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टिप्पणी… तो कौन बनेगा सोमनाथ का कुमारपाल

जिम्मेदार ही नही ले रहे है जिम्मेदारी

पालीNov 14, 2017 / 10:28 am

Avinash Kewaliya

somnath tample
यूं तो देवस्थान विभाग मंत्री पहले भी कपड़ा नगरी में आ चुके हैं, लेकिन सोमनाथ मंदिर की याद उन्हें पहली बार रविवार को ही आई। उन्होंने यहां मंदिर में मत्था टेक सोमनाथ महादेव से खुशहाली का आशीष तो मांगा, लेकिन खुद की जिम्मेदारी से वे मुंह मोड़ गए। 12वीं सदी के ऐतिहासिक कलात्मक मंदिर को गर्त में समाता देखकर भी उनके हाथ बंधे ही रहे। उनके ऐसे बोल, ‘पहले देव स्थान विभाग मृत अवस्था में थाÓ शोभा नहीं देते। एक तरह से ये तो वो ही बात हो गई ‘नाच ना जाने आंगन टेढ़ाÓ। यदि खुद जिम्मेदार ही ऐसे बोल बोलेंगे, फिर तो हो गया समाधान? आखिर ऐसे पुरा महत्व के मंदिर किससे आस रखेंगे? फिर कौन इस सोमनाथ का ‘कुमारपालÓ बन पाएगा?
एक तो वे गुजरात में सौराष्ट्र के राजा कुमारपाल थे, जिन्होंने मोहम्मद गजनवी व अन्य विदेशी आक्रांताओं से सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग को बचाने के लिए पाली को सबसे महफूज स्थल के रूप में चुना था। विनाश और बर्बरता से बचाने के लिए ही उन्होंने गुजरात के सोमनाथ से शिवलिंग को पाली (पहले पल्लिका, पल्लीपुर) में पहुंचाया और इसे पल्लीवाल ब्राह्मणों के संरक्षण में सौंप दिया। लेकिन, आज जबकि राजशाही शासन व्यवस्था के बजाय देश में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था स्थापित हो चुकी है। तब भी सोमनाथ मंदिर अपने बुरे दौर से गुजरे तो मन में कई सवाल खड़े होते हैं।
आज जिनको ‘कुमारपालÓ बनकर सोमनाथ को संवारने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। वे ही सरकार के मंत्री गोल-मोल बात करने लगे तो फिर मिल गई राहत। जो मंत्री खुद राजकोष की पेटी खोल सकते हैं, वे खुद के महकमे को ही मृत प्राय बताकर क्या संदेश देना चाहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी मंशा ही नहीं है कि करीब 1000 साल से भी पुराना ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर फिर से संवरे? मंदिर के जो आधार स्तम्भ अब दरारों की भेंट चढऩे लगे हैं, उन्हें वे फिर से मूर्त रूप लौटाना नहीं चाहते। जब वे मंदिर में दर्शन करने पहुंचे तो क्या उन्होंने नहीं देखा कि मंदिर का कलात्मक गुंबद अब समय के साथ, साथ छोडऩे लगा है…। मंदिर के पत्थरों पर उत्कीर्ण नक्काशी भी अब धुंधली होने लगी है…। जिन स्तम्भों पर तत्कालीन घटनाओं की तिथियों को उत्कीर्ण किया गया था, वे तो अब नजर भी नहीं आ रही! इतना कुछ होने के बाद भी वे किसका इंतजार कर रहे हैं। मंदिर के पुजारी व अन्य लोगों द्वारा मंदिर का दर्द उठाए जाने के बाद भी महज तखमीना बनाकर भेजने के निर्देश देकर लौट जाना तो आश्वासन की पुडिय़ा थमाने जैसा ही है। अब जरूरत ये है कि खुद सरकार ‘कुमारपालÓ का दायित्व निभाएं और सोमनाथ सरीखे मंदिरों का दर्द समझकर उन पर ‘मरहमÓ लगाए। तभी पुरा महत्व के मंदिर अक्षुण्ण रह पाएंगे, अन्यथा आने वाली पीढिय़ों को तो ऐसे स्वर्णिम इतिहास के साक्षी मंदिरों से वंचित ही रहना पड़ जाएगा।

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