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पाली

कोविड में सिकुड़ जाते हैं फेफड़े, प्रदेश के अस्पतालों में नहीं दवा!

– पाली में हर माह आते है 400 से 450 मरीज- कफ को शरीर से निकालने की दवा भी जरूरी

पालीDec 01, 2020 / 08:32 am

Suresh Hemnani

कोविड में सिकुड़ जाते हैं फेफड़े, प्रदेश के अस्पतालों में नहीं दवा!

कोविड में सिकुड़ जाते हैं फेफड़े, प्रदेश के अस्पतालों में नहीं दवा!

पाली। कोविड की बीमारी में फेफड़े सिकुड़ जाते है। छाती में कफ का जमाव हो जाता है। कई मरीजों में यह सामान्य दवाओं से ठीक हो जाता है, लेकिन अधिक कफ होने व कोविड ठीक नहीं होने पर फेफड़े सिकुड़ जाते है। जिससे मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
इसमें बड़ी बात यह है कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस (फेफड़ों में सिकुडऩ) की इस समस्या का उपचार करने की दवा प्रदेश के कई अस्पतालों में अभी तक नहीं है। ऐसे में मरीजों को उचित उपचार नहीं मिल रहा है। जिससे कई बार उनकी जान पर बन आती है। इस समस्या से ग्रसित 400 से 450 मरीज हर माह पाली में आ रहे है। अभी हाल ही में जयपुर के एसएमएस अस्पताल की ओर से इस दवा की मांग की गई है। पाली से भी इस दवा को लेकर पत्र लिखा गया है। इसी तरह फेफड़ों में कोविड बीमारी से जमने वाले अधिक कफ को पतला कर निकालने की दवा भी नहीं है।
दस रुपए की एक टेबलेट
पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी के उपचार के लिए निनेटिनिब नाम की टेबलेट का उपयोग किया जाता है। यह टेबलेट सरकारी अस्पतालों में अभी नहीं है। बांगड़ चिकित्सालय के चेस्ट फिजिशियन डॉ. लक्ष्मण सोनी ने बताया कि यह दवा कम से कम दस से पन्द्रह दिन मरीज को देने की जरूरत होती है। हमारी तरफ से इस दवा का मांग पत्र बनाकर भिजवाया गया है। वैसे हम दूसरी दवा से अभी उपचार कर रहे हैं।
खराब हो जाते हैं फेफड़े
कोविड बीमारी से फेफड़ों में कफ का जमाव होता है। फेफड़े पूरी तरह से खराब होने की आशंका रहती है। बांगड़ चिकित्सालय में ही पिछले दो-तीन माह में दस से बारह मरीज आए है। अभी अस्पताल में करीब पांच मरीज ऐसे है, जिनके फेफड़ों में कफ अधिक है। इसके लिए एनएसिटइाल स्ट्रिप की जरूरत रहती है। चिकित्सकों के अनुसार फेफड़ों में सिकुडऩ व कफ की दवा देरी से देने पर इसका प्रभाव कम हो जाता है।
दवा की मांग की
फेफड़ों में सिकुडऩ को रोकने और कफ को पतला कर शरीर से बाहर निकालने की दवा के लिए मांग की गई है। यह दवा जल्द ही उपलब्ध होने की उम्मीद है। अभी हम अन्य दवाओं से उपचार कर रहे हैं। –डॉ. हरीश आचार्य, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज, पाली

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