पाकिस्तान ने जताया विरोध
बता दें कि फैसला आने के बाद पाकिस्तान सरकार ने फौरन इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायुक्त को बुलाया और आरोपियों को बरी किए जाने के मामले में विरोध दर्ज कराया। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत के हाई कमिश्नर के खिलाफ इस मामले को विरोध स्वरूप उठाया गया है। हालांकि भारत ने भी कड़ा जवाब देते हुए यह साफ कर दिया कि भारत की न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी है। सभी आरोपियों को सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर ही बरी किया गया है। भारत ने साफ कर दिया कि पाकिस्तान खुद इस मामले में सहयोग नहीं कर रहा था। जब भारत ने समन भेजा तो पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने उसे वापस भेज दिया था।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में बम विस्फोट हुआ था। इस घटना में 68 लोग मारे गए थे। जिसमें से पाकिस्तान के 43, भारत के 10 भारतीय और 15 अज्ञात लोग शामिल थे। इस मामले में 2007 से केस की सुनवाई चल रही थी। इसके बाद इस केस में पहली बार 2011 में चार्जशीट फाइल की गई। हालांकि इसके बाद 2012 और 2013 में भी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी। फिर NIA की अदालत ने जनवरी 2014 में असीमानंद, कमल चौहान, राजिंदर चौधरी और लोकेश शर्मा के खिलाफ आरोप तय किए। इन सभी पर हत्या, देशद्रोह, हत्या, हत्या की कोशिश, आपराधिक साजिश के आरोप थे। बुधवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने पाकिस्तान की एक महिला राहिल वकील की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने राहिला की याचिका सीआरसीपीसी की धारा 311 के तहत खारिज कर दिया और फिर सभी अपना फैसला सुनाया। राहिला ने अपनी याचिका में कहा था कि वह गवाही देना चाहती है, लेकिन उसे गवाही देने का अवसर नहीं दिया गया। इसपर कोर्ट ने कहा कि एनआईए की ओर से जिन 13 गवाहों के नाम सौंपे गए हैं उसमें राहिला का नाम नहीं है। बता दें कि इस घटना में राहिला के पिता की मौत हो गई थी।