रिजिजू के हवाले से बताया, “कोई भी प्रमुख खेल आयोजन खेल से परे एक बड़े संदेश को व्यक्त करने का कार्य करता है। बहुत वर्षों पहले पूर्वी ब्लॉक ने पश्चिम में आयोजित ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार किया था। अब दुनिया ऐसे ब्लॉकों में विभाजित नहीं है, लेकिन कई बार यह प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है।”
रिजिजू ने कहा, “जब इस मामले को आईओए ने मेरे सामने रखा, तो उनका विचार था कि हमें खेलों का बहिष्कार करना चाहिए। मैंने कोशिश एवं हस्तक्षेप करने के लिए कुछ समय मांगा और इंग्लैंड के खेल सचिव को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर विचार करने का अनुरोध किया।
उन्होंने कहा, “खेलों की कार्यकारी परिषद में जब निशानेबाजी को हटाने का निर्णय लिया गया, तब वहां कोई भी भारतीय प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था इसलिए हमारे विचार को महत्वपूर्ण नहीं माना गया। इसलिए अगर इसका बहिष्कार करना है तो इस पर सरकार निर्णय लेगी। हम सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद ही अंतिम निर्णय लेंगे, लेकिन हम आईओए की भावना के साथ खड़े हैं।”
इससे पहले, आईओए प्रमुख नरिंदर बत्रा ने कहा था कि राष्ट्रमंडल खेलों में प्रतिस्पर्धा का स्तर इतना ऊंचा नहीं होता और भारत को अपने मानकों को सुधारने के लिए इनसे स्थाई रूप से हटने पर विचार करना चाहिए। बत्रा के इस बयान पर कई पूर्व खिलाड़ियों और राष्ट्रमंडल खेल महासंघ ( सीजीएफ ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ( सीईओ ) डेविड ग्रेवेमबर्ग ने भी नाराजगी जताई थी।