कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है और ज़िन्दगी आपको अपने अतीत को
सुधारने का मौका फिर से देती है। साल 2007 में हॉकी पर बनी फिल्म चक दे
इंडिया इंडिया से मिलती जुलती कहानी रील लाइफ से दूर रीयल लाइफ में दोहराई
गई है..
•Dec 19, 2016 / 01:39 pm•
राहुल
A heart touching story of a coach of indian junior hocky team
कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है और ज़िन्दगी आपको अपने अतीत को सुधारने का मौका फिर से देती है। साल 2007 में हॉकी पर बनी फिल्म चक दे इंडिया इंडिया से मिलती जुलती कहानी रील लाइफ से दूर रीयल लाइफ में दोहराई गई है। ऐसा हुआ है भारत के जूनियर हॉकी विश्वकप जीतने के बाद। कहानी यहाँ भी थोड़ी सी फ़िल्मी है लेकिन सच है।
ये कहानी है भारत की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले कोच हरेंद्र की। उनका किरदार ‘चक दे इंडिया’ के कोच कबीर खान (शाहरुख खान) की याद दिलाता है जिसने अपने पर लगे कलंक को मिटाने के लिये एक युवा टीम की कमान संभाली और उसे विश्व चैंपियन बना दिया। हरेंद्र ने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा।
ग्यारह साल पहले रोटरडम में कांस्य पदक ना जीत पाने का मलाल और उससे उठने वाली टीस उनके दिल में नस्तर की तरह चुभती रही। की तरह घर कर गई थी और जब उनके कोचिंग में भारत ने अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने जब भारत ने विश्वकप जीता तब इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके। बता दें कि भारत ने जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप के फाइनल में बेल्जियम को 2-1 से हराकर खिताब जीता। भारत ने 15 साल पहले 2001 में इससे पहले यह खिताब जीता था।
जब हरेंद्र से उस दर्द के बारे में पूछा गया कि जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, यह मेरे अपने जख्म है और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता। मैंने खिलाड़ियों को इतना ही कहा था कि हमें पदक जीतना है, रंग आप तय कर लो। रोटरडम में मिले जख्म मैं एक पल के लिये भी भूल नहीं सका था।
भारत 2005 की रोटरडम में खेली गई प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में हार गया था। इसके चलते उसके पास कांस्य पदक जीतने का मौका भी गँवा दिया था।
अपने सोलह बरस के कोचिंग कॅरियर में अपने जुनून और जज्बे के लिये मशहूर रहे हरेंद्र ने दो बरस पहले जब फिर जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गए थे। उनका किरदार ‘चक दे इंडिया’ के कोच कबीर खान (शाहरूख खान) की याद दिलाता है जिसने अपने पर लगे कलंक को मिटाने के लिये एक युवा टीम की कमान संभाली और उसे विश्व चैम्पियन बना दिया। हरेंद्र ने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उन्होंने युवा टीम को व्यक्तिगत प्रदर्शन के दायरे से निकालकर एक टीम के रूप में जीतना सिखाया।
रोटरडम में कांस्य पदक के मुकाबले में स्पेन ने भारत को पेनल्टी शूट आउट में हराया था। अपने सोलह बरस के कोचिंग कैरियर में अपने जुनून और जज्बे के लिये मशहूर रहे हरेंद्र ने दो बरस पहले जब फिर जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गये थे।
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