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पाली

पंचकर्म चिकित्सा के पथ में ‘काळ’ की बेड़ी

-जिला आयुर्वेद चिकित्सालय 11 माह से बंद, प्रदेश में भी नहीं चल रहे पंचकर्म केन्द्र

पालीJan 22, 2021 / 10:33 am

Suresh Hemnani

पंचकर्म चिकित्सा के पथ में ‘काळ’ की बेड़ी

पंचकर्म चिकित्सा के पथ में ‘काळ’ की बेड़ी

-राजीव दवे
पाली। कोरोना काळ में आयुर्वेद के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा। लोग इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आयुर्वेद की दवाओं के साथ नुस्खों का अब तक उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इसी चिकित्सा पद्धति की एक बड़ी शाखा पंचकर्म कोरोना शुरू होने से लेकर अब तक करीब 11 माह से बंद है। यों तो इसे कोरोना में सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर बंद किया गया था। अब कोरोना के केस कम होने, कफ्र्यू हटने, वैक्सीन आने के बावजूद प्रदेश के अधिकांश पंचकर्म चिकित्सा केन्द्रों पर ताला ही लटक रहा है। सरकार ने इन पंचकर्म केन्द्रों पर आज तक कोई पद स्वीकृत नहीं किया है और जिला अस्पतालों में कार्मिकों का टोटा है। पाली के जूनी कचहरी स्थित जिला आयुर्वेद चिकित्सालय में बने पंचकर्म केन्द्र का भी ऐसा ही हाल है।
यह है हकीकत
आयुर्वेद के जिला अस्पतालों में पंचकर्म करने के लिए पंचकर्म विशेषज्ञ होना चाहिए। जो पाली में नहीं है। यहां जिला अस्पताल में तीन में से दो चिकित्सक नियुक्त है। जो ओपीडी में रोजाना आने 70 से 80 वाले मरीजों के उपचार में ही लगे रहते हैं। यहां 7 नर्स व कम्पाउण्डर में से भी तीन पद रिक्त है। जो कार्यरत है, उनमें से एक जने का अवकाश होने पर तीन जने दवा बनाने के साथ अन्य कार्य में ही उलझे रहते हैं। ऐसे में पाली में यूनिट चलाने वाला कोई नहीं है। यहां पहले एक चिकित्सक पंचकर्म विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किए थे, लेकिन बाद में उनका स्थानान्तरण हो गया और यूनिट महज नाम की रह गई।
मसाजर लगाने का कर रहे प्रयास
हम आरोग्य समिति की ओर से एनजीओ के माध्यम से दो मसाजर लगाने का प्रयास कर रहे हैं। गैस कनेक्शन तो है, लेकिन सिलेण्डर की अधिक जरूरी होगी। इसके लिए भी कोशिश जारी है। पंचकर्म चिकित्सा यूनिट को मार्च तक शुरू कर देंगे। –डॉ. अशोक अग्रवाल, उपनिदेशक, आयुर्वेद विभाग, पाली
मुख्य रूप से ये यंत्र लगे हैं पंचकर्म यूनिट में
-सिरोधारा मशीन
-मसाजर टेबल
-स्वेदन यंत्र
-भाप बनाने के यंत्र सहित अन्य उपकरण

इन विधियों से होता है पंचकर्म में उपचार
पत्र पिण्ड स्वेद : इसमें मांसपेशी, स्नायू, तंत्रिका तंत्र, रक्त परिसंचरण तंत्र आदि के रोगों का वातनाशक वनस्पतियों के पत्तों आदि का उपयोग कर उपचार किया जाता है।
नस्य कर्म : इसे शिरोविरेचन भी कहते है। इसमें नाक से औषधि दी जाती है। इसमें माइग्रेन, अर्दित, स्र्वाइकल, बाल झडऩा, बाल सफेद होना, अनिद्रा, पुराने जुकाम आदि रोगों का उपचार करते हैं।
स्नेहन : बाह्य व आभ्यान्तर माध्यम से शरीर में स्नेह (घी-तेल) का उपयोग करते है। इससे सिनग्धता पैदा होती है। यह पंचकर्म के प्रधान कर्म करने से पहले किया जाने वाला कर्म है।
शिरोधारा : औषधिय तेल, दूध, तक्र आदि को पात्र में भरकर ललाट पर धारा के रूप में डालते है। इससे अनिद्रा, अवसाद, मानसिक थकान, शारीरिक थकान, शिरोदाह, नेत्र रोग, तंत्रिका तंत्र जनित रोग आदि का उपचार करते हैं।
शिरोबस्ती : औषधिय तेलों को सिर पर धारण करवाते है। इससे तंत्रिका तंत्र जन्य विकार, पक्षाघात, बालों का गिरना, अपस्मार, तनाव, ग्रीवा स्तम्भ आदि रोगों का उपचार करते हैं।
स्वेदन : शरीर में विभिन्न माध्यमों से पसीना उत्पन्न करना। इससे शरीर की जकडऩ, भारीपन को दूर करते है। त्वचा में निखार, स्त्रोतसो का शोधन, अग्नि प्रदीप्ती आदि पैदा करते है। इससे टॉक्सीन पसीने से बाहर आ जाते है।
अभ्यंग : इस क्रिया से बुढ़ापा देरी से आता है। थकाम दूर होती है। सभी धातुओं में वृद्धि, नेत्र ज्योति तेज होती है। वात शमन होता है।

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