शहर के सर्वोदय नगर निवासी दौलतराम (52) पुत्र जेठाराम बामणिया एलआईसी में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर है। पारिवारिक जीवन हंसीखुशी चल रहा था। लेकिन वर्ष 2013 में अचानक एक दिन दौलतराम को खून की उल्टी हुई। पेरों में सूजन आ गई। तुरंत चिकित्सक को चेक करवाया। आवश्यक जांचे करवाई तो सामने आया कि उनका 75 प्रतिशत लीवर खराब हो गया। लीवर ट्रांसप्लांट ही उनका जीवन बचाने के लिए अंतिम उपाय है। चिकित्सक की यह बात सूनकर परिवार सन्न रह गए। इतने में उनकी पत्नी सरोज बामणिया चिकित्सक से बोली कि आप ऑपरेशन की तैयारियां करो मैं अपना लीवर का हिस्सा देने को तैयार हूं। अब उनके सामने समस्या था कि लीवर ट्रांसप्लांट में करीब 70 लाख रुपए का खर्चा आता है इतनी बड़ी रकम अब कैसे एकत्रित करें। इसी मुशिकल घड़ी में उन्होंने अपनी बचत राशि एकत्रित की रिश्तेदारों ने भी आर्थिक रूप से मदद की ओर 29 अक्टूबर 2013 को गुडग़ांव के एक निजी अस्पताल में दौलतराम बामणिया का सफल ऑपरेशन हुआ। आज उस बात को छह वर्ष होने को आए। दोनों पति-पत्नी खुश है ओर हंसीखुशी जीवन बीता रहे है।
पत्नी होने का फर्ज निभाया
मैंने तो पत्नी होने का फर्ज निभाया। मेरे लीवर का कुछ हिस्सा देने से उनकी जान बच गई। इससे ज्यादा मुझे ओर क्या चाहिए। आज वह मेरे साथ है तो सारे जहां की खुशियां मेरी झोली में है।
– सरोज बामणिया
मैंने तो पत्नी होने का फर्ज निभाया। मेरे लीवर का कुछ हिस्सा देने से उनकी जान बच गई। इससे ज्यादा मुझे ओर क्या चाहिए। आज वह मेरे साथ है तो सारे जहां की खुशियां मेरी झोली में है।
– सरोज बामणिया
पत्नी ने मौत के मुंह से निकाला
मेरे तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि लीवर कौन देगा ओर ऑपरेशन के लिए इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कैसे होगी लेकिन पत्नी सरोज ने हिम्मत रखी ओर खुद का लीवर देने की पहल की तथा ऑपरेशन के लिए इतनी बड़ी रकम रिश्तेदारों की मदद से एकत्रित कर ली। आज इस दुनिया में हूं तो सिर्फ अपनी पत्नी की वजह से।
– दौलतराम बामणिया
मेरे तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि लीवर कौन देगा ओर ऑपरेशन के लिए इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था कैसे होगी लेकिन पत्नी सरोज ने हिम्मत रखी ओर खुद का लीवर देने की पहल की तथा ऑपरेशन के लिए इतनी बड़ी रकम रिश्तेदारों की मदद से एकत्रित कर ली। आज इस दुनिया में हूं तो सिर्फ अपनी पत्नी की वजह से।
– दौलतराम बामणिया