आज जिनको ‘कुमारपालÓ बनकर सोमनाथ को संवारने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। वे ही सरकार के मंत्री गोल-मोल बात करने लगे तो फिर मिल गई राहत। जो मंत्री खुद राजकोष की पेटी खोल सकते हैं, वे खुद के महकमे को ही मृत प्राय बताकर क्या संदेश देना चाहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी मंशा ही नहीं है कि करीब 1000 साल से भी पुराना ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर फिर से संवरे? मंदिर के जो आधार स्तम्भ अब दरारों की भेंट चढऩे लगे हैं, उन्हें वे फिर से मूर्त रूप लौटाना नहीं चाहते। जब वे मंदिर में दर्शन करने पहुंचे तो क्या उन्होंने नहीं देखा कि मंदिर का कलात्मक गुंबद अब समय के साथ, साथ छोडऩे लगा है…। मंदिर के पत्थरों पर उत्कीर्ण नक्काशी भी अब धुंधली होने लगी है…। जिन स्तम्भों पर तत्कालीन घटनाओं की तिथियों को उत्कीर्ण किया गया था, वे तो अब नजर भी नहीं आ रही! इतना कुछ होने के बाद भी वे किसका इंतजार कर रहे हैं। मंदिर के पुजारी व अन्य लोगों द्वारा मंदिर का दर्द उठाए जाने के बाद भी महज तखमीना बनाकर भेजने के निर्देश देकर लौट जाना तो आश्वासन की पुडिय़ा थमाने जैसा ही है। अब जरूरत ये है कि खुद सरकार ‘कुमारपालÓ का दायित्व निभाएं और सोमनाथ सरीखे मंदिरों का दर्द समझकर उन पर ‘मरहमÓ लगाए। तभी पुरा महत्व के मंदिर अक्षुण्ण रह पाएंगे, अन्यथा आने वाली पीढिय़ों को तो ऐसे स्वर्णिम इतिहास के साक्षी मंदिरों से वंचित ही रहना पड़ जाएगा।